दर्शन जीवन के अर्थ की खोज, मानव अस्तित्व, उद्देश्य और कभी-कभी ब्रह्मांड से संबंधित विभिन्न तत्वों को गहराई से समझने की एक कला है। दर्शनशास्त्र को पाइथागोरस ने 570 – 495 ईसा पूर्व प्रचलित किया था और तब से कई महान दार्शनिकों ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जन्म लिया है। इन दार्शनिकों ने कई गहन विचारों और विश्वासों पर अध्ययन किया है एवं तर्कसंगत सोच के लिए रास्ता साफ किया है। इन दार्शनिकों का प्रभाव अभी भी कई विश्वास प्रणालियों, प्रथाओं और सामान्य मान्यताओं में मजबूती से मौजूद है। यहां सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली गैर-भारतीय दार्शनिकों की सूची दी गई है। इन दार्शनिकों ने राजनीतिक व्यवस्था और कई बार वैज्ञानिक मान्यताओं को भी चुनौती दी है और दुनिया की व्यवस्था को एक सुन्दर आकार दिया है। मानव अस्तित्व, अंतर्दृष्टि, मानव मूल्यों, तर्क, मन और भाषा पर इनका अध्ययन आज भी विभिन्न अनुसंधानों में मार्गदर्शन कर रहा है।
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प्लोटिनस एक प्रमुख हेलेनिस्टिक दार्शनिक थे जो रोमन मिस्र में रहते थे। एन्नोइड्स में वर्णित उनके दर्शन में, तीन सिद्धांत हैं: एक, बुद्धि और आत्मा। उनके शिक्षक अम्मोनियस सैकस थे, जो प्लेटोनिक परंपरा के थे। 19 वीं शताब्दी के इतिहासकारों ने नियोप्लाटोनिज्म शब्द का आविष्कार किया और इसे प्लोटिनस और उनके दर्शन पर लागू किया, जो लेट एंटिकिटी और मध्य युग के दौरान प्रभावशाली था। प्लोटिनस के बारे में जीवनी संबंधी अधिकांश जानकारी पॉर्फिरी की प्रस्तावना से प्लॉटिनस एननहेड्स के उनके संस्करण में आती है। उनकी आध्यात्मिक लेखनी ने सदियों से बुतपरस्त, यहूदी, ईसाई, ज्ञानी और इस्लामिक तत्वमीमांसा और मनीषियों को प्रेरित किया है, जिसमें धर्मों के भीतर मुख्यधारा की धर्मशास्त्रीय अवधारणाओं को प्रभावित करने वाले उपदेश शामिल हैं, जैसे कि दो आध्यात्मिक अवस्थाओं में द्वैत पर उनका काम। यह अवधारणा यीशु की ईश्वर की धारणा के समान है, ईश्वर और मनुष्य दोनों, ईसाई धर्मशास्त्र में एक मौलिक विचार है।
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अरस्तु (384 ईपू – 322 ईपू) यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु थे। उनका जन्म स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ था । अरस्तु ने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र, जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचना की। अरस्तु ने अपने गुरु प्लेटो के कार्य को आगे बढ़ाया।
प्लेटो, सुकरात और अरस्तु पश्चिमी दर्शनशास्त्र के सबसे महान दार्शनिकों में एक थे। उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र पर पहली व्यापक रचना की, जिसमें नीति, तर्क, विज्ञान, राजनीति और आध्यात्म का मेलजोल था। भौतिक विज्ञान पर अरस्तु के विचार ने मध्ययुगीन शिक्षा पर व्यापक प्रभाव डाला और इसका प्रभाव पुनर्जागरण पर भी पड़ा। अंतिम रूप से न्यूटन के भौतिकवाद ने इसकी जगह ले लिया।
जीव विज्ञान उनके कुछ संकल्पनाओं की पुष्टि उन्नीसवीं सदी में हुई। उनके तर्कशास्त्र आज भी प्रासांगिक हैं। उनकी आध्यात्मिक रचनाओं ने मध्ययुग में इस्लामिक और यहूदी विचारधारा को प्रभावित किया और वे आज भी क्रिश्चियन, खासकर रोमन कैथोलिक चर्च को प्रभावित कर रही हैं। उनके दर्शन आज भी उच्च कक्षाओं में पढ़ाये जाते हैं।
अरस्तु ने अनेक रचनाएं की थी, जिसमें कई नष्ट हो गई। अरस्तु का राजनीति पर प्रसिद्ध ग्रंथ पोलिटिक्स है।अरस्तु ने जन्तु इतिहास नामक पुस्तक लिखी।इस पुस्तक में लगभग 500 प्रकार के विविध जन्तुओं की रचना,स्वभाव,वर्गीकरण,जनन आदि का व्यापक वर्णन किया गया। अरस्तु को father of bioLogy का सम्मान प्राप्त है।
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सुकरात मौलिक शिक्षा और आचार द्वारा उदाहरण देना ही पसंद था। साधारण शिक्षा तथा मानव सदाचार पर वह जोर देता था और उन्हीं की तरह पुरानी रूढ़ियों पर प्रहार करता था। वह कहता था, ""सच्चा ज्ञान संभव है बशर्ते उसके लिए ठीक तौर पर प्रयत्न किया जाए; जो बातें हमारी समझ में आती हैं या हमारे सामने आई हैं, उन्हें तत्संबंधी घटनाओं पर हम परखें, इस तरह अनेक परखों के बाद हम एक सचाई पर पहुँच सकते हैं। ज्ञान के समान पवित्रतम कोई वस्तु नहीं हैं।'
बुद्ध की भाँति सुकरात ने बहोत सारे ग्रंथ लिखे। बुद्ध के शिष्यों ने उनके जीवनकाल में ही उपदेशों को कंठस्थ करना शुरु किया था जिससे हम उनके उपदेशों को बहुत कुछ सीधे तौर पर जान सकते हैं; किंतु सुकरात के उपदेशों के बारे में यह भी सुविधा नहीं। सुकरात का क्या जीवनदर्शन था यह उसके आचरण से ही मालूम होता है, लेकिन उसकी व्याख्या भिन्न-भिन्न लेखक भिन्न-भिन्न ढंग से करते हैं। कुछ लेखक सुक्रात की प्रसन्नमुखता और मर्यादित जीवनयोपभोग को दिखलाकर कहते हैं कि वह भोगी था। दूसरे लेखक शारीरिक कष्टों की ओर से उसकी बेपर्वाही तथा आवश्यकता पड़ने पर जीवनसुख को भी छोड़ने के लिए तैयार रहने को दिखलाकर उसे सादा जीवन का पक्षपाती बतलाते हैं। सुकरात को हवाई बहस पसंद न थी। वह अथेन्स के बहुत ही गरीब घर में पैदा हुआ था। गंभीर विद्वान् और ख्यातिप्राप्त हो जाने पर भी उसने वैवाहिक जीवन की लालसा नहीं रखी। ज्ञान का संग्रह और प्रसार, ये ही उसके जीवन के मुख्य लक्ष्य थे। उसके अधूरे कार्य को उसके शिष्य अफलातून और अरस्तू ने पूरा किया। इसके दर्शन को दो भागों में बाँटा जा सकता है, पहला सुक्रात का गुरु-शिष्य-यथार्थवाद और दूसरा अरस्तू का प्रयोगवाद।
तरुणों को बिगाड़ने, देवनिंदा और नास्तिक होने का झूठा दोष उसपर लगाया गया था और उसके लिए उसे जहर देकर मारने का दंड मिला था।
सुकरात ने जहर का प्याला खुशी-खुशी पिया और जान दे दी। उसे कारागार से भाग जाने का आग्रह उसे शिष्यों तथा स्नेहियों ने किया किंतु उसने कहा-
भाइयो, तुम्हारे इस प्रस्ताव का मैं आदर करता हूँ कि मैं यहाँ से भाग जाऊँ। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन और प्राण के प्रति मोह होता है। भला प्राण देना कौन चाहता है? किंतु यह उन साधारण लोगों के लिए हैं जो लोग इस नश्वर शरीर को ही सब कुछ मानते हैं। आत्मा अमर है फिर इस शरीर से क्या डरना? हमारे शरीर में जो निवास करता है क्या उसका कोई कुछ बिगाड़ सकता है? आत्मा ऐसे शरीर को बार बार धारण करती है अत: इस क्षणिक शरीर की रक्षा के लिए भागना उचित नहीं है। क्या मैंने कोई अपराध किया है? जिन लोगों ने इसे अपराध बताया है उनकी बुद्धि पर अज्ञान का प्रकोप है। मैंने उस समय कहा था-विश्व कभी भी एक ही सिद्धांत की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। मानव मस्तिष्क की अपनी सीमाएँ हैं। विश्व को जानने और समझने के लिए अपने अंतस् के तम को हटा देना चाहिए। मनुष्य यह नश्वर कायामात्र नहीं, वह सजग और चेतन आत्मा में निवास करता है। इसलिए हमें आत्मानुसंधान की ओर ही मुख्य रूप से प्रवृत्त होना चाहिए। यह आवश्यक है कि हम अपने जीवन में सत्य, न्याय और ईमानदारी का अवलंबन करें। हमें यह बात मानकर ही आगे बढ़ना है कि शरीर नश्वर है। अच्छा है, नश्वर शरीर अपनी सीमा समाप्त कर चुका। टहलते-टहलते थक चुका हूँ। अब संसार रूपी रात्रि में लेटकर आराम कर रहा हूँ। सोने के बाद मेरे ऊपर चादर ओढा देना।
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रेने डेकार्ट जो कि दार्शनिक होने के साथ साथ एक सुप्रसिद्घ गणितज्ञ थे, वे दर्शन को विज्ञान में परिवर्तित करना चाहते थे। आधुनिक पाश्चात्य दर्शन का जनक के रुप में इन्हें जाना जाता है, साथ ही साथ इन्होंने ज्ञान के लिए बुद्धि को सर्वोत्तम राह बताया, क्योंकि इसमें ज्ञान सार्वभौमिक व अनिवार्य होता है,
उनका जन्म 31 मार्च 1596 ई. को हेग में हुआ था। 21 वर्ष की आयु में शिक्षा समाप्त कर ये ओरेंज के राजकुमार मोरिस की सेना में भर्ती हो गए। यहाँ पर प्राप्त अवकाश को ये गणित के अध्ययन में व्यतीत किया करते हैं। इन्होंने कई युद्धों में भी भाग लिया। सेवॉय के ड्यूक के साथ हुए युद्ध में प्रदर्शित वीरता के कारण इनका लेफ्टिनेंट जनरल की उपाधि प्रदान की गई, परंतु इन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया और पेरिस में तीन वर्ष तक शांतिपूर्वक दर्शनशास्त्र की साधना करते रहे। प्रकृति के भेदों की गणित के नियमों से तुलना करने पर इन्होंने आशा प्रकट की कि दोनों के रहस्यों का ज्ञान एक ही प्रकार से किया जा सकता है। इस भाँति इन्होंने तत्वज्ञान में 'कार्तेज़ियनवाद' का आविष्कार किया।
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इम्मैनुएल कांट (1724-1804) जर्मन वैज्ञानिक, नीतिशास्त्री एवं दार्शनिक थे। उसका वैज्ञानिक मत "कांट-लाप्लास परिकल्पना" (हाइपॉथेसिस) के नाम से विख्यात है। उक्त परिकल्पना के अनुसार संतप्त वाष्पराशि नेबुला से सौरमंडल उत्पन्न हुआ। कांट का नैतिक मत "नैतिक शुद्धता" (मॉरल प्योरिज्म) का सिद्धांत, "कर्तव्य के लिए कर्तव्य" का सिद्धांत अथवा "कठोरतावाद" (रिगॉरिज्म) कहा जाता है। उसका दार्शनिक मत "आलोचनात्मक दर्शन" (क्रिटिकल फ़िलॉसफ़ी) के नाम से प्रसिद्ध है।
