पश्चिम में जहाँ दर्शन शाश्त्र और धर्म आपस में भिन्न हैं वहीँ पूरब के दर्शन धर्म के साथ गहराई में जुड़े हुए हैं, पूरब में अक्सर धर्मगुरु व दार्शनिक एक ही व्यक्ति होता है| भारतीय धर्म और दर्शन कुछ इस तरह जुड़े हैं कि उन्हें प्रथक नहीं किया जा सकता| यही वजह है कि हमारी इस सूची में आपको कुछ ऐसे व्यक्ति दिखेंगे जिनका धर्म से गहरा नाता है|
गहन दर्शनशास्त्र के मामले में पूरी दुनिया भारत देश का लोहा मानती है। इस भूमि ने कई महानतम दार्शनिकों को जन्म दिया है। इन दार्शनिकों ने कई गहन सिद्धांतो की ऐसी साफ सुथरी व्याख्या की है जो अभी भी पूरी दुनिया में लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती है। यहां भारत के कुछ ऐसे ही प्रसिद्ध दार्शनिकों की सूची दी गई है। इन दार्शनिकों ने बहुत सी मान्यताओं और विचारधाराओं को आकार दिया है जो आज भी लोगो का मार्गदर्शन करते हैं। इन दार्शनिकों का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में वैश्विक शांति, मानवता और निष्पक्षता का प्रचार करना रहा है। इन विचारकों ने पश्चिमी दुनिया को योग, वेदांत, न्याय, सांख्य और आत्म-ज्ञान के भारतीय दर्शन का ज्ञान दिया है। उनके कार्यों के माध्यम से दुनियाभर में अभी भी प्रकृति (ब्रह्मांड विज्ञान), तर्क, तत्वमीमांसा, नैतिकता, विज्ञान और धर्मशास्त्र आदि में कई रिसर्च हो रहे हैं। वाकई ऐसे भारतीय दार्शनिको को बार बार नमस्कार है।
नोट : सूची बिना क्रम के है|

श्रीकृष्ण, हिन्दू धर्म में भगवान हैं। वे विष्णु के 8वें अवतार माने गए हैं। कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी स... अधिक पढ़ें

महाभारत अनुशासन पर्व के अनुसार युधिष्ठिर की सभा में विद्यमान ऋषियों में शाण्डिल्य का नाम भी है। शांडिल्य ऋषि त्रेतायुग में राजा दिलीप के राजपुरोहित बताए गए है, वहीं द्वापर में वे राजा नंद के पुजारी हैं, एक समय में वे राजा त्र... अधिक पढ़ें

कश्यप ऋषि एक वैदिक ऋषि थे। इनकी गणना सप्तर्षि गणों में की जाती थी। हिन्दू मान्यता अनुसार इनके वंशज ही सृष्टि के प्रसार में सहायक हुए। इनके पिता ब्रह्मा के पुत्र मरीचि ऋषि थे। कश्यप ऋषि प्राचीन वैदिक ॠषियों में प्रमुख ॠषि हैं जिनका उल्... अधिक पढ़ें

चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व 376 - ईसापूर्व 283) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे 'कौटिल्य' नाम से भी विख्यात हैं। वे तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य थे , उन्होंने मुख्यत: भील और किरात राजकुमारों को प्रशिक्षण दिया । उन्होंने नंदवंश का न... अधिक पढ़ें
बृहदारण्यक उपनिषद और चंडोग्य उपनिषद में उल्लिखित वैदिक काल के दौरान प्रवाहन जयवली पांचाल के राजा थे। काशी के राजा अजातशत्रु और मद्र के राजा अश्वपति कैकेय की तरह, उन्हें एक प्रमुख हिंदू दार्शनिक-राजा के रूप में दर्शाया गया ... अधिक पढ़ें

गौतम बुद्ध (जन्म 563 ईसा पूर्व – निर्वाण 483 ईसा पूर्व) एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ।इनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ... अधिक पढ़ें

भगवान महावीर जैन धर्म के चौंबीसवें (24वें) तीर्थंकर है। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त ह... अधिक पढ़ें

मक्खलि गोसाल, महावीर स्वामी के समकालीन थे, प्रारम्भ में इन्होंने महावीर स्वामी का शिष्यत्व ग्रहण किया, किन्तु बाद में मतभेद हो जाने से, इन्होंने एक स्वतंत्र सम्प्रदाय की स्थापना की, जिसे आजीवक सम्प्रदाय कहा गया.
भगवान बुद्ध के समकालीन एवं तरह-तरह के मतों का प्रतिपादन करने वाले जो कई धर्माचार्य मंडलियों के साथ घूमा करते थे उनमें अजित केशकंबली भी एक प्रधान आचार्य थे। इनका नाम था अजित और केश का बना कंबल धारण करने के कारण वह केशकंबली नाम ... अधिक पढ़ें
तत्वोषप्लवसिंह भारतीय दर्शन का आठवीं शताब्दी का ग्रन्थ है, जो जयराशि भट्ट द्वारा कृत है। तत्वोषप्लवम्निंह के अनुसार ज्ञान का कोई भी स्रोत वैध नहीं है। अत: हमें किसी भी प्रकार का निश्चित ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता है। तत्वोषप्लव... अधिक पढ़ें

