कई किले, शानदार और विशाल हैं, एक लंबा इतिहास है, जो भारत में सदियों और दशकों से जीवित है। ये किले न केवल इतिहास को दर्शाते हैं, बल्कि उन समय की स्थापत्य प्रतिभा को भी दर्शाते हैं। और अगर, आप भी इन चमत्कारों के प्रति आकर्षण रखते हैं, जो अभी भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं|
महान किलों के बगैर भारत देश की कल्पना करना भी मुश्किल है। ये किलें और महल इस देश के इतिहास का एक अभिन्न अंग हैं। इन सभी भव्य संरचनाएं और उनसे जुड़ी कहानियां काफ़ी आकर्षक होती हैं। ये वास्तुशिल्प के चमत्कार हैं जो भारत यात्रा पर निकले पर्यटकों का मन मोह लेते हैं। इनमें से अधिकांश किले प्राचीन शासकों की वीरता और पराक्रम की गाथाएँ बताते हैं जो इन किलों में रहा करते थें। यहां आप भारत के सबसे लोकप्रिय किलों की सूची पा सकते हैं। लगभग हर भारतीय राज्य में एक प्रभावशाली किला है जो उस काल की स्थापत्य शैली को बहुत खूबसूरती से प्रदर्शित करता है। ये किले भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और महान इतिहास का अनुभव करने में लोगों की मदद करते हैं। भारत सरकार का पर्यटन विभाग इनमें से कई किलों की देखभाल करता है। इन भव्य किलों को जीवन में एक बार अवश्य देखना चाहिए।
शनिवार वाड़ा, पेशवाओं का महल पुणे शहर में ही स्थित है। मराठा साम्राज्य
को बुलंदियों पर ले जाने वाले बाजीराव ने 1746 ई. में एक महल का निर्माण
करवाया जो शनिवार वाड़ा के नाम से जाना जाता है। 1828 ई. में इस महल में आग
लगी और महल का बड़ा हिस्सा आग की चपेट में आ गया। यह आग कैसे लगी यह अपने
आप में अब तक एक सवाल बना हुआ है। कहानियों के अनुसार, यहां पेशवा बालाजी
बाजीराव के बेटे नारायण राव की आवाज गूंजती है जिसका बेदर्दी से कत्ल कर
दिया गया था ताकि वह राजा न बन सके। आज भी रात के समय यहां मदद के लिए
पुकारते एक बच्चे की दर्दनाक चीखें सुनाई देती हैं। अंधेरी रातों में यह
महल और अधिक डरावना लगता है।
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राजगढ़ एक पहाड़ी किला है जो भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले में स्थित है। इसे मुरुमदेव के नाम से भी जाना जाता है। यह किला लगभग 26 वर्षों तक शिवाजी के शासन में मराठा साम्राज्य की राजधानी था। बाद में राजधानी को रायगढ़ किले में स्थानांतरित कर दिया गया था। तोरण नामक एक निकटवर्ती किले से खोजे गए खजाने का इस्तेमाल इस किले को बनाने और मजबूत करने के लिए किया गया था।[1] यह पुणे के दक्षिण-पश्चिम में लगभग 60 किमी (37 मील) और सह्याद्रि में नासरपुर से लगभग 15 कि.मी. (9.3 मील) दूर स्थित है। यह किला समुद्र तल से 1,376 मीटर (4,514 फीट) ऊँचा है। किले के आधार का व्यास लगभग 40 किमी (25 मील) है, जिसने इस पर इतिहास में घेराबंदी करना मुश्किल बना दिया था। किले के खंडहरों में पानी के कुंड और गुफाएँ पाएँ गए हैं। यह किला मुरुमादेवी डोंगर (देवी मुरुम्बा का पर्वत) नामक पहाड़ी पर बनाया गया था। माना जाता है कि इसकी सुरक्षित भौगोलिक स्थिति के कारण ही छत्रपती शिवाजी महाराज ने इसे कई साल शासन का केन्द्र बनाएं रखा।
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मल्हारगढ़ पश्चिमी भारत में एक पहाड़ी किला है जो पुणे से 30 किलोमीटर की दूरी पर सासवड के पास है। इसके आधार पर सोनोरी गांव स्थित होने के कारण इसे सोनोरी किला के नाम से भी जाना जाता है। किले का नाम भगवान मल्हारी के लिए रखा गया था और मराठों द्वारा लगभग 1775 में बनाया गया आखिरी किला था।
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चित्तौड़गढ़ दुर्ग भारत का सबसे विशाल दुर्ग है। यह राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है जो भीलवाड़ा से कुछ किमी दक्षिण में है। यह एक विश्व विरासत स्थल है। चित्तौड़ मेवाड़ की राजधानी थी। यह इतिहास की सबसे खूनी लड़ाईयों का गवाह है। इसने तीन महान आख्यान और पराक्रम के कुछ सर्वाधिक वीरोचित कार्य देखे हैं जो अभी भी स्थानीय गायकों द्वारा गाए जाते हैं। चित्तौड़ के दुर्ग को 21जून, 2013 में युनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया। चित्तौड़ दुर्ग को राजस्थान का गौरव एवं राजस्थान के सभी दुुर्गों का सिरमौर भी कहते हैं |
