मानव सभ्यता के उदय से ही जंगली व्यवहार के कारण मनुष्य का नाता लड़ाई झगड़ों से शुरू से ही रहा है, और युद्ध आक्रामक कृत्य है जो सामान्यतः राज्यों के बीच झगड़ों के आक्रामक और हथियारबंद लड़ाई में परिवर्तित होने से उत्पन्न होता है। आज हम आपको ऐसे ही कुछ युद्धों के बारे में बताएँगे जो की इतिहास में सबसे अधिक जानलेवा और खतरनाक युद्ध कौन कौन से हैं | विश्व में युद्धों की विशाल संख्या में से कुछ चुनिन्दा युद्ध छांटना बड़ा दुष्कर कार्य है, इसी सूची के चयन के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गयी है वो सूची खतम होने के बाद टिप्पणी में वर्णित है|
युद्ध हमेशा विनाशकारी परिणामों को लेकर आता है वो युद्ध चाहे किसी भी भी कारण से क्यों न हो। युद्ध के कुछ प्रमुख कारण होते हैं, विस्तार की महत्वाकांक्षा, राजनयिक मुद्दे, नरसंहार, गरीबी, अपरिपक्व राजनैतिक नेतृत्व, संसाधनों का लालच और कभी कभी आतंरिक अशांति। इन सभी युद्धों में एक बात समान होती है- बड़े पैमाने पर मृतकों की संख्या। नीचे दुनिया के सबसे घातक युद्धों की सूची दी गई है। इनमें से कुछ संघर्षों में सैनिकों और निर्दोष नागरिकों सहित लाखों लोग मारे गए और उनमें से कुछ ने तो दुनिया भर में सत्ता का पूरा संतुलन ही बदल दिया। कई संघर्ष तो इतने भयानक और व्यापक थे कि उन्होंने लगभग पूरी दुनिया को प्रभावित किया जिनमे लगभग 85 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई। किसी भी देश को ऐसे युद्धों से सर्वथा बचना चाहिए। आइए प्रार्थना करें कि मानव जाति की भलाई के लिए इस तरह के युद्ध दुनिया में कहीं भी फिर से न हों।
द्वितीय विश्वयुद्ध 1939 से 1945 तक चलने वाला विश्व-स्तरीय युद्ध था। लगभग 70 देशों की थल-जल-वायु सेनाएँ इस युद्ध में सम्मलित थीं। इस युद्ध में विश्व दो भागों मे बँटा हुआ था - मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र। इस युद्ध के दौरान पूर्ण युद्ध का मनोभाव प्रचलन में आया क्योंकि इस युद्ध में लिप्त सारी महाशक्तियों ने अपनी आर्थिक, औद्योगिक तथा वैज्ञानिक क्षमता इस युद्ध में झोंक दी थी। इस युद्ध में विभिन्न राष्ट्रों के लगभग 10 करोड़ सैनिकों ने हिस्सा लिया, तथा यह मानव इतिहास का सबसे ज़्यादा घातक युद्ध साबित हुआ। इस महायुद्ध में 5 से 7 करोड़ व्यक्तियों की जानें गईं क्योंकि इसके महत्वपूर्ण घटनाक्रम में असैनिक नागरिकों का नरसंहार- जिसमें होलोकॉस्ट भी शामिल है- तथा परमाणु हथियारों का एकमात्र इस्तेमाल शामिल है (जिसकी वजह से युद्ध के अंत मे मित्र राष्ट्रों की जीत हुई)। इसी कारण यह मानव इतिहास का सबसे भयंकर युद्ध था।
हालांकि जापान चीन से सन् 1937 ई. से युद्ध की अवस्था में था किन्तु अमूमन दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत 01 सितम्बर 1939 में जानी जाती है जब जर्मनी ने पोलैंड पर हमला बोला और उसके बाद जब फ्रांस ने जर्मनी पर युद्ध की घोषणा कर दी तथा इंग्लैंड और अन्य राष्ट्रमंडल देशों ने भी इसका अनुमोदन किया।
जर्मनी ने 1939 में यूरोप में एक बड़ा साम्राज्य बनाने के उद्देश्य से पोलैंड पर हमला बोल दिया। 1939 के अंत से 1941 की शुरुआत तक, अभियान तथा संधि की एक शृंखला में जर्मनी ने महाद्वीपीय यूरोप का बड़ा भाग या तो अपने अधीन कर लिया था या उसे जीत लिया था। नाट्सी-सोवियत समझौते के तहत सोवियत रूस अपने छः पड़ोसी मुल्कों, जिसमें पोलैंड भी शामिल था, पर क़ाबिज़ हो गया। फ़्रांस की हार के बाद युनाइटेड किंगडम और अन्य राष्ट्रमंडल देश ही धुरी राष्ट्रों से संघर्ष कर रहे थे, जिसमें उत्तरी अफ़्रीका की लड़ाइयाँ तथा लम्बी चली अटलांटिक की लड़ाई शामिल थे। जून 1941 में युरोपीय धुरी राष्ट्रों ने सोवियत संघ पर हमला बोल दिया और इसने मानव इतिहास में ज़मीनी युद्ध के सबसे बड़े रणक्षेत्र को जन्म दिया। दिसंबर 1941 को जापानी साम्राज्य भी धुरी राष्ट्रों की तरफ़ से इस युद्ध में कूद गया। दरअसल जापान का उद्देश्य पूर्वी एशिया तथा इंडोचायना में अपना प्रभुत्व स्थापित करने का था। उसने प्रशान्त महासागर में युरोपीय देशों के आधिपत्य वाले क्षेत्रों तथा संयुक्त राज्य अमेरीका के पर्ल हार्बर पर हमला बोल दिया और जल्द ही पश्चिमी प्रशान्त पर क़ब्ज़ा बना लिया।
सन् 1942 में आगे बढ़ती धुरी सेना पर लगाम तब लगी जब पहले तो जापान सिलसिलेवार कई नौसैनिक झड़पें हारा, युरोपीय धुरी ताकतें उत्तरी अफ़्रीका में हारीं और निर्णायक मोड़ तब आया जब उनको स्तालिनग्राड में हार का मुँह देखना पड़ा। सन् 1943 में जर्मनी पूर्वी युरोप में कई झड़पें हारा, इटली में मित्र राष्ट्रों ने आक्रमण बोल दिया तथा अमेरिका ने प्रशान्त महासागर में जीत दर्ज करनी शुरु कर दी जिसके कारणवश धुरी राष्ट्रों को सारे मोर्चों पर सामरिक दृश्टि से पीछे हटने की रणनीति अपनाने को मजबूर होना पड़ा। सन् 1944 में जहाँ एक ओर पश्चिमी मित्र देशों ने जर्मनी द्वारा क़ब्ज़ा किए हुए फ़्रांस पर आक्रमण किया वहीं दूसरी ओर से सोवियत संघ ने अपनी खोई हुयी ज़मीन वापस छीनने के बाद जर्मनी तथा उसके सहयोगी राष्ट्रों पर हमला बोल दिया। सन् 1945 के अप्रैल-मई में सोवियत और पोलैंड की सेनाओं ने बर्लिन पर क़ब्ज़ा कर लिया और युरोप में दूसरे विश्वयुद्ध का अन्त 8 मई 1945 को तब हुआ जब जर्मनी ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया।