स्वामी विवेकानन्द (जन्म: 12 जनवरी,1863 - मृत्यु: 4 जुलाई,1902) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महा... अधिक पढ़ें
रघुनाथ शिरोमणि ( 1477–1547 ) एक भारतीय दार्शनिक और तर्कशास्त्री थे। उनका जन्म पश्चिम बंगाल राज्य के वर्तमान नादिया जिले के नबाद्वीप में हुआ था। वह वासुदेव शर्वभूमा के शिष्य थे। उन्होंने विश्लेषणात्मक शक्ति के अपने क्षेत्र में भारतीय औपचारिक तर्क के अंतिम विकास का प्रतिनिधित्व करते हुए, नयाया, नव्य न्याय का नया स्कूल लाया।

बोधिधर्म एक महान भारतीय बौद्ध भिक्षु एवं विलक्षण योगी थे। इन्होंने 520 या 526 ई. में चीन जाकर ध्यान-सम्प्रदाय (झेन बौद्ध धर्म) का प्रवर्तन या निर्माण किया। ये दक्षिण भारत के कांचीपुरम के राजा सुगन्ध के तृतीय पुत्र थे। इन्होंने अपनी चीन-... अधिक पढ़ें

गुरु बसव या बसवेश्वर(1134-1196) एक दार्शनिक और सामाजिक सुधारक थे। उन्होने हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था और अनुष्ठान के विरुद्ध संघर्ष किया। उन्हें विश्व गुरु और भक्ति भंडारी भी कहा जाता है। अपनी शिक्षाओं और preachings सभी सीमाओं से परे जा... अधिक पढ़ें

कपिल प्राचीन भारत के एक प्रभावशाली मुनि थे।उन्हे प्राचीन ऋषि कहा गया है। इन्हें सांख्यशास्त्र (यानि तत्व पर आधारित ज्ञान) के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है जिसके मान्य अर्थों के अनुसार विश्व का उद्भव विकासवादी प्रक्रिया से हुआ है। कई ... अधिक पढ़ें

नारायण गुरु भारत के महान संत एवं समाजसुधारक थे। कन्याकुमारी जिले में मारुतवन पहाड़ों की एक गुफा में उन्होंने तपस्या की थी। गौतम बुद्ध को गया में पीपल के पेड़ के नीचे बोधि की प्राप्ति हुई थी। नारायण गुरु को उस परम की प्राप्ति गुफा में हुई।

मोहनदास करमचन्द गांधी (जन्म:2 अक्टूबर 1869; निधन:30 जनवरी 1948) जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है, भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) क... अधिक पढ़ें

बौद्ध आचार्य असंग, योगाचार परंपरा के आदिप्रवर्तक माने जाते हैं। महायान सूत्रालंकार जैसा प्रौढ़ ग्रंथ लिखकर इन्होंने महायान संप्रदाय की नींव डाली और यह पुराने हीनयान संप्रदाय से किस प्रकार उच्च कोटि का है, इसपर जोर दिया। इनका जन्म गांधार... अधिक पढ़ें

अत्री एक वैदिक ऋषि, यह ब्रमहा जी के मानस पुत्रों में से एक थे। अत्री हिंदू परंपरा में सप्तर्षि (सात महान वैदिक ऋषियों) में से एक हैं| अयोध्या नरेश श्रीराम उनके वनवास कालमे भार्या सीता तथा बंधू लक्ष्मण के साथ अत्री ऋषीके आश्रम चित्रकुटमे गय... अधिक पढ़ें

जैमिनि प्राचीन भारत के एक महान ऋषि थे। वे पूर्व मीमांसा के प्रवर्तक थे। वे वेदव्यास के शिष्य थे। इन्हीं व्यास ने ब्रह्मसूत्र की, उपनिषदों के आधार पर, रचना की। इसी को "भिक्षुसूत्र" भी कहते हैं जिसका उल्लेख पाणिनि ने अष्टाध्यायी में क... अधिक पढ़ें

वशिष्ठ वैदिक काल के विख्यात ऋषि थे। वशिष्ठ एक सप्तर्षि हैं - यानि के उन सात ऋषियों में से एक जिन्हें ईश्वर द्वारा सत्य का ज्ञान एक साथ हुआ था और जिन्होंने मिलकर वेदों का दर्शन किया (वेदों की रचना की ऐसा कहना अनुचित होगा क्योंकि वे... अधिक पढ़ें

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, 11 दिसम्बर 1931 - 19 जनवरी 1990), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्... अधिक पढ़ें

अष्टावक्र अद्वैत वेदान्त के महत्वपूर्ण ग्रन्थ अष्टावक्र गीता के ऋषि हैं। अष्टावक्र गीता अद्वैत वेदान्त का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। 'अष्टावक्र' का अर्थ 'आठ जगह से टेढा' होता है। कहते हैं कि अष्टावक्र का शरीर आठ स्थानों से टेढ़ा था।