इम्मैनुएल कांट अपने इस प्रचार से प्रसिद्ध हुये कि मनुष्य को ऐसे कर्म और कथन करने चाहियें जो अगर सभी करें तो वे मनुष्यता के लिये अच्छे हों।
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फ्रेडरिक नीत्शे (15, अक्टूबर, 1844 से 25, अगस्त 1900) जर्मनी का दार्शनिक था। मनोविश्लेषणवाद, अस्तित्ववाद एवं परिघटनामूलक चिंतन (Phenomenalism) के विकास में नीत्शे की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। व्यक्तिवादी तथा राज्यवादी दोनों प्रकार के विचारकों ने उससे प्रेरणा ली है। हालाँकि नाज़ी तथा फासिस्ट राजनीतिज्ञों ने उसकी रचनाओं का दुरुपयोग भी किया। जर्मन कला तथा साहित्य पर नीत्शे का गहरा प्रभाव है। भारत में भी इक़बाल आदि कवियों की रचनाएँ नीत्शेवाद से प्रभावित हैं।
नीत्शे का जन्म लाइपज़िग के निकट रोएकन नामक ग्राम में एक प्रोटेस्टेट पादरी के परिवार में हुआ था। उसके माता-पिता परंपरा से धर्मोपदेश के कार्य में संलग्न परिवारों के वंशज थे। अपने पिता की मृत्यु के समय नीत्शे पाँच वर्ष का था, परंतु उसकी शिक्षा की व्यवस्था उसकी माता ने समुचित ढंग से की। स्कूली शिक्षा में ही वह ग्रीक साहित्य से प्रभावित हो चुका था। धर्मशास्त्र तथा भाषाविज्ञान के अध्ययन के लिए उसने बॉन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहाँ अपने प्राध्यापक रित्शल से घनिष्टता उसके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुई। रित्शल के लाइपज़िग विश्वविद्यालय जाने पर नीत्शे ने भी उसका साथ दिया। 24 वर्ष की ही अवस्था में नीत्शे बेस्ल विश्वविद्यालय में भाषा-विज्ञान के प्राध्यापक पद पर नियुक्त हुआ। नीत्शे को सैनिक जीवन के प्रति भी आकर्षण था। दो बार वह सैनिक बना परंतु दोनों बार उसे अपने पद से हटना पड़ा। पहली बार एक दुर्घटना में घायल होकर और दूसरी बार अस्वस्थ होकर। लाइपज़िग के विद्यार्थी जीवन में ही वह प्रसिद्ध संगीतज्ञ वेगेनर के घनिष्ठ संपर्क में आ चुका था और, साथ ही शोपेनहावर की पुस्तक "संकल्प एवं विचार के रूप में विश्व" से अपनी दर्शन संबंधी धारणाओं के लिए बल प्राप्त कर चुका था। नीत्शे और वेगेनर का संबंध, नीत्शे के व्यक्तित्व को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण सूत्र की भाँति माना जाता है। 1879 ई. में अस्वस्थता के कारण नीत्शे ने प्राध्यापक पद से त्यागपत्र दे दिया। तत्पश्चात लगभग दस वर्षों तक वह स्वास्थ्य की खोज में स्थान स्थान भटकता फिरा; परंतु इसी बीच में उसने उन महान पुस्तकों की रचना की जिनके लिए वह प्रसिद्ध है। 1889 में उसे पक्षाघात का दौरा हुआ और मानसिक रूप से वह सदा के लिए विक्षिप्त हो गया। नीत्शे की मृत्यु के समय तक उसकी रचनाएँ प्रसिद्धि पा चुकी थीं।
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कंफ्यूशियसी दर्शन की शुरुआत 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व चीन में हुई।
जिस समय भारत में भगवान महावीर और बुद्ध धर्म के संबध में नए विचार रख रहें थे, चीन में भी एक महात्मा का जन्म हुआ, जिसका नाम कन्फ़्यूशियस था। उस समय झोऊ राजवंश का बसंत और शरद काल चल रहा था। समय के साथ झोऊ राजवंश की शक्ति शिथिल पड़ने के कारण चीन में बहुत से राज्य कायम हो गये, जो सदा आपस में लड़ते रहते थे, जिसे झगड़ते राज्यों का काल कहा जाने लगा। अतः चीन की प्रजा बहुत ही कष्ट झेल रही थी। ऐसे समय में चीन वासियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने हेतु महात्मा कन्फ्यूशियस का आविर्भाव हुआ।
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जॉन लॉक (1632-1704) आंग्ल दार्शनिक एवं राजनैतिक विचारक थे। जॉन लॉक (29 अगस्त 1632 - 28 अक्टूबर 1704) एक अंग्रेजी दार्शनिक और चिकित्सक थे, जिन्हें व्यापक रूप से प्रबुद्धता के विचारकों के सबसे प्रभावशाली के रूप में माना जाता था और आमतौर पर "फादर ऑफ लिबरलवाद" के रूप में जाना जाता था। सर फ्रांसिस बेकन की परंपरा का पालन करते हुए ब्रिटिश साम्राज्यवादियों में से एक माना जाता है, लॉक सामाजिक अनुबंध सिद्धांत के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है। उनके काम ने महामारी विज्ञान और राजनीतिक दर्शन के विकास को बहुत प्रभावित किया। उनके लेखन ने वोल्टेयर और जीन-जैक्स रूसो, और कई स्कॉटिश प्रबुद्धता चिंतकों, साथ ही अमेरिकी क्रांतिकारियों को प्रभावित किया।
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कार्ल हेनरिक मार्क्स ( 5 मई 1818 - 14 मार्च 1883) एक जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री, इतिहासकार, समाजशास्त्री, राजनीतिक सिद्धांतकार, पत्रकार और समाजवादी क्रांतिकारी थे। जर्मनी के ट्रायर में जन्मे मार्क्स ने विश्वविद्यालय में कानून और दर्शन का अध्ययन किया। उन्होंने 1843 में जेनी वॉन वेस्टफेलन से शादी की। अपने राजनीतिक प्रकाशनों के कारण, मार्क्स स्टेटलेस हो गए और दशकों तक लंदन में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ निर्वासन में रहे, जहाँ उन्होंने जर्मन विचारक फ्रेडरिक एंगेल्स के साथ मिलकर अपने विचार विकसित किए और उनके लेखन को प्रकाशित किया, ब्रिटिश संग्रहालय के पढ़ने के कमरे में शोध। उनके सबसे प्रसिद्ध खिताब 1848 पैम्फलेट द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो और तीन-खंड दास कपिटल (1867-1883) हैं। मार्क्स के राजनीतिक और दार्शनिक विचार का बाद के बौद्धिक, आर्थिक और राजनीतिक इतिहास पर काफी प्रभाव था। उनके नाम का इस्तेमाल विशेषण, संज्ञा और सामाजिक सिद्धांत के स्कूल के रूप में किया गया है।
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सेण्ट थॉमस एक्विनास (Thomas Aquinas ; 1225 – 7 मार्च 1274) को मध्ययुग का सबसे महान राजनीतिक विचारक और दार्शनिक माना जाता है। वह एक महान विद्वतावादी (Scholastic) तथा समन्वयवादी था। प्रो॰ डनिंग ने उसको सभी विद्वतावादी दार्शनिकों में से सबसे महान विद्वतावादी माना है। सेण्ट एक्विनास ने न केवल अरस्तू और आगस्टाइन के बल्कि अन्य विधिवेत्ताओं, धर्मशास्त्रियों और टीकाकारों के भी परस्पर विरोधी विचारों में समन्वय स्थापित किया है। इसलिए एम॰ बी॰ फोस्टर ने उनको विश्व का सबसे महान क्रमबद्ध (systematic) विचारक कहा है। वास्तव में सेण्ट थॉमस एक्विनास ने मध्ययुग के समग्र राजनीतिक चिन्तन का प्रतिनिधित्व किया हैं फोस्टर के मतानुसार वह समूचे मध्यकालीन विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं जैसा कि दूसरा कोई अकेले नहीं कर सका।
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डायोजनीज जिसे डायोजनीज़ द साइनिक भी कहा जाता है। निंदक दर्शन के संस्थापकों में। वह सिनोप में पैदा हुआ था, जो आधुनिक दिन तुर्की के काला सागर तट पर एक इयानियन कॉलोनी था, 412 या 404 ईसा पूर्व में और 323 ईसा पूर्व में कोरिंथ में मृत्यु हो गई थी।
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पटहहोतेप 25 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के अंत और 24 वीं शताब्दी के प्रारंभ में मिस्र के ईसा पूर्व पाँचवें राजवंश के दौरान एक प्राचीन मिस्र का जादूगर था।
पंहोटेप फिफ्थ राजवंश में फिरौन जिदकेरे इसेसी के शासनकाल के दौरान शहर के प्रशासक और पहले मंत्री थे। मिस्र के "ज्ञान साहित्य" के शुरुआती अंश, द मैक्सिम्स ऑफ़ पंहोटेप को लिखने का श्रेय उन्हें उपयुक्त व्यवहार में युवा पुरुषों को निर्देश देने के लिए दिया जाता है।
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एपिक्टेटस एक ग्रीक स्टोइक दार्शनिक था। उनका जन्म हायरपोलिस, फ़्रीगिया (वर्तमान पॉमुकले, तुर्की) में एक दास के रूप में हुआ था और वे अपने निर्वासन तक रोम में रहे, जब वे अपने पूरे जीवन के लिए पश्चिमोत्तर ग्रीस के निकोपोलिस गए थे। उनकी शिक्षाओं को उनके शिष्य एरियन ने अपने प्रवचनों और एनकिरिडियन में लिखा और प्रकाशित किया।