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तोरणा किला, जिसे प्रचंडगढ़ के नाम से भी जाना जाता है, भारत के महाराष्ट्र राज्य में पुणे जिले में स्थित एक बड़ा किला है। यह ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 1646 में छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा 16 वर्ष की आयु में मराठा साम्राज्य के नाभिक का निर्माण करने वाला पहला किला था।
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आमेर दुर्ग भारत के राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर के आमेर क्षेत्र में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित एक पर्वतीय दुर्ग है। यह जयपुर नगर का प्रधान पर्यटक आकर्षण है। आमेर का कस्बा मूल रूप से स्थानीय मीणाओं द्वारा बसाया गया था, जिस पर कालांतर में कछवाहा राजपूत मान सिंह प्रथम ने राज किया व इस दुर्ग का निर्माण करवाया। यह दुर्ग व महल अपने कलात्मक विशुद्ध हिन्दू वास्तु शैली के घटकों के लिये भी जाना जाता है। दुर्ग की विशाल प्राचीरों, द्वारों की शृंखलाओं एवं पत्थर के बने रास्तों से भरा ये दुर्ग पहाड़ी के ठीक नीचे बने मावठा सरोवर को देखता हुआ प्रतीत होता है।
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भुजिया किला, जिसे भुजिया किला भी कहा जाता है, भारत के कच्छ जिले में भुज शहर के बाहरी इलाके में स्थित एक किला है। किले को भुजिया पहाड़ी के ऊपर बनाया गया है। किले का निर्माण जडेजा प्रमुखों द्वारा शहर की रक्षा के लिए किया गया था। भुजिया किले का निर्माण राव गॉधी I (1715–1718) ने कच्छ के शासक के रूप में शुरू किया था, जो कि भुज के लिए एक प्रकार का कार्य था। हालाँकि, प्रमुख कार्य और पूर्णता उनके पुत्र, देशलजी I (1718–1741) के शासन के दौरान हुई थी।
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बेकल किले को 1650 ईस्वी में केलदी के शिवप्पा नायक ने बेकल में बनवाया था। यह 40 एकड़ में फैला केरल का सबसे बड़ा किला है। बेकल किले का निर्माण 1650 ई। में केलडी के शिवप्पा नायक ने बेकल में करवाया था। यह 40 एकड़ (160,000 मी 2) में फैला केरल का सबसे बड़ा किला है। पेरुमल युग के दौरान, बेकल महोदयपुरम का एक हिस्सा था। महोदायापुरम पेरुमल्स के पतन के बाद, बेकल 12 वीं शताब्दी में मुशिका या कोलाथिरी या चिरक्कल शाही परिवार की संप्रभुता के तहत आया। कोलाथिरिस के तहत बेकल का समुद्री महत्व बढ़ गया और मालाबार एक महत्वपूर्ण बंदरगाह शहर बन गया।
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चित्रदुर्ग, कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले में स्थित एक दुर्ग है। चित्रदुर्ग के किले का इतिहास सम्भवतः 15वीं शताब्दी के अंत से 18वीं शताब्दी के प्रारम्भ के बीच का है। इस किले को किसने बनवाया, इसके कोई प्रामाणिक ऐतिहासिक श्रोत नहीं हैं। इतिहासकार इस पर एकमत हैं कि उस कालखण्ड में जो भी उस क्षेत्र का अधिपति रहा उसने इस किले को बनवाने में योगदान दिया, जिसमे सबसे पहले राष्ट्रकूट, चालुक्य और होयसाल प्रमुख थे।इसके बाद वाल्मीकि नायक वंश का शासन रहा इनकी राजधानी चित्रदुर्ग थी विजयनगर साम्राज्य के (77) क्षेत्रों पर नायक वंश का शासन रहा है
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'बीदर का किला दक्षिणी कर्नाटक के बीदर में स्थित है। बहमनी वंश के शासक अल्ला उद्दीन बहमन ने 1427 में अपनी राजधानी गुलबर्गा से बीदर कर लिया और इस किले तथा अन्य भवनों का निर्माण कराया। बीदर किले के अंदर 30 से अधिक स्मारक हैं। बीदर शहर और किला कर्नाटक राज्य में सबसे उत्तरी बिदर पठार के किनारे पर स्थित है।
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दौलताबाद किला, जिसे देवगिरी या देवगिरी के नाम से भी जाना जाता है, औरंगाबाद, महाराष्ट्र, भारत में स्थित एक ऐतिहासिक गढ़ है। कुछ समय के लिए दिल्ली सल्तनत की राजधानी और बाद में अहमदनगर सल्तनत की एक माध्यमिक राजधानी के रूप में यह यादव वंश की राजधानी थी।