सन् 1944 और 1945 के दौरान अमेरिका ने कई जगहों पर जापानी नौसेना को शिकस्त दी और पश्चिमी प्रशान्त के कई द्वीपों में अपना क़ब्ज़ा बना लिया। जब जापानी द्वीपसमूह पर आक्रमण करने का समय क़रीब आया तो अमेरिका ने जापान में दो परमाणु बम गिरा दिये। 15 अगस्त 1945 को एशिया में भी दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हो गया जब जापानी साम्राज्य ने आत्मसमर्पण करना स्वीकार कर लिया।
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भारतीय उपमहाद्वीप पर मुस्लिम आक्रमण व युद्ध
यह काल सन 643 से लेकर सन 1857 तक का था| विकिपीडिया के अनुसार इस दौरान भारतीय उपमहाद्वीप पर होने वाले मुस्लिम आक्रमणों व युद्धों में अनुमानित 20 लाख से 8 करोड़ के बीच लोगों की जान गयी | इसमें सर्वाधिक हत्याएं महमूद गजनवी व उसके पश्चात वाले काल में हुईं |
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यूरोपियों द्वारा अमेरिका का उपनिवेशीकरण
सन 1492 से 1691 के दौरान यूरोप के लोगों द्वारा अमेरिका में उपनिवेशीकरण व बस्तियों का निर्माण हुआ| इसकी शुरुआत कोलम्बस द्वारा अमेरिका की खोज के बाद हुई | इस उपनिवेशिकरण के कारण असंख्य लोगों की जान गयी जिसका अनुमान 80 लाख से 13 करोड़ के बीच लगाया जाता है | जब यूरोप के लोग अमेरिका पहुंचे तो उनके साथ चेचक व इन्फ्लुएंजा जैसी अन्य बीमारियाँ भी पहुंचीं| मूल अमेरिकी लोगों के शरीर इन बीमारियों से पहले कभी नहीं जूझे थे व उनके शरीर में इन बीमारियों के लिए AntiBodies नहीं थीं| सिर्फ इन बीमारियों के कारण ही करोड़ों मूल अमेरिकी लोग मारे गए |
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तीन राजशाहियों के युद्ध
तीन राजशाहियाँ प्राचीन चीन के एक काल को कहते हैं जो हान राजवंश के सन् 220 ईसवी में सत्ता-रहित होने के फ़ौरन बाद शुरू हुआ और जिन राजवंश की सन् 265 ईसवी में स्थापना तक चला। इस काल में तीन बड़े राज्यों - साओ वेई, पूर्वी वू और शु हान - के बीच चीन पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए खींचातानी चली। कभी-कभी इन राज्यों को सिर्फ़ 'वेई', 'वू' और 'शु' भी बुलाया जाता है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस काल की शुरुआत वेई राज्य की 220 ई में स्थापना से हुई और अंत पूर्वी वू राज्य पर जिन राजवंश की 280 में विजय से हुआ। बहुत से चीनी इतिहासकार इस काल की शुरुआत सन् 184 में हुए 'पीली पगड़ी विद्रोह' से करते हैं जो हान राजवंश काल का एक किसान विद्रोह था जिसमें ताओ धर्म के अनुयायी भी गुप्त रूप से मिले हुए थे।
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मंगोल साम्राज्य ने तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी में अपने साम्राज्य को एशिया व यूरोप में स्थापित किया| चंगेज खान ने मंगोल साम्राज्य की स्थापना की थी| मंगोल हमलों व आक्रमणों में असंख्य लोगों की मृत्यु हुई, जिसका अनुमान लगाना कठिन है क्यूंकि इसी काल में प्लेग की महामारी भी फैली जिसे Black Death ( काली मौत ) के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें तकरीबन 7.5 करोड़ से लेकर 20 करोड़ लोगों की जान गयी |
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ताइपिंग विद्रोह में 2 से 3 करोड़ मृत्यु हुईं, यह दक्षिणी चीन में चला एक भयानक गृहयुद्ध था जो हांग जिकुआंग के नेतृत्व में 1850 ईस्वी. में हुआ। इसमें हजारों मेहनतकश गरीब लोगों ने परम शांति के स्वर्गिक साम्राज्य की स्थापना के लिए लड़ाई लड़ी।
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चीन के तांग राजवंश और विभिन्न क्षेत्रीय शक्तियों के बीच एन लुशान विद्रोह एक सशस्त्र संघर्ष था। विद्रोह 16 दिसंबर 755 को शुरू हुआ, जब जनरल ए लुशान ने उत्तरी चीन में खुद को सम्राट घोषित किया, इस तरह एक प्रतिद्वंद्वी यान राजवंश की स्थापना की, और जब 17 फरवरी 763 को यान राजवंश गिर गया, तो यह घटना समाप्त हो गई। इस विद्रोह में डेढ़ से दो करोड़ लोगों की मृत्यु हुई |
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पहला विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक मुख्य तौर पर यूरोप में व्याप्त महायुद्ध को कहते हैं। यह महायुद्ध यूरोप, एशिया व अफ्रीका तीन महाद्वीपों और समुद्र, धरती और आकाश में लड़ा गया। इसमें भाग लेने वाले देशों की संख्या, इसका क्षेत्र (जिसमें यह लड़ा गया) तथा इससे हुई क्षति के अभूतपूर्व आंकड़ों के कारण ही इसे विश्व युद्ध कहते हैं। यह युद्ध लगभग 52 माह तक चला और उस समय की पीढ़ी के लिए यह जीवन की दृष्टि बदल देने वाला अनुभव था। करीब आधी दुनिया हिंसा की चपेट में चली गई और इस दौरान अनुमानतः एक करोड़ लोगों की जान गई और इससे दोगुने घायल हो गए। इसके अलावा बीमारियों और कुपोषण जैसी घटनाओं से भी लाखों लोग मरे। युद्ध समाप्त होते-होते चार बड़े साम्राज्य रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी (हैप्सबर्ग) और उस्मानिया ढह गए। यूरोप की सीमाएँ फिर से निर्धारित हुईं और अमेरिका निश्चित तौर पर एक 'महाशक्ति' बन कर उभरा।