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मॉर्गन स्कॉट पेक (1936–2005) एक अमेरिकी मनोचिकित्सक और लेखक थे, जिन्होंने 1978 में प्रकाशित पुस्तक द रोड लेस ट्रैवल्ड लिखी थी। पेक का जन्म 22 मई, 1936 को, न्यूयॉर्क शहर में, एक वकील और न्यायाधीश, ज़ेबेथ (नी सविले) और डेविड वार्नर पेक के बेटे के रूप में हुआ था। उनके माता-पिता क्वेकर थे। पेक को एक प्रोटेस्टेंट उठाया गया था (उनकी पैतृक दादी एक यहूदी परिवार से थी, लेकिन पेक के पिता ने खुद को के रूप में पहचाना और यहूदी के रूप में नहीं)| उनके माता-पिता ने उन्हें न्यू हैम्पशायर के एक्सेटर में प्रतिष्ठित बोर्डिंग स्कूल फिलिप्स एक्सेटर एकेडमी में भेजा, जब वह 6 साल के थे। अपनी पुस्तक, द रोड लेस ट्रैवल्ड में, वह एक्सेटर में अपने संक्षिप्त प्रवास की कहानी को स्वीकार करता है, और स्वीकार करता है कि यह सबसे दुखद समय था। अंत में, 15 वर्ष की आयु में, अपने तीसरे वर्ष के वसंत की छुट्टी के दौरान, वह घर आया और स्कूल लौटने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उसके माता-पिता ने उसके लिए मनोचिकित्सक से मदद मांगी और वह अवसाद के बाद का निदान कर रहा था एक महीने के लिए मनोरोग अस्पताल में रहने की सिफारिश की जाती है (जब तक कि उसने स्कूल लौटने का विकल्प नहीं चुना)। फिर उन्होंने 1952 के अंत में फ्रेंड्स सेमिनरी (एक निजी के स्कूल) में स्थानांतरित कर दिया, और 1954 में स्नातक किया, जिसके बाद उन्होंने 1958 में हार्वर्ड से बीए और 1963 में केस वेस्टर्न रिज़र्व यूनिवर्सिटी से एमडी की डिग्री प्राप्त की।
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अबू हामिद मुहम्मद इब्न मुहम्मद अल-गज़ाली (c. 1058–1111), पश्चिम में अल-ग़ज़ाली या अलगाज़ेल के नाम से मशहूर, एक मुस्लिम तत्वग्नानी, सूफ़ी जो पर्शिया से थे।
इस्लामी दुनिया में हज़रत मुहम्मद के बाद अगर कोई मुस्लिम समूह को आकर्शित किया या असर रुसूक़ किया तो वो अल-ग़ज़ाली' हैं। इस्लामी समूह में अल-ग़ज़ाली' को मुजद्दिद या पुनर्व्यवस्थीकरण करने वाला माना जाता है। इस्लामी समूह में माना जाता है कि हर शताब्द में एक मुजद्दिद जन्म लेते है, मुस्लिम समूह को धर्ममार्ग पर प्रेरेपित और उत्तेजित करते हैं। इन के कार्य और रचनाएं इतनी प्रबावशाली हैं कि लोग इन को "हुज्जतुल इस्लाम" (इस्लाम का सबूत) कहा करते हैं।
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सोली का क्रिसिपस एक ग्रीक स्टॉइस दार्शनिक था। वह सोली, सिलिसिया के मूल निवासी थे, लेकिन एथेंस में एक युवा के रूप में चले गए, जहां वे स्टोइक स्कूल में क्लीनथेस के शिष्य बन गए। जब क्लींथेस की मृत्यु हो गई, लगभग 230 ईसा पूर्व, क्रिसिपस स्कूल का तीसरा प्रमुख बन गया। एक विपुल लेखक, क्रिसिपस ने स्कूल के संस्थापक, ज़ेनो ऑफ सिटियम के मौलिक सिद्धांतों का विस्तार किया, जिसने उन्हें स्टोइकवाद के द्वितीय संस्थापक का खिताब दिया।
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लयूसिप्पुस कुछ प्राचीन स्रोतों में बताया गया है कि एक दार्शनिक थे जो परमाणुवाद के सिद्धांत को विकसित करने के लिए सबसे पहले यूनानी थे - यह विचार कि सब कुछ पूरी तरह से पूरी तरह से बना है। विभिन्न अपूर्ण, अविभाज्य तत्व जिन्हें परमाणु कहा जाता है। लेउसीपस अक्सर अपने शिष्य डेमोक्रिटस के गुरु के रूप में प्रकट होता है, एक दार्शनिक भी परमाणु सिद्धांत के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है।
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दलाई लामा (तेनजिन ग्यात्सो)
चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो (6 जुलाई, 1935 - वर्तमान) तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरू हैं। उनका जन्म 6 जुलाई 1935 को उत्तर-पूर्वी तिब्बत के ताकस्तेर क्षेत्र में रहने वाले ये ओमान परिवार में हुआ था। दो वर्ष की अवस्था में बालक ल्हामो धोण्डुप की पहचान 13 वें दलाई लामा थुबटेन ग्यात्सो के अवतार के रूप में की गई। दलाई लामा एक मंगोलियाई पदवी है जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर और दलाई लामा के वंशज करूणा, अवलोकेतेश्वर के बुद्ध के गुणों के साक्षात रूप माने जाते हैं। बोधिसत्व ऐसे ज्ञानी लोग होते हैं जिन्होंने अपने निर्वाण को टाल दिया हो और मानवता की रक्षा के लिए पुनर्जन्म लेने का निर्णय लिया हो। उन्हें सम्मान से परमपावन भी कहा जाता है।
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अर्नेस्ट शर्टलेफ़ होम्स
अर्नेस्ट शर्टलेफ़ होम्स (21 जनवरी, 1887 - 7 अप्रैल, 1960) एक अमेरिकी न्यू थॉट लेखक, शिक्षक और नेता थे। वह एक आध्यात्मिक आंदोलन के संस्थापक थे जिसे धार्मिक विज्ञान के रूप में जाना जाता था, न्यू थॉट आंदोलन का एक बड़ा भाग, जिसका आध्यात्मिक दर्शन "दि साइंस ऑफ़ माइंड" के रूप में जाना जाता है। वह 1927 से लगातार प्रकाशन में द साइंस ऑफ़ माइंड और कई अन्य आध्यात्मिक पुस्तकों के लेखक और साइंस ऑफ़ माइंड पत्रिका के संस्थापक थे। उनकी किताबें प्रिंट में रहती हैं, और उन्होंने "माइंड ऑफ़ साइंस" के रूप में पढ़ाए जाने वाले सिद्धांतों को प्रेरित किया है। आध्यात्मिक छात्रों और शिक्षकों की कई पीढ़ियों को प्रभावित किया। होम्स ने इससे पहले एक और न्यू थॉट टीचिंग, डिवाइन साइंस का अध्ययन किया था और वह एक दिव्य विज्ञान मंत्री था। न्यू थॉट्स से परे उनका प्रभाव स्व-सहायता आंदोलन में देखा जा सकता है।
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ज़ीनो ऑफ़ सिटियम फियोनियन मूल का एक हेलेन दार्शनिक था, सिटियम ,साइप्रस से। ज़ेनो दर्शनशास्त्र के स्टोइक स्कूल के संस्थापक थे, जो उन्होंने लगभग 300 ईसा पूर्व एथेंस में पढ़ाया था। Cynics के नैतिक विचारों के आधार पर, स्टोकिज्म ने प्रकृति के अनुसार सदाचार का जीवन जीने से प्राप्त मन की अच्छाई और शांति पर बहुत जोर दिया। यह बहुत लोकप्रिय साबित हुआ, और रोमन काल के माध्यम से हेलेनिस्टिक काल से दर्शन के प्रमुख स्कूलों में से एक के रूप में फला-फूला।
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रॉबर्ट बॉयस ब्रैंडोम (जन्म 13 मार्च 1950) एक अमेरिकी दार्शनिक हैं जो पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं। वह मुख्य रूप से भाषा के दर्शन, मन के दर्शन और दार्शनिक तर्क में काम करता है, और उसका अकादमिक आउटपुट इन विषयों में व्यवस्थित और ऐतिहासिक दोनों तरह के हितों को दर्शाता है। उनके कार्यों ने "सामाजिक रूप से मानक-शासित उपयोग (" अर्थ के रूप में उपयोग ", विट्गेन्स्टाइनियन नारे का हवाला देते हुए) के संदर्भ में भाषाई वस्तुओं के अर्थ को समझाने के लिए" पूरी तरह से व्यवस्थित और तकनीकी रूप से कठोर प्रयास "प्रस्तुत किया है, जिससे एक गैर भी मिल रहा है विचार की जानबूझकर और कार्रवाई की तर्कसंगतता के रूप में अच्छी तरह से प्रतिनिधित्व करते हैं।
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सामोस के पाईथोगोरस का जन्म 580 और 572 ई॰पू॰ के बीच हुआ और मृत्यु 500 और 490 ई॰पू॰ के बीच हुई), या फ़ीसाग़ोरस, एक अयोनिओयन ग्रीक गणितज्ञ और दार्शनिक थे और पाईथोगोरियनवाद (Pythagoreanism) नामक धार्मिक आन्दोलन के संस्थापक थे। उन्हें अक्सर एक महान गणितज्ञ, रहस्यवादी और वैज्ञानिक के रूप में सम्मान दिया जाता है; हालाँकि कुछ लोग गणित और प्राकृतिक दर्शन में उनके योगदान की संभावनाओं पर सवाल उठाते हैं। हीरोडोट्स उन्हें "यूनानियों के बीच सबसे अधिक सक्षम दार्शनिक" मानते हैं। उनका नाम उन्हें पाइथिआ और अपोलो से जोड़ता है; एरिस्तिपस (Aristippus) ने उनके नाम को यह कह कर स्पष्ट किया कि "वे पाइथियन (पाइथ-) से कम सच (एगोर-) नहीं बोलते थे," और लम्ब्लिकास (Iamblichus) एक कहानी बताते हैं कि पाइथिआ ने भविष्यवाणी की कि उनकी गर्भवती माँ एक बहुत ही सुन्दर, बुद्धिमान बच्चे को जन्म देगी जो मानव जाती के लिए बहुत ही लाभकारी होगा।
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गाटफ्रीड विलहेल्म लाइबनिज
गाटफ्रीड विलहेल्म लाइबनिज ( 1 जुलाई 1646 - 14 नवम्बर 1716) जर्मनी के दार्शनिक, वैज्ञानिक, गणितज्ञ, राजनयिक, भौतिकविद्, इतिहासकार, राजनेता, विधिकार थे। उनका पूरा नाम 'गोतफ्रीत विल्हेल्म फोन लाइब्नित्स' था। गणित के इतिहास तथा दर्शन के इतिहास में उनका प्रमुख स्थान है।
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एडम स्मिथ (5जून 1723 से 17 जुलाई 1790) एक ब्रिटिश नीतिवेत्ता, दार्शनिक और राजनैतिक अर्थशास्त्री थे। उन्हें अर्थशास्त्र का पितामह भी कहा जाता है।आधुनिक अर्थशास्त्र के निर्माताओं में एडम स्मिथ (जून 5, 1723—जुलाई 17, 1790) का नाम सबसे पहले आता है. उनकी पुस्तक ‘राष्ट्रों की संपदा(The Wealth of Nations) ने अठारहवीं शताब्दी के इतिहासकारों एवं अर्थशास्त्रियों को बेहद प्रभावित किया है. कार्ल मार्क्स से लेकर डेविड रिकार्डो तक अनेक ख्यातिलब्ध अर्थशास्त्री, समाजविज्ञानी और राजनेता एडम स्मिथ से प्रेरणा लेते रहे हैं. बीसवीं शताब्दी के अर्थशास्त्रियों में, जिन्होंने एडम स्मिथ के विचारों से प्रेरणा ली है, उनमें मार्क्स, एंगेल्स, माल्थस, मिल, केंस(Keynes) तथा फ्राइडमेन(Friedman) के नाम उल्लेखनीय हैं. स्वयं एडम स्मिथ पर अरस्तु, जा॓न ला॓क, हा॓ब्स, मेंडविले, फ्रांसिस हचसन, ह्यूम आदि विद्वानों का प्रभाव था. स्मिथ ने अर्थशास्त्र, राजनीति दर्शन तथा नीतिशास्त्र के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया. किंतु उसको विशेष मान्यता अर्थशास्त्र के क्षेत्र में ही मिली. आधुनिक बाजारवाद को भी एडम स्मिथ के विचारों को मिली मान्यता के रूप में देखा जा सकता है.