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ग्वालियर दुर्ग ग्वालियर शहर का प्रमुखतम स्मारक है। ग्वालियर दुर्ग का निर्माण कछवाहशासक सूरजसेन ने किया बघेलशासकों ने ग्वालियर पर लगभग 600 से 700 साल तक शासन किया। यह किला 'गोपाचल' नामक पर्वत पर स्थित है। किले के पहले राजा का नाम सूरज सेन था, जिनके नाम का प्राचीन 'सूरज कुण्ड' किले पर स्थित है। इसका निर्माण 93वीं शताब्दी में राजा मान सिंह तोमर ने मान मंदिर महल का निर्माण करवाया। भिन्न कालखण्डों में इस पर विभिन्न शासकों का नियन्त्रण रहा। गुजरी महल का निर्माण रानी मृगनयनी के लिए राया ।
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कुम्भलगढ़ का दुर्ग राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है। निर्माण कार्य पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के डलवाये जिन पर दुर्ग और उसका नाम अंकित था। वास्तुशास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारतें, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है।
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गोलकुंडा या गोलकोण्डा दक्षिणी भारत में, हैदराबाद नगर से पाँच मील पश्चिम स्थित एक दुर्ग तथा ध्वस्त नगर है। पूर्वकाल में यह कुतबशाही राज्य में मिलनेवाले हीरे-जवाहरातों के लिये प्रसिद्ध था। इस दुर्ग का निर्माण वारंगल के राजा ने 14वीं शताब्दी में कराया था। बाद में यह बहमनी राजाओं के हाथ में चला गया और मुहम्मदनगर कहलाने लगा। 1512 ई. में यह कुतबशाही राजाओं के अधिकार में आया और वर्तमान हैदराबाद के शिलान्यास के समय तक उनकी राजधानी रहा। फिर 1687 ई. में इसे औरंगजेब ने जीत लिया। यह ग्रैनाइट की एक पहाड़ी पर बना है जिसमें कुल आठ दरवाजे हैं और पत्थर की तीन मील लंबी मजबूत दीवार से घिरा है। यहाँ के महलों तथा मस्जिदों के खंडहर अपने प्राचीन गौरव गरिमा की कहानी सुनाते हैं। मूसी नदी दुर्ग के दक्षिण में बहती है। दुर्ग से लगभग आधा मील उत्तर कुतबशाही राजाओं के ग्रैनाइट पत्थर के मकबरे हैं जो टूटी फूटी अवस्था में अब भी विद्यमान हैं।
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नाहरगढ़ का किला जयपुर को घेरे हुए अरावली पर्वतमाला के ऊपर बना हुआ है। आरावली की पर्वत श्रृंखला के छोर पर आमेर की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस किले को सवाई राजा जयसिंह द्वितीय ने सन 1734 में बनवाया था। यहाँ एक किंवदंती है कि कोई एक नाहर सिंह नामके राजपूत की प्रेतात्मा वहां भटका करती थी। किले के निर्माण में व्यावधान भी उपस्थित किया करती थी। अतः तांत्रिकों से सलाह ली गयी और उस किले को उस प्रेतात्मा के नाम पर नाहरगढ़ रखने से प्रेतबाधा दूर हो गयी थी।
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मुरुद-जंजीरा भारत के महाराष्ट्र राज्य के रायगड जिले के तटीय गाँव मुरुड में स्थित एक किला हैं। जंजिरा किला पर्यटन के लिए काफी प्रसिद्ध है। यह भारत के पश्चिमी तट का एक मात्र किला हैं, जो की कभी भी जीता नही जा सका था। यह किला 350 वर्ष पुराना है। स्थानीय लोग इसे अजेय किला कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ अजेय होता है। माना जाता है कि यह किला पंच पीर पंजातन शाह बांडया बाबा के संरक्षण में है। शाह बाबा का मकबरा भी इसी किले में है। यह किला समुद्र तल से 90 फीट ऊंचा है। इसकी नींव 20 फीट गहरी है। यह किला सिद्दी जौहर द्वारा बनवाया गया था। इस किले का निर्माण 22 वर्षों में हुआ था। यह किला 22 एकड़ में फैला हुआ है। इसमें 22 सुरक्षा चौकियां है। ब्रिटिश, पुर्तगाली, शिवाजी महाराज , कान्होजी आंग्रे, चिम्माजी अप्पा तथा संभाजी महाराजने इस किले को जीतने का काफी प्रयास किया था, लेकिन कोई सफल नहीं हो सका। इस किले में सिद्दिकी शासकों की कई तोपें अभी भी रखी हुई हैं।
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श्रीरंगपटना किला एक ऐतिहासिक किला है जो दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक के ऐतिहासिक राजधानी श्रीरंगपट्टनम में स्थित है। 1454 में टिममनना नायक द्वारा निर्मित। किले को पूरी तरह से किलेबंद कर दिया गया था और आक्रमणकारियों के खिलाफ बचत की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए फ्रांसीसी वास्तुकारों की मदद से वास्तुकला को संशोधित किया गया था। कावेरी नदी एक तरफ के किले को घेरती है।