नागार्जुन (बौद्धदर्शन) शून्यवाद के प्रतिष्ठापक तथा माध्यमिक मत के पुरस्कारक प्रख्यात बौद्ध आचार्य थे। कहा जाता है कि सापेक्षिकता का सिद्धांत इन्होंने उसी समय दे दिया था | युवान् च्वाङू के यात्राविवरण से पता चलता है कि ये महाकौशल ... अधिक पढ़ें

सप्तर्षि (सप्त + ऋषि) सात ऋषियों को कहते हैं जिनका उल्लेख वेद एवं अन्य हिन्दू ग्रन्थों में अनेकों बार हुआ है। वेदों का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियों या ऋषि कुल के नामों का पता चलता है वे नाम क्रमश: इस प्रकार है:- 1.वशिष्ठ, 2.विश्वा... अधिक पढ़ें

जिद्दू कृष्णमूर्ति (12 मई 1895 - 17 फरवरे, 1986) दार्शनिक एवं आध्यात्मिक विषयों के लेखक एवं प्रवचनकार थे। वे मानसिक क्रान्ति (psychological revolution), मस्तिष्क की प्रकृति, ध्यान, मानवी सम्बन्ध, समाज में सकारात्मक परिवर्तन... अधिक पढ़ें
स्कंद पुराण के अनुसार पिप्पलाद याज्ञवल्क्य ऋषि के संबंधी थे। श्रीमद्भागवत में वेदव्यास की शिष्यपरंपरा उल्लिखित है। वेदव्यास ने अथर्ववेद संहिता अपने शिष्य सुमंतु को दी। पिप्पलाद सुमंतु के शिष्यों में आते हैं। अथर्ववेद की एक शाखा ही... अधिक पढ़ें

आदि शंकर ये भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। उन्होने अद्वैत वेदान्त को ठोस आधार प्रदान किया। उन्होने सनातन धर्म की विविध विचारधाराओं का एकीकरण किया। उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद... अधिक पढ़ें

रामानुजाचार्य ( जन्म: 1017 - मृत्यु: 1137) विशिष्टाद्वैत वेदान्त के प्रवर्तक थे। वह ऐसे वैष्णव सन्त थे जिनका भक्ति परम्परा पर बहुत गहरा प्रभाव रहा। वैष्णव आचार्यों में प्रमुख रामानुजाचार्य की शिष्य परम्परा में ही रामानन्द हुए जिनके... अधिक पढ़ें

पाणिनि (700 ई पू) संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं। इनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण ... अधिक पढ़ें

बुद्धघोष, पालि साहित्य के एक महान भारतीय बौद्धाचार्य और विद्वान थे। बुद्धघोसुपत्ति सद्धम्मसंगह, गंधवंश और शासन वंश में बुद्धघोष का जीवनचरित्र विस्तार से मिलता है, किंतु ये रचनाएँ 14वीं से 19वीं शती तक की हैं। इनसे पूर्व का एकमात... अधिक पढ़ें

रमण महर्षि (1879-1950) अद्यतन काल के महान ऋषि और संत थे। उन्होंने आत्म विचार पर बहुत बल दिया। उनका आधुनिक काल में भारत और विदेश में बहुत प्रभाव रहा है।रमण महर्षि ने अद्वैतवाद पर जोर दिया। उन्होंने उपदेश दिया कि परमानंद की प्राप्ति 'अहम्' को मिटाने तथा अंत:साधना से होती है। रमण ने संस्कृत, मलयालम, एवं तेलुगु भाषाओं में लिखा। बाद में आश्रम ने उनकी रचनाओं का अनुवाद पाश्चात्य भाषाओं में किया।

वात्स्यायन या मल्लंग वात्स्यायन भारत के एक प्राचीन दार्शनिक थे। जिनका समय गुप्तवंश के समय (6ठी शताब्दी से 8वीं शताब्दी ) माना जाता है। उन्होने कामसूत्र एवं न्यायसूत्रभाष्य की रचना की। महर्षि वात्स्यायन ने कामसूत्र में न केवल दाम्प... अधिक पढ़ें

वसुगुप्त (860-925) को कश्मीर शैव दर्शन (प्रत्यभिज्ञा दर्शन) की परम्परा का प्रणेता माना जाता है। उन्होंने शिवसूत्र की रचना की थी, जो कश्मीर शैव धर्म की अद्वैत परंपरा का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसे त्रिक भी कहा जाता है (जिसे कभी-कभी त्रिक योग भी कहा जाता है)। वसुगुप्त के जीवन के बारे में बहुत कम लोगों को पता है कि वे कश्मीर में रहते थे और 9 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में थे।

चंद्रकीर्ति - बौद्ध माध्यमिक सिद्धांत के व्याख्याता एक अचार्य। तिब्बती इतिहासलेखक तारानाथ के कथनानुसार चंद्रकीर्ति का जन्म दक्षिण भारत के किसी 'समंत' नामक स्थान में हुआ था। लड़कपन से ही ये बड़े प्रतिभाशाली थे। बौद्ध धर्म में दीक्षित हो... अधिक पढ़ें