युद्ध में जर्मनी की हार के पश्चात 18 जून 1919 में पेरिस शांति सम्मेलन हुआ जिसमें 27 देश सम्मिलित हुए। अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस ने मुख्य नेतृत्व निभाया । जर्मनी पर वर्साय की संधि थोप दी गई ।
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चीन के मिंग राज्यवंश व किंग राज्यवंश के टकराव में लगभग 2.5 करोड़ लोगों की मृत्यु हुई, जिसमें आम नागरिक भी शामिल थे | यह संघर्ष 1618 से 1683 तक चला| यह किंग के पतन, मिंग और अन्य गुटों के पतन, और किंग साम्राज्य के तहत आउटर मंचूरिया, मंगोलिया, झिंजियांग, तिब्बत और ताइवान के एकीकरण के साथ समाप्त हुआ।
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तैमूर के आक्रमणों में लगभग 1.7 करोड़ लोगों की मृत्यु हुई | 14 वीं शताब्दी के आठवें दशक में तिमुरिड आक्रमण की शुरुआत हुई और 15 वीं शताब्दी की शुरुआत में तैमूर की मृत्यु के साथ समाप्त हुआ।
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डुंगान विद्रोह (1895-96) में लगभग 96 लाख मृत्यु हुईं | यह क्विंगई राजवंश के खिलाफ किन्हाई और गांसु में विभिन्न चीनी मुस्लिम जातीय समूहों का विद्रोह था, जो एक ही संप्रदाय के दो सूफी आदेशों के बीच एक हिंसक विवाद के कारण उत्पन्न हुआ था।
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मुगल-मराठा युद्ध, 1680 से 1707 तक मराठा साम्राज्य और मुगल साम्राज्य के बीच लड़े गए थे। डेक्कन युद्धों की शुरुआत 1680 में मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा बीजापुर में मराठा एनक्लेव पर आक्रमण से हुई थी। इन युद्धों में लगभग 56 लाख मृत्यु हुई थीं |
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चीनी गृहयुद्ध में लगभग 25 लाख मृत्यु हुईं | यह चीन गणराज्य की नेतृत्व कर रही गुओमिंदांग दल और चीनी साम्यवादी दल के बीच 1945 से 1949 तक चलने वाला संघर्ष था। वास्तव में यह गृहयुद्ध समय-समय पर 1927 से ही जारी रहा, जब गुओमिंदांग के नेता च्यांग काई शेक ने साम्यवादियों को कुचलने के लिए उनके विरुद्ध प्रथम कड़ा अभियान चलाया। इन दोनों के बीच झड़पें 1937 तक चली, जब जापान ने चीन पर आक्रमण करा। इसके बाद 1937–1945 काल में द्वितीय चीन-जापान युद्ध चला और यह दोनों दल जापान से लड़ने के लिए आपसी सहयोग करने लगे। इस काल के अंत भाग में जापान द्वितीय विश्ववयुद्ध में उलझ गया और यह चीन-जापान युद्ध उसी का एक भाग बन गया। इसमें 1945 में जापान की पराजय होने के बाद, गुओमिंदांग-साम्यवादी गृहयुद्ध फिर आरम्भ हो गया और 1949 तक साम्यवादी चीन की मुख्यभूमि पर हावी हो गये जहाँ उन्होंने जनवादी गणतंत्र चीन की स्थापना करी, जबकि गुओमिंदांग ने ताइवान में जा कर गढ़ बना लिया और वहाँ चीनी गणराज्य की नीव रखी। उस समय से इन दोनों की स्थिति लगभग वैसी ही है।
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रिक़ोन्कीसता, इसमें लगभग 77 लाख लोगों की मृत्यु हुई, यह ईसाइयों की साढ़े सात सौ साल लंबे उन प्रयासों को कहा जाता है जो उन्होंने द्वीप नुमा आइबीरिया से मुसलमानों को निकालने और उनकी सरकार के पतन के लिए की। 8 वीं सदी में बनो आमया के हाथों स्पेन की जीत के बाद रिक़ोन्कीसता शुरू हुआ सन् 711 में और इसका समापन 1492 ई. में बरबादी गरना्ह के साथ हुआ।
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भारत का विभाजन माउंटबेटन योजना के आधार पर निर्मित भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया। इस अधिनियम में कहा गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत व पाकिस्तान अधिराज्य नामक दो स्वायत्त्योपनिवेश बना दिए जाएंगें और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी। स्वतंत्रता के साथ ही 14 अगस्त को पाकिस्तान अधिराज्य (बाद में जम्हूरिया ए पाकिस्तान) और 15 अगस्त को भारतीय संघ (बाद में भारत गणराज्य) की संस्थापना की गई। इस घटनाक्रम में मुख्यतः ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रांत को पूर्वी पाकिस्तान और भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में बाँट दिया गया और इसी तरह ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत को पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब प्रांत और भारत के पंजाब राज्य में बाँट दिया गया। इसी दौरान ब्रिटिश भारत में से सीलोन (अब श्रीलंका) और बर्मा (अब म्यांमार) को भी अलग किया गया, लेकिन इसे भारत के विभाजन में नहीं शामिल किया जाता है। इसी तरह 1971 में पाकिस्तान के विभाजन और बांग्लादेश की स्थापना को भी इस घटनाक्रम में नहीं गिना जाता है। (नेपाल और भूटान इस दौरान भी स्वतंत्र राज्य थे और इस बंटवारे से प्रभावित नहीं हुए।)