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लेह पैलेस एक पूर्व शाही महल है जो भारतीय हिमालय में लेह शहर, लद्दाख से दिखता है। इसका निर्माण सन् 1600 में सेंगे नामग्याल ने करवाया था। 19 वीं शताब्दी के मध्य में डोगरा सेना ने लद्दाख पर अधिकार कर लिया और शाही परिवार को स्टोक पैलेस में जाने के लिए मजबूर कर दिया।
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उपरकोट, जूनागढ़, गुजरात, भारत के पूर्व की ओर स्थित एक किला है। मौर्य साम्राज्य के शासनकाल के दौरान गिरनार पहाड़ी की तलहटी में एक किला और कस्बा स्थापित किया गया था और गुप्त काल के दौरान इसका उपयोग जारी रखा गया था, लेकिन सौराष्ट्र क्षेत्र की राजधानी जूनागढ़ से वल्लभी से मैत्रेका में स्थानांतरित होने के दौरान इसका महत्व खो दिया। चुडासमास 875 CE से जूनागढ़ के आसपास बर्ड्स के अनुसार बस गए जब उन्होंने चावड़ा शासक से वामनस्थली (वनथली) का अधिग्रहण किया।
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जयगढ़ दुर्ग भारत के पश्चिमी राज्य राजस्थान की राजधानी जयपुर में अरावली पर्वतमाला में चील का टीला पर आमेर दुर्ग एवं मावता झील के ऊपरी ओर बना किला है। इस दुर्ग का निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह ने 1667 ई. में आमेर दुर्ग एवं महल परिसर की सुरक्षा हेतु करवाया था और इसका नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है।
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कांगड़ा दुर्ग हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा कस्बे के बाहरी सेमा में फैला हुआ एक प्राचीन दुर्ग है। इस दुर्ग का उल्लेख सिकन्दर महान के युद्ध सम्बन्धी रिकार्डों में प्राप्त होता है जिससे इसके इसापूर्व चौथी शताब्दी में विद्यमान होना सिद्ध होता है। कांगड़ा, धर्मशाला से 20 किमी दूर है।
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रायगढ़ दुर्ग, महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के महाड में पहाड़ी पर स्थित प्रसिद्ध दुर्ग है। इसे छत्रपति शिवाजी ने बनवाया था और 1674 में इसे अपनी राजधानी बनाया। यह किला सह्याद्री पर्वतरांग मे स्थित है. समुद्रतळ से 820 मीटर (2700 फुट ) कि उंचाई पर है. मराठा साम्राज्य पर उसकी एक खास पहचान है. छत्रपती शिवाजी महाराज ने रायगडकिले की विशेषता और स्थान ध्यान मे लेते हुये 17 वी सदि मे स्वराज्य की राजधानी इस किले को बनाई। दुर्ग एक बहुत ही शक्तिशाली दुर्ग है। छत्रपती शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक भी यहीं पर हुआ था।
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रणथंभोर दुर्ग दिल्ली-मुंबई रेल मार्ग के सवाई माधोपुर रेल्वे स्टेशन से 13 कि॰मी॰ दूर रन और थंभ नाम की पहाडियों के बीच समुद्रतल से 481 मीटर ऊंचाई पर 12 कि॰मी॰ की परिधि में बना एक दुर्ग है। दुर्ग के तीनो और पहाडों में प्राकृतिक खाई बनी है जो इस किले की सुरक्षा को मजबूत कर अजेय बनाती है। यूनेस्को की विरासत संबंधी वैश्विक समिति की 36वीं बैठक में 21 जून 2013 को रणथंभोर को विश्व धरोहर घोषित किया गया। यह राजस्थान का एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है।
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जैसलमेर दुर्ग स्थापत्य कला की दृष्टि से उच्चकोटि की विशुद्ध स्थानीय दुर्ग रचना है। ये दुर्ग 250 फीट तिकोनाकार पहाडी पर स्थित है। इस पहाडी की लंबाई 150 फीट व चौडाई 750 फीट है। जैसलमेर दुर्ग पीले पत्थरों के विशाल खण्डों से निर्मित है। पूरे दुर्ग में कहीं भी चूना या गारे का इस्तेमाल नहीं किया गया है। मात्र पत्थर पर पत्थर जमाकर फंसाकर या खांचा देकर रखा हुआ है। दुर्ग की पहांी की तलहटी में चारों ओर 15 से 20 फीट ऊँचा घाघरानुमा परकोट खिचा हुआ है, इसके बाद 200 फीट की ऊँचाई पर एक परकोट है, जो 10 से 156 फीट ऊँचा है। इस परकोट में गोल बुर्ज व तोप व बंदूक चलाने हेतु कंगूरों के मध्य बेलनाकार विशाल पत्थर रखा है। गोल व बेलनाकार पत्थरों का प्रयोग निचली दीवार से चढ़कर ऊपर आने वाले शत्रुओं के ऊपर लुढ़का कर उन्हें हताहत करने में बडें ही कारीगर होते थे, युद्ध उपरांत उन्हें पुनः अपने स्थान पर लाकर रख दिया जाता था।