चार्वाक दर्शन एक प्राचीन भारतीय भौतिकवादी नास्तिक दर्शन है। यह मात्र प्रत्यक्ष प्रमाण को मानता है तथा पारलौकिक सत्ताओं को यह सिद्धांत स्वीकार नहीं करता है।... अधिक पढ़ें

अरविन्द घोष या श्री अरविन्द एक योगी एवं दार्शनिक थे। वे 15 अगस्त 1872 को कलकत्ता में जन्मे थे। इनके पिता एक डाक्टर थे। इन्होंने युवा अवस्था में स्वतन्त्रता संग्राम में क्रान्तिकारी के रूप में भाग लिया, किन्तु बाद में यह एक योगी बन... अधिक पढ़ें

जमदग्नि ऋषि एक ऋषि थे, जो भृगुवंशी ऋचीक के पुत्र थे तथा जिनकी गणना सप्तऋषियों में होती है। पुराणों के अनुसार इनकी पत्नी रेणुका थीं, व इनका आश्रम सरस्वती नदी के तट पर था। वैशाख शुक्ल तृतीया इनके पांचवें प्रसिद्ध पुत्र प्रदोषकाल में जन्मे थे जिन्हें परशुराम के नाम से जाना जाता है।

अजातशत्रु मगध के एक प्रतापी सम्राट थे। ये हर्यक वंश से संबंधित थे। ये बिंबिसार के पुत्र थे जिन्होंने अपने पिता को मारकर राज्य प्राप्त किया था। इन्होंने अंग, लिच्छवि, वज्जी, कोसल तथा काशी जनपदों को अपने राज्य में मिलाकर एक विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की। अजातशत्रु के समय में मगध मध्यभारत का एक बहुत की शक्तिशाली राज्य था।
उदयनाचार्य प्रसिद्ध नैयायिक। उन्होने नास्तिकता के विरोध में ईश्वरसिद्धि के लिए आज से हजारों वर्ष पूर्व न्यायकुसुमांजलि नामक एक अत्यन्त पाण्डित्यपूर्ण ग्रन्थ लिखा। ये मिथिला के निवासी थे, जहाँ 'करियौन' नामक ग्राम में, इनके वंशज आज भी निवा... अधिक पढ़ें

गोरखनाथ या गोरक्षनाथ जी महाराज प्रथम शताब्दी के पूर्व नाथ योगी के थे ( प्रमाण है राजा विक्रमादित्य के द्वारा बनाया गया पञ्चाङ्ग जिन्होंने विक्रम संवत की शुरुआत प्रथम शताब्दी से की थी जब कि गुरु गोरक्ष नाथ जी राजा भर्तृहरि एवं इनके... अधिक पढ़ें

भगवान पार्श्वनाथ जैन धर्म के तेइसवें (23वें) तीर्थंकर हैं। जैन ग्रंथों के अनुसार वर्तमान में काल चक्र का अवरोही भाग, अवसर्पिणी गतिशील है और इसके चौथे युग में 24 तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। पार्श्व नाथ की शिक्षाएं:- सदा सत्य बोलना चोरी ना करना संपत्ति ग्रहण ना करना हिंसा न करना आत्म संयम

धर्मकीर्ति (7वीं सती) भारत के विद्वान एवं भारतीय दार्शनिक तर्कशास्त्र के संस्थापकों में से थे। बौद्ध परमाणुवाद के मूल सिद्धान्तकारों में उनकी गणना की जाती है। वे नालन्दा में कार्यरत थे। सातवीं सदी के बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्ति को यूरोपी... अधिक पढ़ें

मध्वाचार्य, माधवाचार्य विद्यारण्य से भिन्न हैं। माधवाचार्य (1238-1317) भारत में भक्ति आन्दोलन के समय के सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिकों में से एक थे। वे पूर्णप्रज्ञ व आनन्दतीर्थ के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। वे तत्ववाद के प्रवर्तक थे जिसे... अधिक पढ़ें

डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (तमिल: சர்வபள்ளி ராதாகிருஷ்ணன்; 5 सितम्बर 1888 – 17 अप्रैल 1975) भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति (1952 - 1962) और द्वितीय राष्ट्रपति रहे। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शन... अधिक पढ़ें

विश्वामित्र वैदिक काल के विख्यात ऋषि (योगी) थे। ऋषि विश्वामित्र बड़े ही प्रतापी और तेजस्वी महापुरुष थे। ऋषि धर्म ग्रहण करने के पूर्व वे बड़े पराक्रमी और प्रजावत्सल नरेश थे ! विश्वमित्र जी को गायत्री मन्त्र का दृष्टांत हुआ। प्रजापति के पुत... अधिक पढ़ें

तिरुवल्लुवर एक प्रख्यात तमिल कवि हैं जिन्होंने तमिल साहित्य में नीति पर आधारित कृति थिरूकुरल का सृजन किया। उन्हें थेवा पुलवर, वल्लुवर और पोयामोड़ी पुलवर जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। सभी प्रमुख भारतीय धर्मों के साथ-साथ 19 वीं शताब्दी के ईसाई मिशनरियों ने भी उन्हें गुप्त रूप से प्रेरित (क्रिप्टो-) या मूल रूप से अपनी परंपरा से संबंधित होने का दावा करने की कोशिश की है।