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सन 1917 की रूस की क्रांति विश्व इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। इसके परिणामस्वरूप रूस से ज़ार के स्वेच्छाचारी शासन का अन्त हुआ तथा रूसी सोवियत संघात्मक समाजवादी गणराज्य (Russian Soviet Federative Socialist Republic) की स्थापना हुई। यह क्रान्ति दो भागों में हुई थी - मार्च 1917 में, तथा अक्टूबर 1917 में। पहली क्रांति के फलस्वरूप सम्राट को पद-त्याग के लिये विवश होना पड़ा तथा एक अस्थायी सरकार बनी। अक्टूबर की क्रान्ति के फलस्वरूप अस्थायी सरकार को हटाकर बोलसेविक सरकार (कम्युनिस्ट सरकार) की स्थापना की गयी।
1917 की रूसी क्रांति बीसवीं सदी के विश्व इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना रही। 1789 ई. में फ्रांस की राज्यक्रांति ने स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व की भावना का प्रचार कर यूरोप के जनजीवन को गहरे स्तर पर प्रभावित किया। रूसी क्रांति की व्यापकता अब तक की सभी राजनीतिक घटनाओं की तुलना में बहुत विस्तृत थी। इसने केवल निरंकुश, एकतंत्री, स्वेच्छाचारी, ज़ारशाही शासन का ही अंत नहीं किया बल्कि कुलीन जमींदारों, सामंतों, पूंजीपतियों आदि की आर्थिक और सामाजिक सत्ता को समाप्त करते हुए विश्व में मजदूर और किसानों की प्रथम सत्ता स्थापित की। मार्क्स द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक समाजवाद की विचारधारा को मूर्त रूप पहली बार रूसी क्रांति ने प्रदान किया। इस क्रांति ने समाजवादी व्यवस्था को स्थापित कर स्वयं को इस व्यवस्था के जनक के रूप में स्थापित किया। यह विचारधारा 1917 के पश्चात इतनी शक्तिशाली हो गई कि 1950 तक लगभग आधा विश्व इसके अंतर्गत आ चुका था।क्रांति के बाद का विश्व इतिहास कुछ इस तरीके से गतिशील हुआ कि या तो वह इसके प्रसार के पक्ष में था अथवा इसके प्रसार के विरूद्ध। रूसी क्रांति का जनक लेनिन को कहा जाता है जिन्होंने रूस की क्रांति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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कंबोडियन नरसंहार को पोल पॉट के नेतृत्व में खमेर रूज ने अंजाम दिया था, जिन्होंने कम्बोडिया को साम्यवाद की ओर ढकेल दिया था। इसके परिणामस्वरूप 1975 से 1979 तक, कंबोडिया की 1975 की आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा 1.5 से 2 मिलियन लोगों की मौत का था।
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सन् 1618 से 1648 तक कैथोलिकों और प्रोटेसटेटों के बीच युद्धों की जो परंपरा चली थी उसे ही साधारणतया तीस वर्षीय युद्ध कहा जाता है। इसका आरंभ बोहेमिया के राजसिंहासन पर पैलेटाइन के इलेक्टर फ्रेडरिक के दावे से हुआ और अंत वेस्टफे लिया की संधि से। धार्मिक युद्ध होते हुए भी इसमें राजनीतिक झगड़े उलझे हुए थे। इसमें लगभग 58 लाख मृत्यु हुईं |
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यहूदी-रोमन युद्ध 66 और 135 सीई के बीच रोमन साम्राज्य के खिलाफ पूर्वी भूमध्य सागर के यहूदियों द्वारा बड़े पैमाने पर विद्रोह की एक श्रृंखला थे। इनमें लगभग 8 लाख लोगों की मृत्यु हुई| यहूदी-रोमन युद्धों का यहूदी लोगों पर एक नाटकीय प्रभाव था, उन्हें पूर्वी भूमध्यसागरीय में एक बड़ी आबादी से एक बिखरे और सताए गए अल्पसंख्यक में बदल दिया। यहूदी-रोमन युद्धों को अक्सर यहूदी समाज के लिए एक आपदा के रूप में उद्धृत किया जाता है।
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नेपोलियन बोनापार्ट जब तक सत्ता में रहा युजिन choda रहारा यूरोप त्रस्त था। इन युद्धों को सम्मिलित रूप से नेपोलियन के युद्ध (Napoleonic Wars) कहा जाता है। 1803 से लेकर 1815 तक कोई साठ युद्ध उसने लड़े थे जिसमें से सात में उसकी पराजय (अधिकांशतः अपने अन्तिम दिनों में)।
इन युद्धों के फलस्वरूप यूरोपीय सेनाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए। परम्परागत रूप से इन युद्धों को 1972 में फ्रांसीसी क्रांति के समय शुरू हुए क्रांतिकारी युद्धों की शृंखला में ही रखा जाता है। आरम्भ में फ्रांस की शक्ति बड़ी तेजी से बढ़ी और नैपोलियन ने यूरोप का अधिकांश भाग अपने अधिकार में कर लिया। 1812 में रूस पर आक्रमण करने के बाद फ्रांस का बड़ी तेजी से पतन हुआ।
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इंका साम्राज्य की स्पेनिश विजय, जिसे पेरू की विजय के रूप में भी जाना जाता है, अमेरिका के स्पेनिश उपनिवेशवाद में सबसे महत्वपूर्ण अभियानों में से एक था। प्रारंभिक खोज और सैन्य झड़पों के वर्षों के बाद, विजयवर्गीय फ्रांसिस्को पिजारो, उसके भाइयों और उनके मूल सहयोगियों के तहत 168 स्पेनिश सैनिकों ने काजामार्का की 1532 की लड़ाई में सप्पा इंका अतुल्यल्पा पर कब्जा कर लिया। यह एक लंबे अभियान का पहला कदम था जिसमें दशकों की लड़ाई हुई लेकिन 1572 में स्पेनिश जीत और पेरू के वायसराय के रूप में इस क्षेत्र के उपनिवेशवाद का अंत हुआ।