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उत्तर प्रदेश राज्य के झाँसी में बंगरा नामक पहाड़ी पर 1613 इस्वी में यह दुर्ग ओरछा के बुन्देल राजा बीरसिंह जुदेव ने बनवाया था। 25 वर्षों तक बुंदेलों ने यहाँ राज्य किया उसके बाद इस दुर्ग पर क्रमश मुगलों, मराठों और अंग्रजों का अधिकार रहा। मराठा शासक नारुशंकर ने 1729-30 में इस दुर्ग में कई परिवर्तन किये जिससे यह परिवर्धित क्षेत्र शंकरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इसे अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ।
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सिंधुदुर्ग, शिवाजी द्वारा सन 1664 में महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले के मालवन तालुका के समुद्र तट से कुछ दूर अरब सागर में एक द्वीप पर निर्मित एक नौसैनिक महत्व के किले का नाम है। यह मुंबई के दक्षिण में महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में स्थित है। शिवाजी महाराज के सैनिक दल में इस किले को बहुत महत्त्व प्राप्त था। किले के क्षेत्र कुरटे बंदरगाह पर 48 एकर पर फैला है। तटबंदी की लंबाई साधारणत: तीन किलोमीटर है। बुरुज की संख्या 52 होकर 45 पथरीले जिने है। इस किले पर शिवाजी महाराज के काल के मीठे पानी के पथरीले कुँए है। उनके नाम दूध कुऑ शक्कर कुँआ ,दही कुँआ है। इस किले की तटबंदी की दीवार में छत्रपती शिवाजी महाराज ने उस काल में तीस से चालीस शौचालय की निर्मिति की है। इन किलो में शिवाजी महाराज के शंकर के रूप का एक मंदिर है। यह मंदिर इ.स. 1695 में शिवाजी महाराज के पुत्र राजाराम महाराज इन्होंने बनाया था।
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विजयदुर्ग, सिंधुदुर्ग तट पर सबसे पुराना किला, शिलाहर वंश के राजा भोज द्वितीय के शासनकाल के दौरान और शिवाजी द्वारा पुनर्गठन किया गया था। इससे पहले, किले में 5 एकड़ का क्षेत्र शामिल था और चारों तरफ से समुद्र से घिरा हुआ था।
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लोहागढ़ दुर्ग एक दुर्ग अथवा एक किला है जो भारतीय राज्य राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित है। दुर्ग का निर्माण भरतपुर के जाट वंश के(जाटो का प्लेटो अथार्त जाटों का अफलातून) तब कुंवर महाराजा सूरजमल ने 19 फरवरी 1733 ई. में करवाया था, जो सोघर के निकट निर्मित हैं।
यह भारत का एकमात्र अजेय दुर्ग हैं। अतः इसको अजय गढ़ का दुर्ग भी कहते हैं। इसके चारों ओर मिट्टी की दोहरी प्राचीर बनी हैं। अतः इसको मिट्टी का दुर्ग भी कहते हैं। किले के चारों ओर एक गहरी खाई हैं, जिसमें मोती झील से सुजानगंगा नहर द्वारा पानी लाया गया हैं। इस किले में दो दरवाजे हैं। इनमें उत्तरी द्वार अष्टधातु का बना है, जिसे जवाहर सिंह जाट 1765 ई. में दिल्ली विजय के दौरान लाल किले से उतारकर लाएँ थे।
दीवाने खास के रूप में प्रयुक्त कचहरी कला का उदाहरण हैं।
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जूनागढ़ दुर्ग, राजस्थान के बीकानेर में स्थित है। मूलतः इसका नाम चिन्तामणि था। यह राजस्थान के उन मुख्य दुर्गों में से एक है जो पहाड़ी पर नहीं बने हैं। जूनागढ़ किला भारत के राजस्थान के बीकानेर शहर का एक किला है। किले को मूल रूप से चिंतामणि कहा जाता था और 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में जूनागढ़ या "पुराने किले" का नाम बदल दिया गया था, जब शासक परिवार किले की सीमा के बाहर लालगढ़ पैलेस में चले गए थे। यह राजस्थान के कुछ प्रमुख किलों में से एक है जो एक पहाड़ी की चोटी पर नहीं बनाया गया है। बीकानेर का आधुनिक शहर किले के आसपास विकसित हुआ है।