आचार्य उमास्वामी, कुन्दकुन्द स्वामी के प्रमुख शिष्य थे। वह मुख्य जैन ग्रन्थ, तत्त्वार्थ सूत्र के लेखक है। वह दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों के द्वारा पूजे जाते हैं। वह दूसरी सदी के एक गणितज्ञ थे। उन्होंने जैन पाठ तत्त्वार्थ सूत्... अधिक पढ़ें

याज्ञवल्क्य (ईसापूर्व 7वीं शताब्दी), भारत के वैदिक काल के एक ऋषि तथा दार्शनिक थे। वे वैदिक साहित्य में शुक्ल यजुर्वेद की वाजसेनीय शाखा के द्रष्टा हैं। इनको अपने काल का सर्वोपरि वैदिक ज्ञाता माना जाता है। याज्ञवल्क्य का दूसरा महत्वपूर्... अधिक पढ़ें

आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।
उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में... अधिक पढ़ें

एकनाथ इश्वरन (दिसम्बर 17, 1910 – अक्टूबर 26, 1999) भारत में जन्मे आध्यात्मिक गुरु, लेख और अनुवादक थे जिन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता और उपनिषद् जैसे भारतीय धार्मिक सामग्री को भाषांतरित किया। वर्ष 1961 में इश्वरण ने उत्तरी कैलिफोर्निया... अधिक पढ़ें

बादरायण वेदान्त के न्याय-प्रस्थान के प्रवर्तक ग्रन्थ ब्रह्मसूत्र के रचयिता थे। जितने ब्रह्मसूत्र उपलब्ध हैं, उनका रचयिता एक ही व्यक्ति था और वे बादरायण थे। वाचस्पतिमिश्र के समय से बादरायण को 'व्यास' भी कहा जाने लगा था, किन्तु ब्रह्मस... अधिक पढ़ें

भारद्वाज प्राचीन भारतीय ऋषि थे। । चरक संहिता के अनुसार भारद्वाज ने इन्द्र से आयुर्वेद का ज्ञान पाया। ऋक्तंत्र के अनुसार वे ब्रह्मा, बृहस्पति एवं इन्द्र के बाद वे चौथे व्याकरण-प्रवक्ता थे। उन्होंने व्याकरण का ज्ञान इन्द्र से प्राप्त ... अधिक पढ़ें

मुहम्मद इक़बाल मसऊदी (जीवन: 9 नवम्बर 1877 – 21 अप्रैल 1938) अविभाजित भारत के प्रसिद्ध कवि, नेता और दार्शनिक थे। उर्दू और फ़ारसी में इनकी शायरी को आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ शायरी में गिना जाता है। इकबाल के दादा सहज सप्रू हिंदू कश्मीरी पंडित थे जो बाद में सिआलकोट आ... अधिक पढ़ें

परमहंस योगानन्द (5 जनवरी 1893 – 7 मार्च 1952), बीसवीं सदी के एक आध्यात्मिक गुरू, योगी और संत थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को क्रिया योग उपदेश दिया तथा पूरे विश्व में उसका प्रचार तथा प्रसार किया। योगानंद के अनुसार क्रिया... अधिक पढ़ें

वसुबन्धु बौद्ध नैयायिक थे। वे असंग के कनिष्ठ भ्राता थे। वसुबन्धु पहले हीनयानी वैभाषिकवेत्ता थे, बाद में असंग की प्रेरणा से इन्होंने महायान मत स्वीकार किया था। योगाचार के सिद्धांतों पर इनके अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथ प्रसिद्ध हैं। ये उच्चक... अधिक पढ़ें

कुमारिल भट्ट (लगभग 650 ई) मीमांसा दर्शन के दो प्रधान संप्रदायों में से एक भटसंप्रदाय के संस्थापक थे। उन्होने बौद्ध धर्म को भारत से समूल उखाड़ने के लिए बौद्धिक दिग्विजय का दिव्य अभियान चलाया। कुमारिल भट ने जो आध... अधिक पढ़ें

चैतन्य महाप्रभु (18 फरवरी, 1486-1534) वैष्णव धर्म के भक्ति योग के परम प्रचारक एवं भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी, भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राज... अधिक पढ़ें

दिङ्नाग ( 480-540 ई.) भारतीय दार्शनिक एवं बौद्ध न्याय के संस्थापकों में से एक। प्रमाणसमुच्चय उनकी प्रसिद्ध रचना है। दिङ्नाग संस्कृत के एक प्रसिद्ध कवि थे। वे रामकथा पर आश्रित कुन्दमाला नामक नाटक के रचयिता माने जाते हैं। कुन्दमाला में ... अधिक पढ़ें