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फ्रांसीसी क्रांतिकारी युद्ध
फ्रांसीसी क्रांतिकारी युद्ध 1792 से 1802 तक चलने वाले सैन्य संघर्षों की एक श्रृंखला थी और जिसके परिणामस्वरूप फ्रांसीसी क्रांति हुई। उन्होंने फ्रांस को ग्रेट ब्रिटेन, पवित्र रोमन साम्राज्य, प्रशिया, रूस और कई अन्य राजशाही के खिलाफ खड़ा किया। वे दो अवधियों में विभाजित हैं: पहले गठबंधन का युद्ध (1792–97) और दूसरा गठबंधन का युद्ध (1798-1802)। शुरू में यूरोप तक ही सीमित था, लड़ाई धीरे-धीरे एक वैश्विक आयाम मान गई। एक दशक तक लगातार युद्ध और आक्रामक कूटनीति के बाद, फ्रांस ने उत्तरी अमेरिका में लुइसियाना क्षेत्र में इतालवी प्रायद्वीप और यूरोप के निचले देशों से लेकर कई क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की थी। इन संघर्षों में फ्रांसीसी सफलता ने यूरोप के अधिकांश हिस्सों में क्रांतिकारी सिद्धांतों के प्रसार को सुनिश्चित किया।
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1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
1857 का भारतीय विद्रोह, इसमें लगभग 30 लाख लोगों की मृत्यु हुई | इसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है| 1857 की क्रान्ति की शुरूआत '10 मई 1857' की संध्या को मेरठ मे हुई थी और इसको समस्त भारतवासी 10 मई को प्रत्येक वर्ष ”क्रान्ति दिवस“ के रूप में मनाते हैं, क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है,, मेरठ से निकली इसी चिंगारी की आग दादरी होते हुए बुलंदशहर तक पहुँची और अंग्रेजी शासन के ख़िलाफ विकराल रूप धारण करती गई!
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कांगो के दो युद्धों में लगभग 40 लाख लोगों की मृत्यु हुई | प्रथम युद्ध 1996 - 97 में हुआ व द्वितीय युद्ध 1998 में शुरू हुआ व इसका अंत 2003 में हुआ| दूसरा कांगो युद्ध (जिसे अफ्रीका के महान युद्ध या महान अफ्रीकी युद्ध के रूप में भी जाना जाता है, और कभी-कभी अफ्रीकी विश्व युद्ध के रूप में जाना जाता है) अगस्त 1998 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में शुरू हुआ, पहले कांगो के एक साल से थोड़ा अधिक युद्ध, और कुछ ही मुद्दों को शामिल किया। युद्ध आधिकारिक तौर पर जुलाई 2003 में समाप्त हो गया, जब कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य की संक्रमणकालीन सरकार ने सत्ता संभाली। यद्यपि 2002 में एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन देश के कई क्षेत्रों में हिंसा जारी रही है, विशेष रूप से पूर्व में। लॉर्ड्स की प्रतिरोध सेना के विद्रोह और किवु और इतुरी संघर्ष के बाद से शत्रुता जारी है।
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कोरियाई युद्ध(1950-53)का प्रारंभ 25 जून, 1950 को उत्तरी कोरिया से दक्षिणी कोरिया पर आक्रमण के साथ हुआ।यह शीत युद्ध काल में लड़ा गया सबसे पहला और सबसे बड़ा संघर्ष था।एक तरफ उत्तर कोरिया था जिसका समर्थन कम्युनिस्ट सोवियत संघ तथा साम्यवादी चीन कर रहे थे, दूसरी तरफ दक्षिणी कोरिया था जिसकी रक्षा अमेरिका कर रहा था। युद्ध अन्त में बिना निर्णय ही समाप्त हुआ परन्तु जन क्षति तथा तनाव बहुत ज्यादा बढ़ गया था। कोरिया-विवाद सम्भवतः संयुक्त राष्ट्र संघ के शक्ति-सामर्थ्य का सबसे महत्वपूर्ण परीक्षण था। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के विद्वान शूमा ने इसे “सामूहिक सुरक्षा परीक्षण” की संज्ञा दी है।
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फ्रांसीसी धर्म युद्ध 1562 और 1598 के बीच फ्रांस के राज्य में कैथोलिक और हुगोनोट्स के बीच लंबे समय तक युद्ध और अशांति का काल था। यह यूरोपीय इतिहास का दूसरा सबसे घातक धार्मिक युद्ध है | इसमें लगभग 30 लाख लोगों की मृत्यु हुई |
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होर्न ऑफ अफ्रीका पर इतावली विजय
बेनिटो मुसोलिनी के तहत इटली के सरकार द्वारा 1924 में हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका में इतालवी विजय की शुरुआत की गई थी। सोमालिया के इतालवी उपनिवेश को 1927 के अंत तक पूरी तरह से शांत कर दिया गया था। 1935 में, मुसोलिनी ने इथियोपिया पर आक्रमण किया। 1936 के मध्य तक, इतालवी सैनिकों ने पूरे क्षेत्र को नियंत्रित किया| इस दौरान 8 से 10 लाख लोगों की मृत्यु हुई |
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सन 1337 से 1453 के बीच फ्रांस की राजगद्दी के लिये 'हाउस ऑफ वोलोइस' (House of Valois) और 'हाउस ऑफ प्लान्टाजेन्ट' (House of Plantagenet) के बीच हुए युद्ध को शतवर्षीय युद्ध (Hundred Years' War) कहते हैं।
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वियतनाम युद्ध (1 नवम्बर 1955 - 30 अप्रैल 1975) शीतयुद्ध काल में वियतनाम, लाओस तथा कंबोडिया की धरती पर लड़ी गयी एक भयंकर लड़ाई का नाम है। प्रथम हिन्दचीन युद्ध के बाद आरम्भ हुआ यह युद्ध उत्तरी वियतनाम (कम्युनिस्ट मित्रों द्वारा समर्थित) तथा दक्षिण वियतनाम की सरकार (यूएसए और अन्य साम्यवादविरोधी देशों द्वारा समर्थित) के बीच में लड़ा गया। इसे "द्वितीय हिन्दचीन युद्ध" भी कहते हैं। इसे शीतयुद्ध के दौरान साम्यवादी और—विचारधारा के मध्य एक प्रतीकात्मक युद्ध के रूप में देखा जाता है।