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नीमराना (वास्तविक उच्चारण :नीमराणा) भारत के राजस्थान प्रदेश के अलवर जिले का एक प्राचीन ऐतिहासिक शहर है, जो नीमराना तहसील में दिल्ली-जयपुर राजमार्ग पर दिल्ली से 122 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह 1947 तक चौहानों द्वारा शासित 14 वीं सदी के पहाड़ी किले का स्थल है। नीमराना के अंतिम राजा राजेन्द्र सिंह ने महल पर तिरंगा फहराया यह क्षेत्र राठ के नाम से जाना जाता है कहावत है काठ नवे पर राठ नवे ना , जो इसके अंतिम शासक है और उन्होंने प्रीवी पर्स के उन्मूलन के बाद किले के रखरखाव में असमर्थ होने के कारण इसे नीमराना होटल्स नामक एक समूह को बेच दिया, जिसे इसने एक हेरिटेज (विरासत) होटल में बदल दिया. नीमराना से कुछ दूरी पर अलवर जिले में एक दूसरा किला केसरोली है, जो सबसे पुराने विरासत स्थलों में से एक है। इतिहासकार इसे महाभारत काल का मत्स्य जनपद बताते हैं। केसरोली में कोई विराटनगर के बौद्ध विहार के सबसे पुराने अवशेष देख सकता है, जहां पांडवों ने भेष बदलकर अपने निर्वासन के अंतिम वर्ष बिताये थे, जहां के पांडुपोल में हनुमान की लेटी हुई प्रतिमा, पुराने जलाशयों के अलावा संत शासक भर्तृहरि और तालवृक्ष की समाधियां हैं।
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पलक्कड़ किला केरल राज्य के पालक्कड़ जिले में स्थित राज्य के सबसे अच्छे संरक्षित किलों में से एक है। इतिहासकारों के अनुसार पलक्कड़ का राजा कोज़ीकोड़ के शासक ज़मोरीन का हितैषी हुआ करता था। 18वीं शताब्दी के आरम्भ में उन्होंने ज़मोरिन से अलग होने का निर्णय लिया और स्वतंत्र हो गए। तब ज़मोरीन ने पलक्कड़ पर आक्रमण किया जिससे बचने हेतु सहायता मांगने के लिए हैदर अली के पास आए। तब हैदर अली मौके का लाभ उठाया और उस सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान को इस सहायता के एवज में स्वयं अधिकृत कर लिया। इसके बाद 1766 में हैदर अली ने इसका पुनर्निर्माण भी करवाया। 1784 में ग्यारह दिनों के युद्ध के बाद किले को कर्नल फुलरटन के मातहत सेना द्वारा ब्रिटिश अधिकार में ले लिया गया। इसके बाद कोज़िकोड के ज़मोरीन के सैनिकों ने किले पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में ले लिया कब्ज़ा कर लिया, किन्तु 1790 में अंग्रेजों ने इसे पुनः ले लिया और फिर से किले को पुनर्निर्मित किया। टीपू सुल्तान ने 1799 में अंग्रेजों के साथ एक मुठभेड़ में वीरगति पायी और तभी से उसके नाम पर जाना जाने लगा।
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लाल किला या लाल क़िला, दिल्ली के ऐतिहासिक, क़िलेबंद, पुरानी दिल्ली के इलाके में स्थित, लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है। यद्धपि यह किला काफी पुराना है और ईस किले को पाँचवे मुग़ल शासक शाहजहाँ ने अपनी राजधानी के रूप में चुना था। इस किले को "लाल किला", इसकी दीवारों के लाल-लाल रंग के कारण कहा जाता है। इस ऐतिहासिक किले को वर्ष 2007 में युनेस्को द्वारा एक विश्व धरोहर स्थल चयनित किया गया था।
यह किला भी ताजमहल और आगरे के क़िले की भांति ही यमुना नदी के किनारे पर स्थित है। लालकोट राजा पृथ्वीराज चौहान की बारहवीं सदी के अन्तिम दौर में राजधानी थी। वही नदी का जल इस किले को घेरकर खाई को भरती थी। इसके पूर्वोत्तरी ओर की दीवार एक पुराने किले से लगी थी, जिसे सलीमगढ़ का किला भी कहते हैं। सलीमगढ़ का किला इस्लाम शाह सूरी ने 1546 में बनवाया था। लालकिले का पुनर्निर्माण 1638 में आरम्भ होकर 1648 में पूर्ण हुआ। मतों के अनुसार इसे लालकोट का एक पुरातन किला एवं नगरी बताते हैं, जिसे शाहजहाँ ने कब्जा़ करके यह किला बनवाया था।
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पुरंदर किला को शिवाजी के पुत्र संभाजी के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है। किले का बार-बार आदिल शाही बीजापुर सल्तनत और मुगलों के खिलाफ शिवाजी के उदय में उल्लेख किया गया है। पुरंधर का किला पुणे के दक्षिण-पूर्व में 50 किमी दूर पश्चिमी घाट में समुद्र तल से 4,472 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
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प्रतापगढ़ दुर्ग (या किला) महाराष्ट्र के सतारा जिले में सतारा शहर से 20 कि॰मी॰ दूरी पर स्थित है। यह मराठा शासक छत्रपती शिवाजी महाराज के अधिकार में था। उन्होंने इस किले को नीरा और कोयना नदियों की ओर से सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से बनवाया था। 1656 में किले का निर्माण पूर्ण हुआ था। उसी वर्ष 10 नवम्बर को इसी किले से शिवाजी और अफज़ल खान के बीच युद्ध हुआ था और इस युद्ध में शिवाजी को विजय प्राप्त हुई थी। इस जीत से मराठा साम्राज्य की हिम्मत को और बढ़ावा मिला था। दुर्ग समुद्री तल से 1000 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। किले में मां भवानी और शिव जी का मंदिर हैं।