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जॉन केल्विन मैक्सवेल (जन्म 20 फरवरी, 1947) एक अमेरिकी लेखक, वक्ता और पादरी हैं, जिन्होंने मुख्य रूप से नेतृत्व पर ध्यान केंद्रित करते हुए कई किताबें लिखी हैं। टाइटल में लीडरशिप के 21 अकाट्य कानून और एक लीडर के 21 अपरिहार्य गुण शामिल हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स बेस्ट सेलर लिस्ट में कुछ के साथ उनकी पुस्तकों की लाखों प्रतियां बिक चुकी हैं।
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जीन-पॉल सार्त्र ( नोबेल पुरस्कार साहित्य विजेता, 1964)
अस्तित्ववाद के पहले विचारकों में से माने जाते हैं। वह बीसवीं सदी में फ्रान्स के सर्वप्रधान दार्शनिक कहे जा सकते हैं। कई बार उन्हें अस्तित्ववाद के जन्मदाता के रूप में भी देखा जाता है।
अपनी पुस्तक "ल नौसी" में सार्त्र एक ऐसे अध्यापक की कथा सुनाते हैं जिसे ये इलहाम होता है कि उसका पर्यावरण जिससे उसे इतना लगाव है वो बस कि़ंचित् निर्जीव और तत्वहीन वस्तुओं से निर्मित है। किन्तु उन निर्जीव वस्तुओं से ही उसकी तमाम भावनाएँ जन्म ले चुकी थीं।
सार्त्र का निधन अप्रैल 15, 1980 को पेरिस में हआ।
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टॉम बटलर-बाउडन (जन्म; 1967) ऑक्सफोर्ड, इंग्लैंड में स्थित एक गैर-कथा लेखक है। बटलर-बोडन का जन्म एडिलेड में हुआ था। उन्होंने सिडनी विश्वविद्यालय (बीए ऑनर्स, सरकार और इतिहास) और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एमएससी पॉलिटिक्स ऑफ द वर्ल्ड इकोनॉमी) से स्नातक किया।
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सोरेन कीर्केगार्ड का जन्म 15 मई,1813 को कोपेनहेगन में हुआ था। अस्तित्ववादी दर्शन के पहले समर्थक हलाकि उन्होने अस्तित्ववाद शब्द का प्रयोग नहीं किया। सोरेन कीर्केगार्ड का देहांत 4 नवंबर 1855 को हुआ।
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यूनानी तत्वदर्शी ज़ेनो
यूनानी तत्वदर्शी ज़ेनो (Zeno, 495-435 ईo पूo) का जन्म एलिया में हुआ था। गणितजगत् में इनकी प्रसिद्धि के मुख्य कारण अपने परम मित्र पार्मेनिदेस के तर्कों की रक्षा के निमित्त आविष्कृत चार असत्याभास (paradoxes) हैं, जिनमें सातत्य, अनंत एवं अत्यल्प के सामान्य विचार विद्यमान हैं। 435 ईo पूo में राजद्रोह अथवा ऐसे ही किसी अपराध के कारण इनको अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
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प्रोटागोरस एक पूर्व-सुकराती ग्रीक दार्शनिक थे। प्लेटो द्वारा उन्हें एक परिष्कारक के रूप में गिना जाता है। अपने संवाद प्रोटोगोरस में, प्लेटो ने पेशेवर परिष्कारक की भूमिका का आविष्कार करने का श्रेय उसे दिया।
माना जाता है कि प्रोटागोरस ने भी प्राचीन काल में अपने बयान के माध्यम से एक बड़ा विवाद पैदा किया था कि, "मनुष्य सभी चीजों का माप है", इसका अर्थ प्लेटो द्वारा व्याख्या करना है, जिसका अर्थ है कि कोई उद्देश्य सत्य नहीं है। जो भी व्यक्ति सत्य होने का दंभ भरता है वह सत्य है। यद्यपि उनके तर्क की व्याख्या की सीमा पर सवाल उठाने का कारण है, उस समय के लिए व्यक्तिगत सापेक्षता की अवधारणा अलौकिक थी, और अन्य दार्शनिक सिद्धांतों के विपरीत, जो दावा करते थे कि ब्रह्मांड मानव उद्देश्य या धारणाओं के बाहर कुछ उद्देश्य पर आधारित था। ।
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जॉन स्टुअर्ट मिल (20 मई 1806 - 7 मई 1873), आमतौर पर जे.एस. मिल के रूप में उद्धृत, एक अंग्रेजी दार्शनिक, राजनीतिक अर्थशास्त्री और नागरिक सेवक थे। शास्त्रीय उदारवाद के इतिहास में सबसे प्रभावशाली विचारकों में से एक, उन्होंने सामाजिक सिद्धांत, राजनीतिक सिद्धांत और राजनीतिक अर्थव्यवस्था में व्यापक रूप से योगदान दिया।
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टाकी एड-दीन एबाद इब्न अब्द अल-हलीम इब्न अब्द-अल-सलाम अल-नुमैरी अल-अराअन्नी के लिए संक्षेप में, एक मुस्लिम विद्वान मुहादिथ, धर्मशास्त्री, न्यायाधीश, न्यायविद्या, जो कुछ तर्क देते थे, एक दार्शनिक थे, और जिन्हें कुछ लोगों द्वारा स्वीकार किया गया है। इस्लामिक कैलेंडर की 7 वीं शताब्दी का मुजद्दिद। उन्हें इल्खनीद शासक ग़ज़न खान के साथ अपनी कूटनीतिक भागीदारी और मारज अल-सफ़र की लड़ाई में अपनी विजयी उपलब्धि के लिए जाना जाता है जिसने लेवांत के मंगोल आक्रमण को समाप्त कर दिया। हनबली स्कूल के एक सदस्य, इब्न तैमियाह के आइकॉक्लास्टिक विचारों पर अपने समय के व्यापक रूप से स्वीकृत सुन्नी सिद्धांतों जैसे कि संतों की वंदना और उनके मकबरे-मंदिरों की यात्रा ने उन्हें कई विद्वानों और शासकों के साथ अलौकिक बना दिया, जिनके आदेश के तहत वह थे। कई बार कैद हुई।
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सिग्मंड फ्रायड ( 6 मई 1856 -- 23 सितम्बर 1939 ) आस्ट्रिया के तंत्रिकाविज्ञानी (neurologist) तथा मनोविश्लेषण के संस्थापक थे।उन्होंने 1881 में वियना विश्वविद्यालय में चिकित्सा के डॉक्टर के रूप में योग्यता प्राप्त की। फ्रायड द्वारा प्रतिपादित मनोविश्लेषण का संप्रदाय अपनी लोकप्रियता के करण बहुत चर्चित रहा. फ्रायड ने कई पुस्तके लिखीं जिनमें से "इंटर प्रटेशन ऑफ़ ड्रीम्स", "ग्रुप साइकोलोजी एंड द एनेलेसिस ऑफ़ दि इगो ", "टोटेम एंड टैबू " और "सिविलाईजेसन एंड इट्स डिसकानटेंट्स " प्रमुख हैं।
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जुरगेन हबेर्मस एक जर्मन दार्शनिक और समाजशास्त्री है जो आलोचनात्मक सिद्धांत की परंपरा में है; व्यावहारिकता। उनका कार्य संप्रेषणीयता और सार्वजनिक क्षेत्र को संबोधित करता है।
फ्रैंकफर्ट स्कूल से संबद्ध, हेबरमास का काम महामारी विज्ञान और सामाजिक सिद्धांत की नींव, उन्नत पूंजीवाद और लोकतंत्र के विश्लेषण, एक महत्वपूर्ण सामाजिक-विकासवादी संदर्भ में कानून का शासन, प्राकृतिक कानून परंपरा के दायरे में यद्यपि पर केंद्रित है, और समकालीन राजनीति, विशेष रूप से जर्मन राजनीति। हेबरमास की सैद्धांतिक प्रणाली आधुनिक संस्थानों में और तर्कसंगत हितों को जानबूझकर और आगे बढ़ाने की मानव क्षमता में तर्क, मुक्ति और तर्कसंगत-महत्वपूर्ण संचार अव्यक्त की संभावना को प्रकट करने के लिए समर्पित है। हेबरमास आधुनिकता की अवधारणा पर अपने काम के लिए जाना जाता है, विशेष रूप से मूल रूप से मैक्स वेबर द्वारा तर्कसंगत रूप से चर्चा के संबंध में। वह अमेरिकी व्यावहारिकता, एक्शन थ्योरी और पोस्टस्ट्रक्चरलिज़्म से प्रभावित रहा है।
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लुडविग विट्गेन्स्टाइन (Ludwig Josef Johann Wittgenstein') (26 अप्रिल 1889 - 29 अप्रैल 1951) आस्ट्रिया के दार्शनिक थे। उन्होने तर्कशास्त्र, गणित का दर्शन, मन का दर्शन, एवं भाषा के दर्शन पर मुख्यतः कार्य किया। उनकी गणना बीसवीं शताब्दी के महानतम दार्शनिकों में होती है। उनके जीते जी एक ही पुस्तक प्रकाशित हो पाई - Tractatus Logico-Philosophicus। बाद की प्रकाशित पुस्तकों में Philosophical Investigations काफी चर्चित रही। लुडविग विट्गेन्स्टाइन कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे हैं। विट्गेन्स्टाइन के पिता कार्ल एक यहूदी थे जिन्होंने बाद में प्रोटेस्टेंट धर्म अपना लिया था।
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विलियम जेम्स ( 11 जनवरी, 1842 – 26 अगस्त, 1910) अमेरिकी दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक थे जिन्होने चिकित्सक के रूप में भी प्रशिक्षण पाया था। इन्होंने मनोविज्ञान को दर्शनशास्त्र से पृथक किया था, इसलिए इन्हें मनोविज्ञान का जनक भी माना जाता है।
विलियम जेम्स ने मनोविज्ञान के अध्ययन हेतु एक पुस्तक लिखी जिसका नाम "प्रिंसिपल्स ऑफ़ साइकोलॉजी" है। इसका भाई हेनरी जेम्स प्रख्यात उपन्यासकार था। आकर्षक लेखनशैली और अभिव्यक्ति की कुशलता के लिये जेम्स विख्यात हैं।
विलियम जेम्स का जन्म 11 जनवरी 1842 को न्यूयार्क में हुआ। जेम्स ने हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में चिकित्साविज्ञान का अध्ययन किया और वहीं 1872 से 1907 तक क्रमश: शरीरविज्ञान, मनोविज्ञान और दर्शन का प्राध्यापक रहा। 1899 से 1901 तक एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में प्राकृतिक धर्म पर और 1908 में ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय में दर्शन पर व्याख्यान दिए। 26 अगस्त, 1910 को उसकी मृत्यु हो गई।
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चार्ल्स सैंडर्स पियर्स
चार्ल्स सैंडर्स पियर्स अमेरिकी दार्शनिक , तर्कशास्त्री , गणितज्ञ , और वैज्ञानिक थे। एक रसायनज्ञ के रूप में शिक्षित और तीस साल के लिए एक वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत, पीयरस ने खुद को, पहले और सबसे महत्वपूर्ण, एक तर्कशास्त्री माना। उन्होंने तर्कशास्त्र में एक बड़ा योगदान दिया, एक विषय, जो उनके लिए, जिसे अब विज्ञान और विज्ञान का दर्शन कहा जाता है, बहुत कुछ शामिल किया गया है। उन्होंने लॉजिक को औपचारिक रूप से लाक्षणिकता की शाखा के रूप में देखा।
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रिचर्ड जॉन कोच (जन्म 28 जुलाई 1950 को लंदन में) एक ब्रिटिश प्रबंधन सलाहकार, उद्यम पूंजी निवेशक और प्रबंधन, विपणन और जीवन शैली पर पुस्तकों के लेखक हैं।
कोच ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से एम.ए. और व्हार्टन स्कूल से एम.बी.ए. प्रारंभ में कोच ने बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के साथ एक सलाहकार के रूप में काम किया। इसके बाद वह बैन एंड कंपनी में भागीदार बने। 1983 में बैन छोड़ने के बाद उन्होंने एल.ई.के. की सह-स्थापना की।