गदाधर भट्टाचार्य (1650) नव्य न्याय के यशस्वी नैयायिक थे। वे नवद्वीप के निवासी थे। इन्होंने रघुनाथ की "दीधिति" पर अत्यन्त विसतृत और परिष्कृत टीका की रचना की है जो "गादाधरी" नाम से विख्यात है। व्युत्पत्तिवाद, शक्तिवाद आदि उनके अनेक मौलिक ग्रंथ हैं, जिनसे इनके मौलिक चिंतन की विदग्धता विदित होती है। ये 17 वें शतक में विद्यमान माने जाते हैं।

बृहस्पति का अनेक जगह उल्लेख मिलता है। ये एक तपस्वी ऋषि थे। इन्हें 'तीक्ष्णशृंग' भी कहा गया है। धनुष बाण और सोने का परशु इनके हथियार थे और ताम्र रंग के घोड़े इनके रथ में जोते जाते थे। बृहस्पति का अत्यंत पराक्रमी बताया जाता ... अधिक पढ़ें

श्रीवल्लभाचार्यजी (1479-1531) भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधारस्तंभ एवं पुष्टिमार्ग (pushtimarg) के प्रणेता थे। उनका प्रादुर्भाव विक्रम संवत् 1535, वैशाख कृष्ण एकादशी को दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग ब्रा... अधिक पढ़ें

दीर्घतमस एक प्राचीन ऋषि थे। ऋग्वेद में अपने दार्शनिक छंदों के लिए विख्यात प्राचीन ऋषि थे। उनकी ऋग्वेद की जिनकी दार्शनिक ऋचाएँ प्रसिद्ध हैं। वे ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के 140 से लेकर 164 तक के सूक्तों के रचयिता हैं।

भर्तृहरि एक महान संस्कृत कवि थे। संस्कृत साहित्य के इतिहास में भर्तृहरि एक नीतिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके शतकत्रय (नीतिशतक, शृंगारशतक, वैराग्यशतक) की उपदेशात्मक कहानियाँ भारतीय जनमानस को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। प्रत्येक शतक में सौ-सौ श्लोक हैं। बाद में इन्होंने गुरु गोरखनाथ के शिष्य बनकर वैराग्य धारण कर लिया था इसलिये इनका एक लोकप्रचलित नाम बाबा भरथरी भी है।

ऋषि आत्रेय, या ऐतरेय पुनर्वसु, ऋषि अत्रि के वंशज थे, जो महान हिंदू ऋषियों में से एक थे, जिनकी सिद्धियाँ पुराणों में विस्तृत हैं। वे तक्षशिला, गांधार के मूल निवासी थे। ऋषि अत्रेय आयुर्वेद के प्रसिद्ध विद्वान थे और प्रारंभिक आयुर्वेद के... अधिक पढ़ें

नानक (23 अप्रैल 1469 – 2 अक्टूबर 1539) सिखों के प्रथम (आदि )गुरु हैं। इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु - सभी के गुण समेटे हुए थे।

संजय बेलाथिपुत्त, एक भारतीय तपस्वी शिक्षक थे जो मगध के क्षेत्र में 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास रहते थे। वह महावीर, मक्खली गोशाल और बुद्ध के साथ समकालीन थे, और विचार के संशयवादी अज्ञान दर्शन के प्रस्तावक थे।
आचार्य आनन्दवर्धन, काव्यशास्त्र में ध्वनि सम्प्रदाय के प्रवर्तक के रूप में प्रसिद्ध हैं। काव्यशास्त्र के ऐतिहासिक पटल पर आचार्य रुद्रट के बाद आचार्य आनन्दवर्धन आते हैं और इनका ग्रंथ ‘ध्वन्यालोक’ काव्य शास्त्र के इतिहास में म... अधिक पढ़ें

अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (1 सितम्बर 1896 – 14 नवम्बर 1977) जिन्हें स्वामी श्रील भक्तिवेदांत प्रभुपाद के नाम से भी जाना जाता है,सनातन हिन्दू धर्म के एक प्रसिद्ध गौडीय वैष्णव गुरु तथा धर्मप्रचारक थे। आज संपूर्ण विश... अधिक पढ़ें

रबीन्द्रनाथ ठाकुर (बांग्ला: রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর) (7 मई, 1861 – 7 अगस्त, 1941) विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के ... अधिक पढ़ें

पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य (20 सितम्बर 1911 - 02 जून 1990) भारत के एक युगदृष्टा मनीषी थे जिन्होंने अखिल विश्व गायत्री परिवार की स्थापना की। उनने अपना जीवन समाज की भलाई तथा सांस्कृतिक व चारित्रिक उत्थान के लिये समर्... अधिक पढ़ें

ये गोनर्द (संभवता गोंडा जिला) के निवासी थे, बाद में वे काशी में बस गए , इनकी माता का नाम गोणिका था। पतंजलि योगसूत्र के रचनाकार है जो हिन्दुओं के छः दर्शनों (न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा, वेदान्त) में से एक है। भारतीय साहित्य... अधिक पढ़ें
उद्दालक, उपनिषद् युग के श्रेष्ठ तत्ववेत्ताओं में मूर्धन्य चिंतक थे। ये गौतम गोत्रीय अरुणि ऋषि के पुत्र थे और इसीलिए 'आरुणि' के नाम से विशेष प्रख्यात हैं। ये महाभारत में धौम्य ऋषि के शिष्य तथा अपनी एकनिष्ठ गुरुसेवा के निमित्त आदर्श... अधिक पढ़ें