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ओरछा किला भारत के मध्य प्रदेश राज्य के ओरछा नामक स्थान पर बना एक किला है। इसका निर्माण सोलहवीं सदी में राजा रुद्र प्रताप सिंह ने शुरू करवाया था। यह मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में स्थित है। यह बेतवा नदी और जामनी नदी के संगम से एक छोटा सा द्वीप बना है। इसके पूर्वी भाग में बाजार से शहर में आने के लिए ग्रेनाइट पत्थर से पुल बनाया गया है।
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वारंगल् दुर्ग तेलंगाना के वरंगल में स्थित एक दुर्ग है। इसका निर्माण 1399 ई में हुआ था। काकतीय वंश के गजपति देव तथा उनकी पुत्री रुद्रम्मा ने इस विशाल दुर्ग का निर्माण कराया था। किले में चार सजावटी द्वार हैं, जिन्हें काकतीय कला थोरनम के रूप में जाना जाता है, जिसने मूल रूप से एक अब बर्बाद हो चुके महान शिव मंदिर के प्रवेश द्वार बनाए हैं।
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सिंहगढ़, सिंहगड, (अर्थ : सिंह का दुर्ग) ,भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे ज़िले में स्थित एक पहाड़ी क्षेत्र पर स्थित एक दुर्ग है जो पुणे से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दुर्ग को पहले कोंढाना के नाम से भी जाना जाता था। यह दुर्ग समुदतल से लगभग 4400 फूट ऊँचाई पर स्थित हेेै। सह्याद्री के पूर्व शाखा पर फैला भुलेश्वर की 'रांगेवर' यह दुर्ग बना है।दो सीढ़ियों जैसा दिखाई देनेवाला पहाडी सा भाग और दूरदर्शन के लिए खडा किया 'मनोरा' इस कारण पुणे से कही भी वो सबको आकर्षित करता है। पुरंदर, राजगड, तोरणा, लोहगड, विसापूर, तुंग ऐसा प्रचंड मुलुख इस दुर्ग से दिखाई देता है।
किले का पहले का नाम 'कोंढाणा' है। पूरा किला आदिलशाही में था।दादोजी कोंडदेव ये आदिलशहा की ओर से सुभेदार पद पर चुने गए। आगे इ.स. 1647 में किलेपर अपना लष्करी केंद्र बनाया। आगे इ.स. 1649 में शहाजी राजा को छुड़ाने के लिए शिवाजी राजा ने यह किला फिर से आदिलशह को सुपुर्द किया। पुरंदर के तह में जो किले मुगल को दिए उसमें कोंडाना किला भी था। मुगलोंकी तरफ से उदेभान राठोड यह कोंडाना का अधिकारी था। यह राजपूत था पर बाद में मुसलमान बन गया था।
शिवाजी महाराज का कालखंड में उनके विश्वास के सरदार और बालमित्र तानाजी मालुसरे और उनके मावले इस गाँव के सैनिकों ने (मावळ प्रांत से भरती हुए सैनिको का समूह) यह किला एक चढाई में जीता। इस लढाई में तानाजी को वीरमरण आया और प्राणो का बलीदान देकर किला जीता इसलिए शिवाजी महाराजा ने "गड आला पण सिंह गेला"(मतलब दुर्ग मिला पर सिंह गया) ये वाक्य उच्चारे थे । आगे उन्होंने कोंढाणा यह नाम बदलकर "सिंहगड" ऐसा नाम रखा। सिंहगड यह मुख्यतः तानाजी मालुसरे इनके बलिदान के कारण प्रसिद्ध है। सिंहगढ़ का युद्ध, देखें
तानाजी मालुसरे नाम का हजारी सैनिक का था। उसने कबूल किया कि, 'कोंडाणा अपन लेंगे', ऐसा कबूल करके वस्त्रे, पान लेकर किले के यत्नास 500 आदमी लेकर किले के नीचे गया और दोनो सैनिक मर्दाने चुनकर रात को किले की दिवार पर चढाए। किले पर उदेभान रजपूत था। उसे पता चला कि गनिमाके लोग आए और ये खबर पता चलने पर कुल रजपूत कंबरकस्ता होकर, हाती तोहा बार लेकर, हिलाल (मशाल), चंद्रज्योती लगाकर बारासौ आदमी तोफवाले और तिरंदाज, बरचीवाले, चलकर आए, तब सैनिक लोगोने फौजपर रजपुत के भी चलकर आऐ, बडा युद्ध एक प्रहर हुआ। पाच सौ रजपूत मारे गए,उदेभान किल्लेदार खाशा की और तानाजी मालुसरा इनकी मुठभेड़ हुई। दोघे बड़े योद्धे, महशूर, एक एक से बढचढ पडे, तानाजीचे बाँए हाथ की ढाल टुटी, दूसरी ढाल समयास आई नहीं, फिर तानाजीने अपना बाँए हाथ की ढाल करके उसे खींच कर , दोनो महरागास भडके। दोनो की मौत हुई। फिर सूर्याजी मालुसरा (तानाजीचा भाई), इसने हिंमत कर के किला कुल लोग समेटते हुए बचे राजपूत मारे। किला काबीज किया।