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पियरे बॉर्डियू (1 अगस्त 1930 - 23 जनवरी 2002) एक फ्रांसीसी समाजशास्त्री, मानवविज्ञानी, दार्शनिक और सार्वजनिक बुद्धिजीवी थे। शिक्षा के समाजशास्त्र में बॉर्डियू के प्रमुख योगदान, समाजशास्त्र के सिद्धांत और सौंदर्यशास्त्र के समाजशास्त्र ने कई संबंधित शैक्षणिक क्षेत्रों (जैसे मानव विज्ञान, मीडिया और सांस्कृतिक अध्ययन, शिक्षा), लोकप्रिय संस्कृति और कलाओं में व्यापक प्रभाव प्राप्त किया है। अपने अकादमिक करियर के दौरान वह मुख्य रूप से पेरिस में सोशल साइंसेज में एडवांस्ड स्टडीज़ के लिए स्कूल और कोलिज डी फ्रांस से जुड़े थे।
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फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की
फ़्योदर दस्ताएवस्की ( 11 नवम्बर 1821, मसक्वा [मास्को] — 9 फ़रवरी 1881, सांक्त पितेरबूर्ग [सेण्ट पीटर्सबर्ग] ) — रूसी भाषा के एक महान् साहित्यकार,विचारक, दार्शनिक और निबन्धकार थे, जिन्होंने अनेक उपन्यास और कहानियाँ लिखीं पर जिन्हें अपने जीवनकाल में लेखक के रूप में कोई महत्व नहीं दिया गया। मृत्यु होने के बाद दस्ताएवस्की को रूसी यथार्थवाद का प्रवर्तक माना गया और रूस के महान लेखकों में उनका नाम शामिल किया गया। मॉस्को में जन्मे फ़्योदर दस्ताएवस्की को रूसी विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता मिख़अईल पित्रअशेव्स्की के राज्यविरोधी गुप्त दल का सदस्य होने के कारण 20 अन्य लोगों के साथ गिरफ़्तार कर लिया गया और उन्हें मृत्युदण्ड की सज़ा दी गई। लेकिन इस सज़ा पर अमल होने से पहले ही अंतिम समय में उनकी सज़ा को चार वर्ष के सश्रम कारावास में बदल दिया गया।
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ऍगस्टीन (354 ई॰ - 430 ई॰) एक इसाई दार्शनिक थे। इनका जन्म 13 नवम्बर संन 354 में रोमन अफ्रीका के नुमिडिया प्रांत के थागास्ते नमाक शहर में हुआ था। मध्य युग मै इनका कार्य सराहनीय रहा है। इनके द्वारा लैटिन भाषा में लेखी गयी प्रमुख किताबे थी - दे सिविअताते दी (अंग्रेजी में इसे सिटी ऑफ़ गॉड के नाम से जाना जाता हैं) और कंफेशंस।
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विलियम शेक्सपीयर (23 अप्रैल 1564 - 23 अप्रैल 1616 ) अंग्रेजी के कवि, काव्यात्मकता के विद्वान नाटककार तथा अभिनेता थे। उनके नाटकों का लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हुआ है।शेक्सपियर में अत्यंत उच्च कोटि की सृजनात्मक प्रतिभा थी और साथ ही उन्हें कला के नियमों का सहज ज्ञान भी था। प्रकृति से उन्हें मानो वरदान मिला था अत: उन्होंने जो कुछ छू दिया वह सोना हो गया। उनकी रचनाएँ न केवल अंग्रेज जाति के लिए गौरव की वस्तु हैं वरन् विश्ववांमय की भी अमर विभूति हैं। शेक्सपियर की कल्पना जितनी प्रखर थी उतना ही गंभीर उनके जीवन का अनुभव भी था। अत: जहाँ एक ओर उनके नाटकों तथा उनकी कविताओं से आनंद की उपलब्धि होती है वहीं दूसरी ओर उनकी रचनाओं से हमको गंभीर जीवनदर्शन भी प्राप्त होता है। विश्वसाहित्य के इतिहास में शेक्सपियर के समकक्ष रखे जानेवाले विरले ही कवि मिलते हैं।
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जीन-जक्क़ुएस रूसो (1712 - 78) की गणना पश्चिम के युगप्रवर्तक विचारकों में है।
किंतु अंतर्विरोध तथा विरोधाभासों से पूर्ण होने के कारण उसके दर्शन का स्वरूप विवादास्पद रहा है। अपने युग की उपज होते हुए भी उसने तत्कालीन मान्यताओं का विरोध किया, बद्धिवाद के युग में उसने बुद्धि की निंदा की (विश्वकोश के प्रणेताओं (Encyclopaedists) से उसका विरोध इस बात पर था) और सहज मानवीय भावनाओं को अत्यधिक महत्व दिया। सामाजिक प्रसंविदा (सोशल कंट्रैक्ट) की शब्दावली का अवलंबन करते हुए भी उसने इस सिद्धांत की अंतरात्मा में सर्वथा नवीन अर्थ का सन्निवेश किया। सामाजिक बंधन तथा राजनीतिक दासता की कटु आलोचना करते हुए भी उसने राज्य को नैतिकता के लिए अनिवार्य बताया। आर्थिक असमानता और व्यक्तिगत संपत्ति को अवांछनीय मानते हुए भी रूसो साम्यवादी नहीं था। घोर व्यक्तिवाद से प्रारंभ होकर उसे दर्शन की परिणति समष्टिवाद में होती है। स्वतंत्रता और जनतंत्र का पुजारी होते हुए भी वह राबेसपीयर जैसे निरंकुशतावादियों का आदर्श बन जाता है।
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निकोलो मैकियावेली (Niccolò di Bernardo dei Machiavelli) (3 मई 1469 - 21 जून 1527) इटली का राजनयिक एवं राजनैतिक दार्शनिक, संगीतज्ञ, कवि एवं नाटककार था। पुनर्जागरण काल के इटली का वह एक प्रमुख व्यक्तित्व था। वह फ्लोरेंस रिपब्लिक का कर्मचारी था। मैकियावेली की ख्याति (कुख्याति) उसकी रचना द प्रिंस के कारण है जो कि व्यावहारिक राजनीति का महान ग्रन्थ स्वीकार किया जाता है।
मैकियावेली आधुनिक राजनीति विज्ञान के प्रमुख संस्थापकों में से एक माने जाते हैं। वे एक कूटनीतिज्ञ, राजनीतिक दार्शनिक, संगीतज्ञ, कवि और नाटककार थे। सबसे बड़ी बात कि वे फ्लोरिडा गणराज्य के नौकरशाह थे। 1498 में गिरोलामो सावोनारोला के निर्वासन और फांसी के बाद मैकियावेली को फ्लोरिडा चांसलेरी का सचिव चुना गया।
लियानार्डो द विंसी की तरह, मैकियावेली पुनर्जागरण के पुरोधा माने जाते हैं। वे अपनी महान राजनीतिक रचना, द प्रिंस (राजनीतिक शास्त्र), द डिसकोर्स और द हिस्ट्री के लिए मशहूर हुए जिनका प्रकाशन उनकी मृत्यु (1532) के बाद हुआ, हालांकि उन्होंने निजी रूप इसे अपने दोस्तों में बांटा। एकमात्र रचना जो उनके जीवनकाल में छपी वो थी द आर्ट ऑफ वार. ये रचना युद्ध-कौशल पर आधारित थी। अपनी कुटिल राजनीति को मैकियावेलीवाद कहा जाता है।
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इब्न रश्द, लैटिन भाषा में आवेररोस (पूरा नाम :अबू इ-वालिद मुहम्मद इब्न ' अहमद इब्न रुस्द) को इस नाम से पुकारा जाता है। एक एंडलुसियन दार्शनिक और विचारक थे जिन्होंने दर्शन, धर्मशास्त्र, चिकित्सा, खगोल विज्ञान, भौतिकी, इस्लामी न्यायशास्त्र और कानून, और भाषाविज्ञान सहित विभिन्न विषयों पर भी लिखा था। उनके दार्शनिक कार्यों में अरिस्टोटल पर कई टिप्पणियां शामिल थीं, जिसके लिए उन्हें पश्चिम में द कमेंटेटर के रूप में जाना जाता था। उन्होंने अलमोहाद खिलाफत के लिए एक न्यायाधीश और एक अदालत चिकित्सक के रूप में भी कार्य किया।
अरिस्टोटेलियनवाद के एक मजबूत समर्थक, इन्होंने अरिस्तोटल की मूल शिक्षाओं के रूप में जो कुछ देखा और लिखा, उसे बहाल करने का प्रयास किया, जो पिछले मुस्लिम विचारकों, जैसे अल-फरबी और एविसेना की नियोप्लाटोनिस्ट प्रवृत्तियों का विरोध करता था। उन्होंने अल-गजली जैसे अशारी धर्मशास्त्रियों की आलोचना के खिलाफ दर्शन की खोज का भी बचाव किया। उन्होंने तर्क दिया कि इस्लाम में दर्शन केवल स्वीकार्य नहीं था, बल्कि कुछ अभिजात वर्गों के बीच भी अनिवार्य था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यदि बाइबल का पाठ कारण और दर्शन के आधार पर निष्कर्ष निकालने के लिए प्रकट हुआ, तो पाठ को रूपक रूप से व्याख्या किया जाना चाहिए। आखिरकार, इस्लामी दुनिया में उनकी विरासत भौगोलिक और बौद्धिक कारणों के लिए अहम थी।
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थॉमस हॉब्स (Thomas Hobbes ; 1588 ई0 - 1679 ई0) प्रसिद्ध आंग्ल दार्शनिक एवं राजनीतिक विचारक। थॉमस हॉब्स का दर्शन गैलीलियो, केप्लर, डेकार्ट तथा गैसेंडी जैसे वैज्ञानिकों की धारणाओं से अनुप्राणित है। कहा जाता है कि संपूर्ण मानवज्ञान को एक सूत्र में बाँधकर वैज्ञानिक आधारशिला पर प्रतिष्ठत करना ही उसका उद्देश्य था। किंतु थॉमस हॉब्स के दर्शन और तत्कालीन विज्ञान में वास्तविक संबंध क्या है, यह विवादास्पद है।
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रोलैंड बर्थ (1915 - 1980) फ्रांस के प्रमुख साहित्यिक आलोचक, साहित्यिक और सामाजिक सिद्धांतकार, दार्शनिक और लाक्षण-विज्ञानी थे। संरचनावाद, लाक्षण-विज्ञान, समाजशास्त्र, डिज़ाइन सिद्धांत, नृविज्ञान और उत्तर-संरचनावाद जैसे सिद्धांत उनके विविध विचारों से प्रभावित थे।
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एलबर्ट केमस (1913-1960) एक फ्रेंच लेखक थे जिन्हें 1957 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
कैमस का जन्म अल्जीरिया में (उस समय एक फ्रांसीसी उपनिवेश) में फ्रेंच पिड्स नायर के माता-पिता के यहां हुआ था। उनकी नागरिकता फ्रांसीसी थी। उन्होंने अपना बचपन एक गरीब पड़ोस में बिताया और बाद में अल्जीयर्स विश्वविद्यालय में दर्शन का अध्ययन किया। 1940 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब जर्मनों ने फ्रांस पर हमला किया था, तब वह पेरिस में थे। कैम्स ने भागने की कोशिश की, लेकिन अंततः फ्रांसीसी प्रतिरोध में शामिल हो गए जहां उन्होंने कॉम्बैट में एक प्रमुख अखबार के प्रधान संपादक के रूप में काम किया। युद्ध के बाद, वह एक प्रसिद्ध व्यक्ति थे और उन्होंने दुनिया भर में कई व्याख्यान दिए। उन्होंने दो बार शादी की लेकिन कई विवाहेतर संबंध थे। कैमस राजनीतिक रूप से सक्रिय था; वह वामपंथ का हिस्सा था जिसने सोवियत संघ का विरोध किया क्योंकि इसके अधिनायकवाद के कारण। कैमस एक नैतिकतावादी था और अनारचो-संघवाद के प्रति झुकाव रखता था। वह यूरोपीय एकीकरण की मांग करने वाले कई संगठनों का हिस्सा था। अल्जीरियाई युद्ध (1954-1962) के दौरान, उन्होंने एक तटस्थ रुख रखा, एक बहुसांस्कृतिक और बहुलवादी अल्जीरिया की वकालत की, एक ऐसी स्थिति जो विवाद का कारण बनी और अधिकांश दलों द्वारा खारिज कर दिया गया।
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थॉमस जेफ़र्सन (13 अप्रैल 1743 - 4 जुलाई 1826) संयुक्त राज्य अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति (1801–1809) तथा अमेरिकी 'स्वतंत्रता की घोषणा' के मुख्य लेखक (1776) थे। जेफरसन एक राजनैतिक दार्शनिक तथा विद्वान व्यक्ति थे। ये डेमोक्रेटिक- रिपब्लिकन पार्टी से थे। उनकी इंग्लैण्ड और फ्रान्स के बहुत से बुद्धिजीवी नेताओं से जान-पहचान थी।