श्री जीव गोस्वामी (1513-1598), वृंदावन में चैतन्य महाप्रभु द्वारा भेजे गए छः षण्गोस्वामी में से एक थे। उनकी गणना गौड़ीय सम्प्रदाय के सबसे महान दार्शनिकों एवं सन्तों में होती है। उन्होने भक्ति योग, वैष्णव वेदान्त आदि पर अनेकों... अधिक पढ़ें

रैक्व एक तत्वज्ञानी ऋषि थे। वे वायु को सृष्टि का आदिकारण मानते हैं (छांदोग्य, 4-3-1-2)। गाड़ी के नीचे निवास करने के कारण रेक्व 'सयुग्वा' कहलाए (पद्म.उ. 176)। जनश्रुति है कि राजा मृगया के समय दो हंसों के वार्तालाप में इनके पुण्य की प्रशं... अधिक पढ़ें
श्रीहर्ष 12वीं सदी के संस्कृत के प्रसिद्ध कवि तथा दार्शनिक थे। उनमें उच्चकोटि की काव्यात्मक प्रतिभा थी तथा वे अलंकृत शैली के सर्वश्रेष्ठ कवि थे। वे शृंगार के कला पक्ष के कवि थे। महान कवि होने के साथ-साथ वे बड़े दार्शनिक भी थे। ‘खण्डन-... अधिक पढ़ें

अक्षपाद, न्यायसूत्र के रचयिता आचार्य हैं, उन्हें महर्षि गोतम या गौतम भी कहा जाता है। महाकवि भास के अनुसार न्यायशास्त्र के रचयिता का नाम मेधातिथि है (प्रतिमा नाटक, पंचम अंक)। महाभारत (शांति पर्व, अ. 265) के अनुसार गौतम मेधातिथि दो... अधिक पढ़ें

वररुचि कात्यायन पाणिनीय सूत्रों के प्रसिद्ध वार्तिककार हैं। वररुचि कात्यायन के वार्तिक पाणिनीय व्याकरण के लिए अति महत्वशाली सिद्ध हुए हैं। इन वार्तिकों के बिना पाणिनीय व्याकरण अधूरा सा रहा जाता। वार्तिकों के आधार पर ही पीछे से पतंजलि ... अधिक पढ़ें

नचिकेता, वैदिक युग के एक तेजस्वी ऋषिबालक थे। इनकी कथा तैतरीय ब्राह्मण (3.11.8) तथा कठोपनिषद् तथा महाभारत में उपलब्ध होती है। उन्होने भौतिक वस्तुओं का परित्याग किया तथा यम से आत्मा और ब्रह्म विषय पर ज्ञान प्राप्त किया। नचिकेता उद्दा... अधिक पढ़ें

श्रीमद राजचन्द्र, जन्म रायचन्दभाई रावजीभाई मेहता, एक जैन कवि, दार्शनिक और विद्वान थे। उन्हें मुख्यतः उनके जैनधर्म शिक्षण और महात्मा गांधी के आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में जाना जाता है।महात्मा गांधी जी ने अपनी आत्मकथा "स... अधिक पढ़ें

पराशर एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि, शास्त्रवेत्ता, ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार है। येे महर्षि वसिष्ठ के पौत्र, गोत्रप्रवर्तक, वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार भी हैं। पराशर शर-शय्या पर पड़े भीष्म से मिलने गये थे। परीक्षित् के प्रायोपवेश के समय उपस्थित कई ऋषि-मुनियों में वे भी थे। वे छब्बीसवें द्वापर के व्यास थे। जनमेजय के सर्पयज्ञ में उपस्थित थे।

कुंदकुंदाचार्य दिगंबर जैन संप्रदाय के सबसे प्रसिद्ध आचार्य थे। इनका एक अन्य नाम 'कौंडकुंद' भी था। इनके नाम के साथ दक्षिण भारत का कोंडकुंदपुर नामक नगर भी जुड़ा हुआ है। प्रोफेसर ए॰ एन॰ उपाध्ये के अनुसार इनका समय पहली शताब्दी ई॰ है परं... अधिक पढ़ें

चम्पत राय जैन (1867-1942) 20वीं सदी के एक प्रभावशाली जैन लेखक और तुलनात्मक धर्म के विद्वान थे। उन्होने कई यूरोपी देशों का दौरा किया और जैन धर्म और तुलनात्मक धर्म पर भाषण दिए। इन्हें भारत धर्म मंडल ने "विद्या वरिधि", की सम्मानजनक उपाधि प्रदान की।