शिवाजी महाराज को दुर्ग जीतने की और तानाजी गिरने का समाचार मिला तब शिवाजी महाराज ने दुर्ग मिला पर सिंह गया एसा कहा।
माघ वद्य नवमी दि. 4 फरवरी 1672 को यह युद्ध हुआ था।
सिंहगड पर लगे फलक के अनुसार
सिंहगड का नाम कोंढाणा, इसामी नाम के कवीने फुतुह्स्सलातीन या शाहनामा-इ-हिंद इस फार्शी काव्य में (इ. 1350) मुछ्म्द तुघलक ने इ.1628 में कुंधीयाना किले को लिया। उस समय यह किला नागनायक नाव के कोली के पास था।
अहमदनगर के निजामशाही काल में कोंढाणा का उल्लेख इ.1482, 1553, 1554 व 1569 के समय के हैं इ.1635 के लगभग कोंढाणा पर सीडी अवर किलेदार थे मोगल व आदिलशाहा इऩ्होने मिलकर कोंढाणा लिया । इस समय(इ.1636) आदिलशाह का खजाना डोणज्याच्या खिंड में निजाम का सरदार मुधाजी मायदे ने लुटा।
शहाजी राज्य के काल में सुभेदार दादोजी कोंडदेव मालवणकर इनके संरक्षण में कोंढाणा था ऐसा उल्लेख आदिलशाही फर्मानात है।
दादोजी कोंडदेव आदिलशाही के नोकर थे फिर भी वो शहाजी राजा से एक निष्ठ थे।एकनिष्ठ होने के कारण शिवाजी राजा ने मृत्यूपर्यंत (इ.1647) कोंढाणा लेने का प्रयत्न नही किया। पर उनके बाद जल्द ही राजा ने यह दुर्ग अपने कब्जे में लिया।
इतिहासकार श्री.ग.ह. खरे इनके मतानुसार तानाजी प्रसंग होने के पहले कोंढाणा का नाम 'सिहगड' किया गया इसके प्रमाण है। कै.ह.ना. आपटे इनके उपन्यास में तानाजी प्रसंग के बाद किले का नाम सिंहगड किया ऐसा उल्लेख है।
शिवाजी राजा के समय और उसके बाद यह किला कभी मराठो के पास तो कभी मुगलाे के अधीन था।
गडावरील ठिकाणे
बारूद के कोठार: दरवाजे से अंदर आने पर जो पत्थरों की इमारत दिखती है वही ये बारूद के कोठार दि. 11 सितंबर 1751 में इन कोठारों पर बिजली गिरी इस दुर्घटना में उस समय दुर्ग पर स्थित फडणिस का घर उद्ध्वस्त हुआ और घर के सभी सदस्य मारे गए।
टिलक बंगला : रामलाल नंदराम नाईक इनसे खरीदी गई जगह पर बने इस बंगलें में बाल गंगाधर तिलक आते रहते थे। 1915 साल में महात्मा गांधी और लोकमान्य तिलक इनकी मुलाकात इसी बंगले में हुई थी।
कोंढाणेश्वर : यह मंदिर शंकरजी का है और वे यादव के कुलदैवता थे। अंदर एक पिंडी और सांब है और यह मंदिर यादवकालीन है।
श्री अमृतेश्वर भैरव मंदिर' : कोंढाणेश्वर के मंदिर से थोडा आगे गए तो यह अमृतेश्वर का प्राचीन मंदिर लगता है। भैरव यह कोली लोगों के देवता है। यादवो के पहले इस दुर्ग पर कोली की बस्ती थी। मंदिर में भैरव व भैरवी ऐसी दो मूर्ती दिखती है। भैरव के हाथ में राक्षस की मुंडी है।
देवटाके : तानाजी स्मारक के पीछे बाँए हाथ के छोटे तालाब के बाजू से बाई ओर जाने पर यह प्रसिद्ध ऐसा देवटाके लगता है। टंकी का उपयोग पीने के पानी के लिए किया जाता है और आज भी होता है। महात्मा गांधी जब पुणे आते थे तब जानकर इस टंकी का पानी पीने के लिए मंगाते थे।
कल्याण दरवाजा : दुर्ग के पश्चिम दिशा की ओर यह दरवाजा है।
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शिवनेरी दुर्ग या शिवनेरी किला, भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे के जुन्नर गांव के पास स्थित एक ऐतिहासिक किला है। शिवनेरी छत्रपति शिवाजी का जन्मस्थान भी है।
शिवाजी के पिता, शाहजी बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह की सेना में एक सेनापति थे। लगातार हो रहे युद्ध के कारण शाहजी, अपनी गर्भवती पत्नी जीजाबाई की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे, इस लिए उन्होने अपने परिवार को शिवनेरी में भेज दिया। शिवनेरी चारों ओर से खड़ी चट्टानों से घिरा एक अभेद्य गढ़ था।
शिवाजी का जन्म 19 फ़रवरी 1630 को हुआ था और उनका बचपन भी यहीं बीता। इस गढ़ के भीतर माता शिवाई का एक मन्दिर था, जिनके नाम पर शिवाजी का नाम रखा गया। किले के मध्य में एक सरोवर स्थित है जिसे "बादामी तालाब" कहते हैं। इसी सरोवर के दक्षिण में माता जीजाबाई और बाल शिवाजी की मूर्तियां स्थित हैं। किले में मीठे पानी के दो स्रोत हैं जिन्हें गंगा-जमुना कहते हैं और इनसे वर्ष भर पानी की आपूर्ति चालू रहती है।
किले से दो किलोमीटर की दूरी पर लेन्याद्री गुफाएं स्थित हैं जहां अष्टविनायक का मन्दिर बना है।
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