अमेरिकी क्रांति के दौरान, जेफर्सन ने कॉन्टिनेंटल कांग्रेस में वर्जीनिया का प्रतिनिधित्व किया जिसने घोषणा को अपनाया, वर्जीनिया विधायक के रूप में धार्मिक स्वतंत्रता के लिए कानून का मसौदा तैयार किया, और अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध के दौरान 1779 से 1781 तक वर्जीनिया के दूसरे गवर्नर के रूप में कार्य किया। मई 1785 में, जेफरसन को फ्रांस के लिए संयुक्त राज्य मंत्री नियुक्त किया गया था, और बाद में, 1790 से 1793 तक राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन के तहत देश के पहले राज्य सचिव। जेफरसन और जेम्स मैडिसन ने गठन के दौरान फेडरलिस्ट पार्टी का विरोध करने के लिए डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन पार्टी का आयोजन किया। फर्स्ट पार्टी सिस्टम का। मैडिसन के साथ, उन्होंने 1798 और 1799 में उत्तेजक केंटकी और वर्जीनिया रिज़ॉल्यूशन लिखा, जिसमें संघीय एलियन और सेडिशन अधिनियमों को शून्य करके राज्यों के अधिकारों को मजबूत करने की मांग की गई।
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यह थेल्स का शिष्य था। उसने सर्वप्रथम एक बेबीलोनियन यन्त्र नोमोन बनाया बनाया जो सूर्य घड़ी का कार्य करता था। अनेग्जीमेण्डर ईसा से 610-546 वर्ष पूर्व युनानी विद्वान था। इसने ब्रह्माण्डविज्ञान को विकसित किया। इसने ब्रह्माण्ड उत्पत्ति का सिद्धांत और नक्षत्रों का उल्लेख किया।
मिलेसस निवासी यह बिद्द्वान थेल्स का शिष्य था तथा उतराधिकारी था ।उन्हिने पृथ्वी की उत्पति ,आकार तथा आकृति में विचार रखे ,उन्हिने पृथ्वी की उतपत्ति अदृश्य पदार्थो से मानी जो उसर्ण और शीतोष्ण दोनों गुड वाले थे ।अदृश्य पदार्थी में भीतरी भाग में ठण्डा होने से तो ढाल की आकृति में पृथ्वी बनी तथा बाहरी उषण भाग केंद्रित भाग से अलग हो गया जो काली धुंद के रूप में वायुमंडल बना ।इन्होने बाताया की पृथ्वी ब्रह्माण्ड के मध्य ठोस रूप में है तथा चपटी ना होकर गोलाकार है । उन्होंने पृथ्वी के लम्बाई को चौड़ाई से तीन गुणा अधिक बताया उन्होंने एक मानचित्र भी बनाया ।जिसके मद्य यूनान तथा विश्व के चारो ओर महासागर नदी से घिरा हुआ बताया ।
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मार्कस ऑरेलियस ( 26 April 121 – 17 March 180 AD) रोम का सम्राट था जिसने 161 से 180 ई॰ तक शासन किया। वह उन पाँच सम्राटों में अन्तिम सम्राट था जिन्हें 'पाँच अच्छे सम्राट' कहा जाता है। वह स्टोइक दर्शन का अभ्यासी था। उसने बिना शीर्षक के एक पुस्तक की रचना की थी जिसे आजकल 'मेडिटेशन्स' (Meditations) नाम से जाना जाता है। वर्तमान समय में प्राचीन स्टोइक दर्शन को समझने की यह महत्वपूर्ण स्रोत है। बहुत से टिप्पणीकार दर्शन की महानतम पुस्तकों में इसे गिनते हैं।
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बारूक डी स्पिनोज़ा (Baruch De Spinoza) (24 नवम्बर 1632 - 21 फ़रवरी 1677) यहूदी मूल के डच दार्शनिक थे। उनका परिवर्तित नाम 'बेनेडिक्ट डी स्पिनोजा' (Benedict de Spinoza) था। उन्होने उल्लेखनीय वैज्ञानिक अभिक्षमता (aptitude) का परिचय दिया किन्तु उनके कार्यों का महत्व उनके मृत्यु के उपरान्त ही सम्झा जा सका।
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राल्फ वाल्डो इमर्सन (1803-1882) प्रसिद्ध निबंधकार, वक्ता तथा कवि थे। उन्हें अमरीकी नवजागरण का प्रवर्तक माना जाता है। आपने मेलविन, ह्विटमैन तथा हाथार्न जैसे अनेक लेखकों ओर विचारकों को प्रभावित किया। आप लोकोत्तरवाद के नेता थे जो एक सहृदय, धार्मिक, दार्शनिक एचं नैतिक आंदोलन था। आप व्यक्ति की अनंतता, अर्थात् दैवी कृपा के जाग्रत उसकी आध्यात्मिक व्यापकता के पक्ष के पोषक थे। आपकी दार्शनिकता के मुख्य आधार पहले प्लैटो, प्लोटाइनस, बर्कले फिर वर्डस्वर्थ, कोलरिज, गेटे, कार्लाइल, हर्डर, स्वेडनबोर्ग और अंत में चीन, ईरान ओर भारत के लेखक थे।
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मैरी वुलस्टोनक्राफ़्ट ( 27 अप्रैल 1759 - 10 सितंबर 1797) महिलाओं के अधिकारों के लिये लिखने वाली एक अंग्रेजी लेखक, दार्शनिक, और समर्थक थीं। अपने संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान, वह उपन्यास, चरक, एक यात्रा कथा, फ्रांसीसी क्रांति, एक आचरण किताब का एक इतिहास है, और एक बच्चों की किताब में लिखा था। वुलस्टोनक्राफ़्ट सबसे अच्छा है कि वह महिलाओं को पुरुषों के लिए स्वाभाविक रूप से हीन नहीं हैं कि तर्क है जिसमें नारी के अधिकार (1792), का एक प्रमाण के लिए जाना जाता है, लेकिन वे शिक्षा की कमी ही है क्योंकि होना दिखाई देते है। वह दोनों पुरुषों और महिलाओं को तर्कसंगत प्राणी के रूप में इलाज किया गया और कारण की स्थापना पर एक सामाजिक व्यवस्था माहौल की जानी चाहिए कि पता चलता है।
देर से 20 वीं सदी तक, कई अपरंपरागत निजी संबंधों को घेर लिया जो वुलस्टोनक्राफ़्ट के जीवन, उसे लिखने से ज्यादा ध्यान दिया गया। हेनरी फुसेली और गिल्बर्ट इम्ले के साथ दो मनहूस मामलों, के बाद (वह एक बेटी, फैनी इम्ले था, जिनके द्वारा), वुलस्टोनक्राफ़्ट दार्शनिक विलियम गॉडविन, अराजकतावादी आंदोलन के पूर्वजों में से एक शादी कर ली।
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अबू अली सीना फारस के विद्वान, दार्शनिक एवं चिकित्सक थे। उन्होने विविध विषयों पर लगभग 450 पुस्तकें लिखी जिसमें से 240 अब भी प्राप्य हैं। इसमें से 15 पुस्तकें चिकित्सा विज्ञान से संबंधित हैं। उनकी विश्वविख्यात किताब का नाम क़ानून है। यह किताब मध्यपूर्व जगत में मेडिकल सांइस की सबसे ज़्यादा प्रभावी और पढ़ी जाने वाली किताब है। इस प्रकार अपने समय के प्रसिद्ध चिकित्सक थे। अबू अली सीना न केवल नास्तिक चिकित्सकों और दार्शनिकों में सबसे आगे हैं बल्कि पश्चिम में शताब्दियों तक वे चिकित्सकों के सरदार के रूप मे प्रसिद्ध रहे।[कृपया उद्धरण जोड़ें]इब्न सिन्ना (एविसेना) पर दुनिया की प्राचीनता, उसके (दुनिया के) बाद की अस्वीकृति और "भीतर की महान विचारधारा" के अलावा अन्य नास्तिक सिद्धांतों के बारे में अपने बयानों के कारण काफिर और नास्तिक होने का आरोप लगाया गया था।अन्य विद्वानों जिन्होंने यह कहा कि इब्न सिन्ना एक नास्तिक था (शेख अल-थुवैनी के पहले), अल-ग़ज़ाली, इब्न तैमियाह, इब्न अल-क़ायम और अल-ढाबी है।
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पॉल को आमतौर पर एपोस्टोलिक युग के सबसे महत्वपूर्ण आंकड़ों में से एक माना जाता है और 30 के दशक के मध्य से लेकर 50 के दशक के मध्य तक उन्होंने एशिया माइनर और यूरोप में कई ईसाई समुदायों की स्थापना की।
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जानोस फ़ार्कस (27 मार्च 1942 को बुडापेस्ट में - 29 सितंबर 1989 को बुडापेस्ट एक हंगेरियन फुटबॉलर था।
अपने क्लब कैरियर के दौरान उन्होंने वास एससी के लिए खेला। उन्होंने 1961 से 1969 तक हंगरी राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के लिए 33 कैप अर्जित किए और 20 गोल किए, 1962 फीफा विश्व कप, 1964 यूरोपीय राष्ट्र कप और 1966 फीफा विश्व कप में भाग लिया। उन्होंने 1964 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में फुटबॉल में स्वर्ण पदक भी जीता। उन्हें विशेष रूप से ब्राजील के खिलाफ 1966 फीफा विश्व कप में अपने शानदार लक्ष्य के लिए याद किया जाता है, जिसमें उन्होंने लगातार चैंपियन के खिलाफ 3–1 से जीत दर्ज की। उन्होंने 30 साल की उम्र में अपना करियर जल्दी खत्म कर लिया और गैस्ट्रोनोमर बन गए। 47 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद एक युवा फुटबॉल टूर्नामेंट उनके नाम पर रखा गया था।
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हरबर्ट मार्कुस ( जुलाई 19, 1898 - 29 जुलाई, 1979) फ्रैंकफर्ट स्कूल ऑफ़ क्रिटिकल थ्योरी से जुड़े एक जर्मन-अमेरिकी दार्शनिक, समाजशास्त्री और राजनीतिक सिद्धांतकार थे। बर्लिन में जन्मे, मार्क्युज़ ने बर्लिन के हम्बोल्ट विश्वविद्यालय और फिर फ्रीबर्ग में अध्ययन किया, जहाँ उन्होंने अपनी पीएचडी प्राप्त की। वह फ्रैंकफर्ट स्थित इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च में एक प्रमुख व्यक्ति थे - जिसे बाद में फ्रैंकफर्ट स्कूल के रूप में जाना जाने लगा। उनका विवाह सोफी वर्थिम (1924-1951), इंगे न्यूमैन (1955-1973), और एरिका शेरोवर (1976-1979) से हुआ था।अपने लिखित कार्यों में, उन्होंने यह कहते हुए पूंजीवाद, आधुनिक प्रौद्योगिकी, ऐतिहासिक भौतिकवाद और मनोरंजन संस्कृति की आलोचना की कि वे सामाजिक नियंत्रण के नए प्रतिनिधित्व करते हैं।
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सिमोन द बुआ (फ़्रांसीसी: Simone de Beauvoir) (जन्म: 9 जनवरी 1908 - मृत्यु : 14 अप्रैल 1986) एक फ़्रांसीसी लेखिका और दार्शनिक हैं। स्त्री उपेक्षिता (फ़्रांसीसी: Le Deuxième Sexe, जून 1949) जैसी महत्वपूर्ण पुस्तक लिखने वाली सिमोन का जन्म पैरिस में हुआ था। लड़कियों के लिए बने कैथलिक विद्यालय में उनकी आरंभिक शिक्षा हुई। उनका कहना था की स्त्री पैदा नहीं होती, उसे बनाया जाता है। सिमोन का मानना था कि स्त्रियोचित गुण दरअसल समाज व परिवार द्वारा लड़की में भरे जाते हैं, क्योंकि वह भी वैसे ही जन्म लेती है जैसे कि पुरुष और उसमें भी वे सभी क्षमताएं, इच्छाएं, गुण होते हैं जो कि किसी लड़के में। सिमोन का बचपन सुखपूर्वक बीता, लेकिन बाद के वर्षो में अभावग्रस्त जीवन भी उन्होंने जिया। 15 वर्ष की आयु में सिमोन ने निर्णय ले लिया था कि वह एक लेखिका बनेंगी।