गौड़पाद या गौडपादाचार्य, भारत के एक दार्शनिक थे। उन्होने माण्डूक्यकारिका नामक नामक दार्शनिक ग्रन्थ की रचना की, जिसमें माध्यमिक दर्शन की शब्दावली का प्रयोग करते हुए अद्वैत वेदान्त के सिद्धान्तों की व्याख्या की गयी है। अद्वैत वेदांत की परंपरा में गौड़पादाचार्य को आदि शंकराचार्य के 'परमगुरु' अर्थात् शंकर के गुरु गोविंदपाद के गुरु के रूप में स्मरण किया जाता है।

वाल्मीकि, संस्कृत रामायण के प्रसिद्ध रचयिता हैं जो आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने संस्कृत मे रामायण की रचना की।महर्षि वाल्मीकि मूलतः ब्राह्मण थे, उनके द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई। रामायण एक महाकाव्य है जो कि र... अधिक पढ़ें

भीमराव रामजी आम्बेडकर (14 अप्रैल, 1891 – 6 दिसंबर, 1956), डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) स... अधिक पढ़ें
उद्योतकर (635 ई.) न्याय दर्शन के आचार्य थे। गौतम के न्यायशास्त्र पर वात्स्यायन का भाष्य था। बौद्ध दार्शनिक दिंनाग ने अपने प्रमाणसमुच्चय में इस भाष्य की बड़ी आलोचना की। उद्योतकर ने वात्स्यायन भाष्य पर वार्तिक लिखकर न्यायशास्त्र की दृष्टि ... अधिक पढ़ें

भावविवेक या भाव्य (तिब्बती भाषा : slob-dpon bha-vya or skal-ldan/legs-ldan, c.500-c.578), बौद्ध धर्म के माध्यमक शाखा के स्वतंत्रिक परम्परा के संस्थापक दार्शनिक थे। एम्स (Ames 1993: p. 210), का विचार है कि भावविवेक उन प्रथम तर्कशास्त्रि... अधिक पढ़ें
वाचस्पति मिश्र (900 - 980 ई) भारत के दार्शनिक थे जिन्होने अद्वैत वेदान्त का भामती नामक सम्प्रदाय स्थापित किया। वाचस्पति मिश्र ने नव्य-न्याय दर्शन पर आरम्भिक कार्य भी किया जिसे मि... अधिक पढ़ें
गंगेश उपाध्याय भारत के 13वी शती के गणितज्ञ एवं नव्य-न्याय दर्शन परम्परा के प्रणेता प्रख्यात नैयायिक थे। उन्होंने वाचस्पति मिश्र (900 - 980) की विचारधारा को बढ़ाया। अनुमान किया जाता है कि गंगेश उप... अधिक पढ़ें

महर्षि महेश योगी (जन्म 12 जनवरी 1918 -निधन 5 फरवरी 2008 ) का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम महेश प्रसाद वर्मा था। उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक की... अधिक पढ़ें

कृष्ण चन्द्र भट्टाचार्य (जन्म: 12 मई, 1875 - मृत्यु: 11 दिसंबर, 1949) कलकत्ता विश्वविद्यालय में दार्शनिक थे, जिन्होंने हिन्दू दर्शन पर अध्ययन किया। कृष्णचन्द्र भट्टाचार्य का जन्म 12 मई, 1875 ई. को सिरामपुर पश्चि... अधिक पढ़ें

वीरचन्द गाँधी (25 अगस्त 1864 - 7 अगस्त 1901) उन्नीसवीं सदी के एक जैन विद्वान थे, जो शिकागो के उस प्रसिद्ध धर्म-सम्मेलन में जैन-प्रतिनिधि बन कर गए थे जिससे स्वामी विवेकानन्द को ख्याति मिली थी। वीरचन्द गाँधी ने अहिंसा के सिद्धान्त को बहुत महत्वपूर्ण बताया था।

महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती (1824-1883) आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक, तथा आर्य समाज के संस्थापक थे। उनके बचपन का नाम 'मूलशंकर' था। उन्होंने वेदों के प्रचार और आर्यावर्त को स्वंत्रता दिलाने के लिए मुम्बई में आ... अधिक पढ़ें

ईश्वरकृष्ण एक प्रसिद्ध सांख्य दर्शनकार थे। इनका काल विवादग्रस्त है। डॉ॰ तकाकुसू के अनुसार उनका समय 450 ई. के लगभग और डॉ॰ वि. स्मिथ के अनुसार 240 ई. के आसपास होना चाहिए। यह प्राय: निश्चित है कि वे बौद्ध दार्शनिक वसुबंधु के गुरु क... अधिक पढ़ें
प्रभाकर बैगा घोघरी (7वीं शताब्दी) भारत के दार्शनिक एवं वैयाकरण थे। वे मीमांसा से सम्बन्धित हैं। उनके गुरु कुमारिल भट्ट थें। एक बार उनसे इनका शास्त्रार्थ हुआ था। इन्होंने गुरु के अभिहितान्वयवाद के विरुद्ध अन्विताभिधानवाद का सिद्धांत रखा। इससे प्रसन्न हो कर गुरु ने इनको भी गुरु की उपाधि दी।शालिकनाथ ने 8वीं शताब्दी में प्रभाकर के ग्रन्थों का भाष्य लिखा।