लाओस ओर कम्बोडिया के साथ वियतनाम हिन्दचीन का एक देश फ्रांस के औपनिवेशिक शासन में था।स्वतंत्रता के संघर्ष में वियतनामी राष्ट्रवादियों को दक्षिणी वियतनाम में मिली असफलता इस युद्ध का प्रमुख कारण था।
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यूरोप के ईसाइयों ने 1095 और 1291 के बीच अपने धर्म की पवित्र भूमि फिलिस्तीन और उसकी राजधानी जेरूसलम में स्थित ईसा की समाधि का गिरजाघर मुसलमानों से छीनने और अपने अधिकार में करने के प्रयास में जो युद्ध किए उनको सलीबी युद्ध, ईसाई धर्मयुद्ध, क्रूसेड (crusades) अथवा क्रूश युद्ध कहा जाता है। इतिहासकार ऐसे सात क्रूश युद्ध मानते हैं।
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फैकेन 1815 और 1840 के बारे में के बीच की अवधि के दौरान बड़े पैमाने पर अराजकता और दक्षिणी अफ्रीका में स्वदेशी जातीय समुदायों के बीच युद्ध का काल था। इस काल में लगभग 17 लाख लोगों की मृत्यु हुई|
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प्यूनिक वार्स 264 ईसा पूर्व से 146 ईसा पूर्व तक रोम और कार्थेज के बीच लड़े गए तीन युद्धों की एक श्रृंखला थी। पोनिक युद्धों का मुख्य कारण मौजूदा कार्थाजियन साम्राज्य और विस्तारित रोमन गणराज्य के बीच हितों का टकराव था। इन युद्धों में लगभग 15 लाख लोगों की मृत्यु हुई|
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नाइजीरियाई गृह युद्ध 6 जुलाई 1967 से 15 जनवरी 1970 तक नाइजीरिया की सरकार और बियाफ्रा के अलगाववादी राज्य के बीच लड़ा गया गृहयुद्ध था। इसमें लगभग 20 लाख लोगों की मृत्यु हुई थी |
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इस युद्ध में लगभग 15 लाख लोगों की मृत्यु हुई| टेसन वंश वियतनाम का एक शासक राजवंश था, जिसे बाद में एक नए राजवंश के रूप में स्थापित करने से पहले गुयेन लॉर्ड्स और ट्रोन्ह लॉर्ड्स दोनों के खिलाफ विद्रोह के मद्देनजर स्थापित किया गया था।
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दूसरा सूडानी नागरिक युद्ध
दूसरा सूडानी नागरिक युद्ध 1983 से 2005 तक केंद्रीय सूडानी सरकार और सूडान पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बीच संघर्ष था। यह मुख्य रूप से 1955 से 1972 तक प्रथम सूडानी गृहयुद्ध का एक सिलसिला था। हालांकि इसकी उत्पत्ति दक्षिणी सूडान में हुई थी, यह गृहयुद्ध नौबा पहाड़ों और ब्लू नाइल तक फैला था। इस संघर्ष में लगभग 20 लाख लोगों की मृत्यु हुई|
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अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत युद्ध
1979-1989 के बीच सोवियत सेना तथा मुज़ाहिदीन लड़ाकों के बीच लड़ा गया अफ़ग़निस्तानी गृहयुद्ध था। मुज़ाहिदीन, अफ़ग़निस्तान की साम्यवादी सरकार का तख्तापलट करना चाहते थे, जिसे सोवियत रूस का समर्थन प्राप्त था। मुज़ाहिदीन घुसपैठियों को अमेरिका तथा पाक़िस्तान का समर्थन प्राप्त था। 1989 में सोवियत सेनाओं की वापसी के साथ ही यह समाप्त हुआ।
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सप्तवर्षीय युद्ध एक विश्वयुद्ध था जो 1754 तथा 1763 के बीच लड़ा गया। इसमें 1756 से 1763 तक की सात वर्ष अवधि में युद्ध की तीव्रता अधिक थी। इसमें उस समय की प्रमुख राजनीतिक तथा सामरिक रूप से शक्तिशाली देश शामिल थे। इसका प्रभाव योरप, उत्तरी अमेरिका, केंद्रीय अमेरिका, पश्चिमी अफ्रीकी समुद्रतट, भारत तथा फिलीपींस पर पड़ा। भारतीय इतिहास के सन्दर्भ में इसे तृतीय कर्नाटक युद्ध कहते हैं। विश्व के दूसरे क्षेत्रों में इसे 'द फ्रेंच ऐण्ड इण्डियन वार' ; मॉमेरियन वार ; तृतीय सिलेसियन युद्ध आदि के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में लगभग 11 लाख लोगों की मृत्यु हुई |
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मेक्सिकी क्रान्ति उत्तर अमेरिका महाद्वीप के मेक्सिको देश में 1910–1920 काल में होने वाले कई हिन्सात्मक विद्रोहों की शृंख्ला थी जिसने मेक्सिको के सामाजिक व राजनैतिक ढांचे में भारी परिवर्तन करे। क्रान्ति से पहले देश की कृषि-योग्य धरती पर चंद कुलीन परिवारों की जकड़ थी जो उसके बाद समाप्त होती गई हालांकि धनी-निर्धन का अंतर देश में फिर भी बना रहा। मध्य वर्ग पहले की तुलना में सशक्त हुआ और सेना का भी देश की राजनीति पर प्रभाव बढ़ गया। इस क्रांति में लगभग 10 लाख लोगों की मृत्यु हुई|
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1592-1598 में कोरिया पर तीन जापानी आक्रमण किए गए थे| 1592 में एक प्रारंभिक आक्रमण, 1596 में एक संक्षिप्त आक्रमण और 1597 में दूसरा आक्रमण। जापानी बलों की वापसी के साथ 1598 में संघर्ष समाप्त हुआ कोरिया के दक्षिणी तटीय प्रांतों में सैन्य गतिरोध के बाद कोरियाई प्रायद्वीप से। इस लड़ाई में लगभग 10 लाख लोगों की मृत्यु हुई|