दर्शनशास्त्र, राजनीति और सामाजिक मुद्दे उनके पसंदीदा विषय थे। दर्शन की पढ़ाई करने के लिए उन्होंने पैरिस विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहां उनकी भेंट बुद्धिजीवी ज्यां पॉल सार्त्र से हुई। बाद में यह बौद्धिक संबंध आजीवन चला। द सेकंड सेक्स का हिंदी अनुवाद स्त्री उपेक्षिता भी बहुत लोकप्रिय हुआ। 1970 में फ्रांस के स्त्री मुक्ति आंदोलन में सिमोन ने भागीदारी की। स्त्री-अधिकारों सहित तमाम सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर सिमोन की भागीदारी समय-समय पर होती रही। 1973 का समय उनके लिए परेशानियों भरा था।
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जकोब जोहान फ़्रीह्र्र वॉन उसेक्सुएल
जकोब जोहान फ़्रीह्र्र वॉन उसेक्सुएल (8 सितंबर [ O.S 27 अगस्त] 1864 - 25 जुलाई 1944) एक बाल्टिक जर्मन जीवविज्ञानी थे, जो मांसपेशियों के शरीर विज्ञान, पशु व्यवहार अध्ययन और साइबरनेटिक्स के क्षेत्र में काम करते थे। जिंदगी। हालांकि, उनका सबसे उल्लेखनीय योगदान उम्वेल्ट की धारणा है, जिसका उपयोग अर्ध-लेखक थॉमस सेबोक और दार्शनिक मार्टिन हेइडेगर ने किया है। उनके कार्यों ने अनुसंधान के क्षेत्र के रूप में जैवसंश्लेषण की स्थापना की।
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ग्राहम प्रीस्ट (जन्म 1948) ग्रेजुएट सेंटर में दर्शनशास्त्र के प्रतिष्ठित प्रोफेसर हैं, साथ ही मेलबर्न विश्वविद्यालय में एक नियमित आगंतुक हैं, जहां वह बॉयस गिब्सन प्रोफेसर ऑफ फिलॉसफी और सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय में भी थे।
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जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल
जार्ज विलहेम फ्रेड्रिक हेगेल (1770-1831) सुप्रसिद्ध दार्शनिक थे। वे कई वर्ष तक बर्लिन विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे और उनका देहावसान भी उसी नगर में हुआ।
हेगेल की प्रमुख उपलब्धि उनके आदर्शवाद की विशिष्ट अभिव्यक्ति का विकास थी, जिसे कभी-कभी पूर्ण आदर्शवाद कहा जाता है, जिसमें उदाहरण के लिए, मन और प्रकृति और विषय और वस्तु के द्वंद्वों को दूर किया जाता है। उनकी आत्मा का दर्शन वैचारिक रूप से मनोविज्ञान, राज्य, इतिहास, कला, धर्म और दर्शन को एकीकृत करता है। विशेष रूप से 20 वीं सदी के फ्रांस में मास्टर-दास की बोली का उनका खाता अत्यधिक प्रभावशाली रहा है। विशेष महत्व की उनकी आत्मा की अवधारणा है (तार्किक रूप से ऐतिहासिक अभिव्यक्ति और "उदात्तीकरण" के रूप में "गेस्ट", जिसे कभी-कभी "अनुवाद" भी कहा जाता है) (प्रतीत होता है या विरोधाभासी कारकों के विरोध के उन्मूलन या कमी के बिना Aufhebung, एकीकरण): उदाहरणों में शामिल हैं प्रकृति और स्वतंत्रता के बीच स्पष्ट विरोध और अनुकरण और पारगमन के बीच। हेगेल को 20 वीं सदी में थीसिस, एंटीथिसिस, सिंथेसिस ट्रायड के प्रवर्तक के रूप में देखा गया है, लेकिन यह एक स्पष्ट वाक्यांश के रूप में जोहान गोटलिब फिच के साथ उत्पन्न हुआ।
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Thales का जन्म ग्रीक के छोटे से राज्य माईलेट्स नगर में हुआ।इन्हें प्रथम यूनानी दार्शनिक माना जाता है। पाश्चात्य जगत में दर्शनशास्त्र के संस्थापक के रुप में भी इन्हें जाना जाता है। इनको यूनान के सप्त ऋषियों या सात बुद्धिमानों में से एक माना जाता है।
585-584 बी. सी. में सूर्यग्रहण की भविष्यवाणी का भी श्रेय इन्हें दिया जाता है।
ये माईलेशियन मत के भी संस्थापक है। इनके दर्शन की तीन प्रमुख मान्यताएं है
1. समस्त वस्तुओं में देवों का प्रभाव/निवास है। ये विश्वात्मा(जल) में भी विश्वास रखते हैं।
2. पृथ्वी एक समतल चक्र के समान है जो जल पर तैरती है।
3. जल ही समस्त भौतिक वस्तुओं का कारण और समस्त प्राणी जीवन का आधार है।
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मिशेल डी मोंटेनेगी (Michel de Montaigne ; 1533-1592) फ्रांसीसी पुनर्जागरण का सबसे प्रभावी लेखक था। माना जाता है कि उसने ही निबन्ध को साहित्य की एक विधा के रूप में प्रचलित किया। उसे आधुनिक संशयवाद (skepticism) का जनक भी माना जाता है।
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एपिकुरस प्राचीन युनान के दार्शनिक थे। ये आनंदवाद के संस्थापक थे। एपिकुरस का जन्म 342/1 ईसापूर्व समोस में हुआ था। एपिकुरस (341-2 BC0 ईसा पूर्व) एक प्राचीन यूनानी दार्शनिक और ऋषि थे जिन्होंने एपिकुरिज्म की स्थापना की, जो दर्शन का एक अत्यंत प्रभावशाली स्कूल था। उनका जन्म एथोसियन माता-पिता के समोस के ग्रीक द्वीप पर हुआ था। डेमोक्रिटस, अरिस्टिपस, पाइरोह और संभवतः साइनिक्स से प्रभावित होकर, उन्होंने अपने दिन के प्लैटोनिज्म के खिलाफ हो गए और एथेंस में "गार्डन" के रूप में जाना जाने वाला अपना खुद का स्कूल स्थापित किया।
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हेरक्लिटस (535 ईसा पूर्व -475 ईसा पूर्व) यूनानी दार्शनिक था। इफिसुस का हेरक्लिटस (सी 535 - सी 475 ई.पू., 500 ईसा पूर्व) एक प्राचीन यूनानी, पूर्व-सुकराती, इयानियन दार्शनिक और इफिसुस शहर का मूल निवासी था, जो फारसी साम्राज्य का हिस्सा था।
उनके दृष्टिकोण और शानदार अभिव्यक्ति के लिए सराहना, साथ ही उनके दर्शन में विरोधाभासी तत्व, उन्हें पुरातनता से "द ऑबस्क्योर" के रूप में अर्जित किया।
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उमर खय्याम (1048–1131) फ़ारसी साहित्यकार, गणितज्ञ एवं ज्योतिर्विद थे। इनका जन्म उत्तर-पूर्वी फ़ारस के निशाबुर (निशापुर) में 18 सदी में एक ख़ेमा बनाने वाले परिवार में हुआ था। इन्होंने इस्लामी ज्योतिष को एक नई पहचान दी और इसके सुधारों के कारण सुल्तान मलिकशाह का पत्रा (तारीख़-ए-मलिकशाही), जलाली संवत या सेल्जुक संवत का आरंभ हुआ। इनकी रुबाईयों (चार पंक्तियों में लिखी एक प्रकार की कविता) को विश्व स्तरीय करने में अंग्रेज़ी कवि एडवर्ड फ़िज़्ज़ेराल का बहुत योगदान रहा है।
खय्याम ने ज्यामिति बीजगणित की स्थापना की, जिसमें उनहोने अल्जेब्रिक समीकरणों के ज्यामितीय हल प्रस्तुत किये। इसमें हाइपरबोला तथा वृत्त जैसी ज्यामितीय रचनाओं द्बारा क्यूबिक समीकरण का हल शामिल है। उन्होंने टेक्नोलोजी व्यापक द्विघात समीकरण का भी विचार दिया।
खगोलशास्त्र में कार्य करते हुए उमर खय्याम ने एक सौर वर्ष की दूरी दशमलव के छः स्थानों तक शुद्ध प्राप्त की। इस आधार पर उनहोने एक नए कैलेंडर का आविष्कार किया। उस समय की ईरानी हुकूमत ने इसे जलाली कैलेंडर के नाम से लागू किया। वर्तमान ईरानी कैलंडर जलाली कैलेंडर का ही एक मानक रूप है।
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मार्टिन हाइडेगर एक जर्मन दार्शनिक थे | वह 26 सितंबर, 1889 को पैदा हुआ था। वे 26 मई, 1976 को निधन हो गया। वे वर्तमान काल के प्रसिद्ध अस्तित्ववादी दार्शनिक है किन्तु वे अपने सिद्धांत को अस्तित्ववादी सिद्धांत कहलाने से इंकार करते है। वह जर्मनी के छोटे से कस्बे में पैदा हुआ था और रोमन कैथोलिक वातावरण मे पला था। उसने अपनी दार्शनिक शिक्षा पहले तो नव कांटवादी विल्हेम व रिकेट के निर्देशन में प्राप्त की बाद में वे हसरेल के संपर्क मे आये।
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प्लोटिनस एक प्रमुख हेलेनिस्टिक दार्शनिक थे जो रोमन मिस्र में रहते थे। एन्नोइड्स में वर्णित उनके दर्शन में, तीन सिद्धांत हैं: एक, बुद्धि और आत्मा। उनके शिक्षक अम्मोनियस सैकस थे, जो प्लेटोनिक परंपरा के थे।19 वीं शताब्दी के इतिहासकारों ने नियोप्लाटोनिज्म शब्द का आविष्कार किया और इसे प्लोटिनस और उनके दर्शन पर लागू किया, जो लेट एंटिकिटी और मध्य युग के दौरान प्रभावशाली था। प्लोटिनस के बारे में बहुत सी जीवनी संबंधी जानकारी पोर्फिरी की प्रस्तावना से प्लॉटिनस एननहेड्स के उनके संस्करण से मिलती है। उनकी आध्यात्मिक लेखनी ने सदियों से बुतपरस्त, यहूदी, ईसाई, ज्ञानी और इस्लामी तत्वमीमांसा और मनीषियों को प्रेरित किया है, जिसमें धर्मों के भीतर मुख्यधारा की सैद्धान्तिक अवधारणाओं को प्रभावित करने वाले उपदेश शामिल हैं, जैसे कि दो आध्यात्मिक अवस्थाओं में द्वैत पर उनका काम। यह अवधारणा यीशु की ईश्वर की धारणा के समान है, ईश्वर और मनुष्य दोनों, ईसाई धर्मशास्त्र में एक मौलिक विचार है।
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जेनी यू-फॉन यांग एक अमेरिकी रसायनज्ञ हैं। वह कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, इरविन में रसायन विज्ञान की सहायक प्रोफेसर हैं, जहां वह अकार्बनिक रसायन विज्ञान, कैटेलिसिस और सौर ईंधन पर केंद्रित एक शोध समूह का नेतृत्व करती हैं। यांग कई पुरस्कारों के प्राप्तकर्ता हैं।
जेनी यू-फॉन यांग का जन्म सैन फर्नांडो घाटी में हुआ था और इसका जन्म लॉस एंजेलिस के चैटस्वर्थ में हुआ था। वह दूसरी पीढ़ी की ताइवानी-अमेरिकी हैं। यांग ने 2001 में बर्कले में रसायन विज्ञान में स्नातक की डिग्री पूरी की और 2007 में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से अकार्बनिक रसायन विज्ञान में उनके दर्शनशास्त्र के डॉक्टर थे।
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शाह निमतुल्लाह वली, जिन्हें नेमतुल्लाह के नाम से भी जाना जाता है और 14 से 15 साल तक निमतुल्लाह एक फारसी सूफी मास्टर और कवि थे। वह सुन्नी इस्लाम द्वारा एक संत के रूप में और निमतुल्लाहि तारिक़ के रूप में पूजनीय हैं, जो उन्हें अपना संस्थापक मानते हैं।
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आर्थर शोपेनहावर (Arthur Schopenhauer) (22 फ़रवरी 1788 - 21 सितम्बर 1860) जर्मनी के प्रसिद्ध दार्शनिक थे। वे अपने 'नास्तिक निराशावाद' के दर्शन के लिये प्रसिद्ध हैं। उन्होने 25 वर्ष की आयु में अपना शोधपत्र पर्याप्त तर्क के चार मूल (On the Fourfold Root of the Principle of Sufficient Reason) प्रस्तुत किया जिसमें इस बात की मीमांसा की गयी थी कि क्या केवल तर्क (reason) संसार के गूढ रहस्यों से पर्दा उठा सकता है? बौद्ध दर्शन की भांति शोपेनहावर भी कि इच्छाओं (will) के शमन की आवश्यकता पर बल दिया है।