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रवांडा और बुरुंडी के जनसंहार
दोनों नरसंहार में लगभग 12.5 लाख लोग मारे गए| 1962 में बुरुंडी की आजादी के बाद से, देश में नरसंहार नामक दो घटनाएं हुई हैं। 1972 में तुत्सी आर्मी द्वारा हुतु समुदाय के लोगों का नरसंहार व 1993 में हुतु लोगों द्वारा तुत्सी नरसंहार | रवांडा नरसंहार -> तुत्सी और हुतु समुदाय के लोगों के बीच हुआ एक जातीय संघर्ष था। 1994 में 6 अप्रैल को किगली में हवाई जहाज पर बोर्डिंग के दौरान रवांडा के राष्ट्रपति हेबिअरिमाना और बुरुन्डियान के राष्ट्रपति सिप्रेन की हत्या कर दी गई, जिसके बाद ये संहार शुरू हुआ। करीब 100 दिनों तक चले इस नरसंहार में 5 लाख से लेकर दस लाख लोग मारे गए। तब ये संख्या पूरे देश की आबादी के करीब 20 फीसदी के बराबर थी।
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अमेरिकी गृहयुद्ध (अंग्रेजी: American Civil War, अमॅरिकन सिविल वॉर) सन् 1861 से 1865 के काल में संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी राज्यों और दक्षिणी राज्यों के बीच में लड़ा जाने वाला एक गृहयुद्ध था जिसमें उत्तरी राज्य विजयी हुए।
इस युद्ध में उत्तरी राज्य अमेरिका की संघीय एकता बनाए रखना चाहते थे और पूरे देश से दास प्रथा हटाना चाहते थे। अमेरिकी इतिहास में इस पक्ष को औपचारिक रूप से 'यूनियन' (Union यानि संघीय) कहा जाता है और अनौपचारिक रूप से 'यैन्की' (Yankee) कहा जाता है। दक्षिणी राज्य अमेरिका से अलग होकर 'परिसंघीय राज्य अमेरिका' (Confederate States of America, कन्फ़ेडरेट स्टेट्स ऑफ़ अमॅरिका) नाम का एक नया राष्ट्र बनाना चाहते थे जिसमें यूरोपीय मूल के श्वेत वर्णीय (गोरे) लोगों को अफ्रीकी मूल के कृष्ण वर्णीय (काले) लोगों को गुलाम बनाकर ख़रीदने-बेचने का अधिकार हो। दक्षिणी पक्ष को औपचारिक रूप से 'कन्फ़ेडरेसी' (Confederacy यानि परिसंघीय) और अनौपचारिक रूप से 'रेबेल' (Rebel, रॅबॅल, यानि विद्रोही) या 'डिक्सी' (Dixie) कहा जाता है। इस युद्ध में 6 लाख से अधिक अमेरिकी सैनिक मारे गए (सही संख्या 6,20,000) अनुमानित की गई है। तुलना के लिए सभी भारत-पाकिस्तान युद्धों को और 1962 के भारत-चीन युद्ध को मिलाकर देखा जाए तो इन सभी युद्धों में 15,000 से कम भारतीय सैनिक मारे गए हैं।
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द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के काल में संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस के बीच उत्पन्न तनाव की स्थिति को शीत युद्ध के नाम से जाना जाता है। कुछ इतिहासकारों द्वारा इसे 'शस्त्र सज्जित शान्ति' का नाम भी दिया गया है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और रूस ने कंधे से कन्धा मिलाकर धूरी राष्ट्रों- जर्मनी, इटली और जापान के विरूद्ध संघर्ष किया था। किन्तु युद्ध समाप्त होते ही, एक ओर ब्रिटेन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका तथा दूसरी ओर सोवियत संघ में तीव्र मतभेद उत्पन्न होने लगा। बहुत जल्द ही इन मतभेदों ने तनाव की भयंकर स्थिति उत्पन्न कर दी।
रूस के नेतृत्व में साम्यवादी और अमेरिका के नेतृत्व में पूँजीवादी देश दो खेमों में बँट गये। इन दोनों पक्षों में आपसी टकराहट आमने सामने कभी नहीं हुई, पर ये दोनों गुट इस प्रकार का वातावरण बनाते रहे कि युद्ध का खतरा सदा सामने दिखाई पड़ता रहता था। बर्लिन संकट, कोरिया युद्ध, सोवियत रूस द्वारा आणविक परीक्षण, सैनिक संगठन, हिन्द चीन की समस्या, यू-2 विमान काण्ड, क्यूबा मिसाइल संकट कुछ ऐसी परिस्थितियाँ थीं जिन्होंने शीतयुद्ध की अग्नि को प्रज्वलित किया। सन् 1991 में सोवियत रूस के विघटन से उसकी शक्ति कम हो गयी और शीतयुद्ध की समाप्ति हो गयी।
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अफ़ग़ानिस्तान युद्ध अफ़ग़ानिस्तानी चरमपंथी गुट तालिबान, अल कायदा और इनके सहायक संगठन एवं नाटो की सेना के बीच सन 2001 से चल रहा है। इस युद्ध का मकसद अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार को गिराकर वहाँ के इस्लामी चरमपंथियों को ख़त्म करना है। इस युद्ध कि शुरुआत 2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले के बाद हुयी थी। हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज विलियम बुश ने तालिबान से अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन कि मांग की, जिसे तालिबान ने यह कहकर मना कर दिया कि पहले अमेरिका, लादेन के इस हमले में शामिल होने के सबूत पेश करे जिसे बुश ने ठुकरा दिया और अफ़ग़ानिस्तान में ऐसे कट्टरपंथी गुटों के विरुद्ध युद्ध का ऐलान कर दिया। कांग्रेस हॉल में बुश द्वारा दिए गए भाषण में बुश ने कहा कि यह युद्ध तब तक ख़त्म नहीं होगा जब तक पूरी तरह से अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में से चरमपंथ ख़त्म नहीं हो जाता। इसी कारण से आज भी अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में अमेरिकी सेना इन गुटों के खिलाफ जंग लड़ रही है।