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ये एक रोमन दार्शनिक थे। ये नव-प्लातोवादी दार्शनिक थे। एनीसियस मैनलियस सेवरिनस बोथियस, जिसे आमतौर पर बोथियस (c 477 - 524 ईस्वी) कहा जाता है, एक रोमन सीनेटर, कौंसल, मजिस्ट्रेट ऑफ़िसियोरम, और 6 ठी शताब्दी के दार्शनिक थे। जेल में रहते हुए, बोथियस ने अपने सांत्वना दर्शन, भाग्य, मृत्यु और अन्य मुद्दों पर एक दार्शनिक ग्रंथ की रचना की, जो मध्य युग के सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली कार्यों में से एक बन गया।
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मोसेस मैमोनिदेस (1135-1204) मध्य युग के यहूदी दार्शनिक थे। इन्होने गाइड तो दौब्टिंग (अंग्रेजी में - Guide to Doubting) नामक पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक में ये धर्ममीमांसा(theology) को पूरी तरह से तर्कसंगत करने की कोशिश करते हैं।
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ज़ाक लैकन ( 13 अप्रैल 1901 – 9 सितंबर 1981) एक फ़्रान्सीसी मनोविश्लेषक और मनोविकारविज्ञानी थे जिन्हें "फ़्रोइड के बाद सबसे विवादास्पद मनोविश्लेषक" कहा जाता है। 1953 से 1981 तक पेरिस में वार्षिक सेमिनार देने के द्वारा लाकाँ ने 1960 और 1970वी सदी के कई मुख्य फ़्रांसीसी बुद्धिजीवीओं को प्रभावित किया, ख़ास तौर पे उन्हें जो उत्तर-संरचनावाद से जुड़े हुए हैं। उत्तर-संरचनावाद, समालोचनात्मक सिद्धांत, भाषाविज्ञान, 20वी सदी का फ़ांसीसी दर्शन, फ़िल्म सिद्धांत और नैदानिक मनोविश्लेषण पर उनके विचारों का महत्वपूरण प्रभाव है।
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पारमेनीडेस(515 ईसा पूर्व- 460 ईसा पूर्व) यूनानी दार्शनिक था। पारमेनीडेस को तत्वमीमांसा या ऑन्कोलॉजी का संस्थापक माना जाता है और इसने पश्चिमी दर्शन के पूरे इतिहास को प्रभावित किया है। वह दर्शनशास्त्र के एलैटिक स्कूल के संस्थापक थे, जिसमें एलिया के ज़ेनो और सामोस के मेलिस्स भी शामिल थे। ज़ेनो की गति के विरोधाभास परमेनाइड्स के दृष्टिकोण का बचाव करने के लिए थे।
पारमेनीडेस द्वारा एकल ज्ञात काम, एक कविता है, ऑन नेचर, जिसके केवल टुकड़े बचे हैं, जिसमें पश्चिमी दर्शन के इतिहास में पहला निरंतर तर्क शामिल है। इसमें, परमेनाइड्स वास्तविकता के दो विचारों को निर्धारित करता है। "सच्चाई का रास्ता" (कविता का एक हिस्सा) में, वह बताते हैं कि सभी वास्तविकता एक है, परिवर्तन असंभव है, और अस्तित्व कालातीत, एक समान और आवश्यक है। "राय का तरीका" में, परमेनिड्स दिखावे की दुनिया की व्याख्या करते हैं, जिसमें किसी के संवेदी संकायों की अवधारणाएं होती हैं जो झूठी और धोखेबाज होती हैं, फिर भी वह एक कॉस्मोलॉजी प्रदान करता है।
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जैक्स डेरिडा (15 जुलाई 1930 – 8 अक्टूबर 2004) अल्जीरिया में जन्में एक फ्रांसीसी दार्शनिक थे जिन्हें विरचना (deconstruction) के सिद्धान्त के लिए जाना जाता है। उनके विशाल लेखन कार्य का साहित्यिक और यूरोपीय दर्शन पर गहन प्रभाव पड़ा है। Of Grammatology उनकी सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक मानी जाती है।
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डेविड ह्यूम (1711-1776) आधुनिक काल के विश्वविख्यात दार्शनिक थे। वे स्काटलैंड (एडिनबरा) के निवासी थे। आपके मुख्य ग्रंथ हैं - 'मानव प्रज्ञा की एक परीक्षा' (An Enquiry Concerning Human Understanding) और 'नैतिक सिद्धांतों की एक परीक्षा' (An Enquiry Concerning the Principles of Morals) ह्यूम का दर्शन अनुभव की पृष्ठभूमि में परमोत्कृष्ट है। आपके अनुसार यह अनुभव (impression) और एकमात्र अनुभव ही है जो वास्तविक है। अनुभव के अतिरिक्त कोई भी ज्ञान सर्वोपरि नहीं है। बुद्धि से किसी भी ज्ञान का आविर्भाव नहीं होता। बुद्धि के सहारे मनुष्य अनुभव से प्राप्त विषयों का मिश्रण (संश्लेषण) एवं विच्छेदन (विश्लेषण) करता है। इस बुद्धि से नए ज्ञान की वृद्धि नहीं होती।
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एडमंड गुस्ताव अल्ब्रेक्ट हुसेरेल: जर्मन 23 अप्रैल 59 - 19 अप्रैल 93 एक जर्मन दार्शनिक थे, जिन्होंने घटना विज्ञान के स्कूल की स्थापना की। अपने शुरुआती काम में, उन्होंने तर्कवाद के विश्लेषण के आधार पर तर्कवाद में ऐतिहासिकता और मनोवैज्ञानिकता की आलोचना की। अपने परिपक्व काम में, उन्होंने तथाकथित घटनात्मक कमी के आधार पर एक व्यवस्थित मूलभूत विज्ञान विकसित करने की मांग की। यह तर्क देते हुए कि पारलौकिक चेतना सभी संभावित ज्ञान की सीमाओं को निर्धारित करती है, हुसेरेल ने घटना को एक पारलौकिक-आदर्शवादी दर्शन के रूप में पुनर्परिभाषित किया। हसरेल के विचार ने गहराई से 20 वीं सदी के दर्शन को प्रभावित किया, और वह समकालीन दर्शन और उससे परे एक उल्लेखनीय व्यक्ति बने हुए हैं।
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खलील जिब्रान ( 6 जनवरी, 1883 – 10 जनवरी, 1931) एक लेबनानी-अमेरिकी कलाकार, कवि तथा न्यूयॉर्क पेन लीग के लेखक थे। उन्हें अपने चिंतन के कारण समकालीन पादरियों और अधिकारी वर्ग का कोपभाजन होना पड़ा और जाति से बहिष्कृत करके देश निकाला तक दे दिया गया था। आधुनिक अरबी साहित्य में जिब्रान खलील 'जिब्रान' के नाम से प्रसिद्ध हैं, किंतु अंग्रेजी में वह अपना नाम खलील ज्व्रान लिखते थे और इसी नाम से वे अधिक प्रसिद्ध भी हुए।
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डेमोक्रिटस यूनान के दार्शनिक थे। ये आण्विक तथ्य के जन्मदाता थे। इन्होंने पदार्थ के गठन के सम्बन्ध में खोज किया। डेमोक्रिटस का जन्म एबर्डा, थ्रेस, के आसपास 460 ईसा पूर्व में हुआ था, हालांकि सटीक वर्ष को लेकर असहमति है। उनके सटीक योगदानों को उनके गुरु ल्यूयुसपस के उन विषयों से अलग करना मुश्किल है, क्योंकि उन्हें अक्सर ग्रंथों में एक साथ उल्लेख किया गया है। ल्यूसिप्पस से ली गई परमाणु पर उनकी अटकलें, 19 वीं शताब्दी के परमाणु संरचना को समझने के लिए एक आंशिक और आंशिक समानता का सामना करती हैं, जिसने कुछ अन्य यूनानी दार्शनिकों की तुलना में डेमोक्रिटस को एक वैज्ञानिक के रूप में अधिक माना है; हालाँकि, उनके विचारों ने बहुत भिन्न आधारों पर विश्राम किया। प्राचीन एथेंस में बड़े पैमाने पर नजरअंदाज किया गया, कहा जाता है कि डेमोक्रिटस को प्लेटो द्वारा इतना नापसंद किया गया था कि बाद वाले ने उनकी सभी पुस्तकों को जला दिया। फिर भी वह अपने साथी उत्तरी मूल के दार्शनिक अरस्तू के बारे में अच्छी तरह से जानते थे, और प्रोटागोरस के शिक्षक थे।
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जेरेमी बेन्थम (15 फ़रवरी 1748 – 6 जून 1832) इंग्लैण्ड का न्यायविद, दार्शनिक तथा विधिक व सामाजिक सुधारक था। वह उपयोगितावाद का कट्टर समर्थक था। वह प्राकृतिक विधि तथा प्राकृतिक अधिकार के सिद्धान्तों का कट्टर विरोधी था। सन् 1776 में उसकी 'शासन पर स्फुट विचार' (Fragment on Government) शीर्षक पुस्तक प्रकाशित हुई। इसमें उसने यह मत व्यक्त किया कि किसी भी कानून की उपयोगिता की कसौटी यह है कि जिन लोगों से उसका संबंध हो, उनके आनंद, हित और सुख की अधिक से अधिक वृद्धि वह करे। उसकी दूसरी पुस्तक 'आचार और विधान के सिद्धांत' (Introduction to Principles of Morals and Legislation) 1789 में निकली जिसमें उसके उपयोगितावाद का सार मर्म सन्निहित है। उसने इस बात पर बल दिया कि 'अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख' ही प्रत्येक विधान का लक्ष्य होना चाहिए। 'उपयोगिता' का सिद्धांत वह अर्थशास्त्र में भी लागू करना चाहता था। उसका विचार था कि प्रत्येक व्यक्ति को, किसी भी तरह के प्रतिबंध के बिना, अपना हित संपन्न करने की स्वतंत्रता रहनी चाहिए।
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एंटोनियो ग्राम्स्की (1891- 1937) इटली की कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक, मार्क्सवाद के सिद्धांतकार तथा प्रचारक थे। बीसवीं सदी के आरंभिक चार दशकों के दौरान दक्षिणपंथी फ़ासीवादी विचारधारा से जूझने और साम्यवाद की पक्षधरता के लिए विख्यात हैं।
एंटोनियो ग्राम्स्की का जन्म 22 जनवरी 1891 को सरदानिया में कैगलियारी के एल्स प्रांत में हुआ था। फ़्रांसिस्को ग्राम्शी और गिसेपिना मर्सिया की सात संतानों में से अंतोनियो ग्राम्शी चौथी संतान थे। पिता के साथ ग्राम्शी के कभी भी मधुर संबंध नहीं रहे लेकिन माँ के साथ उनका गहरा लगाव था। माँ की सहज बयान शैली, परिस्थितियों के अनुरूप लचीलापन और जीवंत हास्यबोध का उनके व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ा।
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एरिक लेस्ली बार्कर (12 फरवरी 1912 - 1 जून 1990) एक अंग्रेजी हास्य अभिनेता थे। उन्हें लोकप्रिय ब्रिटिश कैरी ऑन फिल्मों में उनकी भूमिकाओं के लिए याद किया जाता है, हालांकि वे केवल श्रृंखला में शुरुआती फिल्मों में दिखाई दिए, इसके अलावा 1978 में कैरी ऑन इमैनुएल के लिए वापसी की।
एरिक बार्कर का जन्म लंदन के थॉर्नटन हीथ में हुआ था, जो 20 फरवरी 1912 को तीन बच्चों में सबसे छोटा था। उन्हें क्रॉयडन, सरे में लाया गया था, और व्हिटगिफ्ट स्कूल में शिक्षित किया गया था। वह शहर में अपने पिता के पेपर व्यापारियों की कंपनी में शामिल हो गए, लेकिन लेखन पर पूरा ध्यान केंद्रित करना छोड़ दिया। उनका पहला उपन्यास द वॉच हंट तब प्रकाशित हुआ था जब वह अठारह वर्ष के थे। उन्होंने लघु कथाएँ और नाटक लिखे, बाद में खुद में प्रकट हुए और धीरे-धीरे मंच पर और रेडियो के लिए गीत, रिव्यू और स्केच लिखने और प्रदर्शन करने लगे।
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