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पीली पगड़ी विद्रोह, जिसे येलो स्कार्फ विद्रोह के रूप में भी अनुवाद किया गया था, पूर्वी हान राजवंश के खिलाफ चीन में एक किसान विद्रोह था। सम्राट लिंग के शासनकाल के दौरान 184 ईस्वी में विद्रोह हुआ। इसमें 30 - 70 लाख लोगों की जान गयी थी |
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अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध
अमेरिकी क्रन्तिकारी युद्ध (1775 – 1783), जिसे संयुक्त राज्य में अमेरिकी स्वतन्त्रता युद्ध या क्रन्तिकारी युद्ध भी कहा जाता है, ग्रेट ब्रिटेन और उसकी तरह उत्तर अमेरिकी उपनिवेशों के बीच एक सैन्य संघर्ष था, जिससे वे उपनिवेश स्वतन्त्र संयुक्त राज्य अमेरिका बने। शुरूआती लड़ाई उत्तर अमेरिकी महाद्वीप पर हुई। सप्तवर्षीय युद्ध में पराजय के बाद, बदले के लिए आतुर फ़्रान्स ने 1778 में इस नए राष्ट्र से एक सन्धि की, जो अंतः विजय के लिए निर्णायक साबित हुई।
अमेरिका के स्वतंत्रता युद्ध ने यूरोपीय उपनिवेशवाद के इतिहास में एक नया मोड़ ला दिया। उसने अफ्रीका, एशिया एवं लैटिन अमेरिका के राज्यों की भावी स्वतंत्रता के लिए एक पद्धति तैयार कर दी। इस प्रकार अमेरिका के युद्ध का परिणाम केवल इतना ही नहीं हुआ कि 13 उपनिवेश मातृदेश ब्रिटेन से अलग हो गए बल्कि वे उपनिवेश एक तरह से नए राजनीतिक विचारों तथा संस्थाओं की प्रयोगशाला बन गए। पहली बार 16वीं 17वीं शताब्दी के यूरोपीय उपनिवेशवाद और वाणिज्यवाद को चुनौती देकर विजय प्राप्त की। अमेेरिकी उपनिवेशों का इंग्लैंड के आधिपत्य से मुक्ति के लिए संघर्ष, इतिहास के अन्य संघर्षों से भिन्न था। यह संघर्ष न तो गरीबी से उत्पन्न असंतोष का परिणाम था और न यहां कि जनता सामंतवादी व्यवस्था से पीडि़त थी। अमेरिकी उपनिवेशों ने अपनी स्वच्छंदता और व्यवहार में स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए इंग्लैंड सरकार की कठोर औपनिवेशिक नीति के विरूद्ध संघर्ष किया था। अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम विश्व इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है।
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ऑटोमान सरकार द्वारा योजनाबद्ध रूप से अल्पसंख्यक आर्मीनियों का जो संहार कराया गया वह आर्मीनियाई नरसंहार कहलाता है। इस दौरान 10 लाख से 15 लाख लोगों की हत्या का अनुमान है। यह जनसंहार 24 अप्रैल 1915 से शुरू हुआ जब ऑटोमान सरकार ने 250 आर्मीनियाई बुद्धिजीवियों को कांन्स्टेनटीनोपोल में बन्दी बना लिया। इसके बाद प्रथम विश्वयुद्ध और उसके बाद तक नरसंहार जारी रहा। इसे दो चरणों में किया गया: पुरुषों की एकमुश्त हत्याएँ, सेना द्वारा जबरन गुलामी व महिलाओं, बच्चों व बूढों को सीरिया के रेगिस्तान में मौत की पदयात्रा (डेथ मार्च) पर भेजना। सैनिकों द्वारा खदेडे जाते हुए प्राय ही इन लोगो के साथ बार बार लूटपाट, भूखे रखे जाने, बलात्कार, मारपीट व हत्याएँ हुईं। इनके साथ ही अन्य ईसाई समूहों जैसे कि असीरियाई व ओट्टोमन के यूनानियों को भी निशाना बनाया गया। इतिहासकार इसे ओट्टोमन साम्राज्य की उसी नरसंहार नीति का हिस्सा मानते हैं।
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टिप्पणी
मानव सभ्यता का इतिहास युद्धों से भरा हुआ है, मानव इतिहास में शायद ही ऐसा कोई दशक गया होगा जब मानव युद्धों में रत न हो | हजारों की तादाद में से चुनिन्दा युद्ध छांटना कठिन कार्य है, परन्तु हमने अपनी क्षमता अनुसार प्रयत्न करके इस सूची को तैयार किया है, आपकी प्रतिक्रियाएं हमें सुधार में मदद करेंगी |
इस सूची में हमने कुछ युद्धों का चुनाव निम्न आधार पर किया है :
- वे युद्ध जो 2500 वर्ष या उससे अधिक पुराने हैं, अथवा जिनके साक्ष्य समय के साथ नष्ट हो गए हैं, उन्हें सूची में शामिल नहीं किया गया, जैसे कि महाभारत |
- युद्धों के कारण हुए आर्थिक नुकसान को ध्यान में नहीं रखा गया |
- सिर्फ उन युद्धों कों रखा गया है जिनमें सर्वाधिक लोगों ने अपने प्राण गंवाए हैं |
- किसी भी बड़े युद्ध में यदि छोटे युद्ध शामिल हैं तो सिर्फ बड़े युद्ध को ही जोड़ा गया है (इसमें भारतीय युद्ध अपवाद हो सकते हैं ) जैसे कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बड़ी संख्या में जापानी सेना द्वारा लोगों को मारा गया, 2 करोड़ के आसपास लोग युद्ध अपराधों का शिकार हुए, The Holocaust (यहूदी नरसंहार ) और भी घटनाएँ हुईं जिनमें लाखों मासूम लोगों को अपने प्राण गंवाने पड़े|
- कुछ मानवीय षड़यंत्र अथवा प्राकृतिक आपदाएं जिनके कारण युद्ध से भी अधिक हानि हुई, परन्तु जो युद्ध की श्रेणी में नहीं आते उन्हें नहीं जोड़ा गया| जैसे कि Holodomor ( यूक्रेन का जनसंहार ) व हजारा लोगों का उत्पीड़न ( जिसमें अफगानिस्तान की 60% हजारा आबादी की हत्या कर दी गई)
- चीन के कुछ युद्ध जिनके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी उन्हें छोड़ दिया गया है |
- मृत्यु की संख्या औसत में दर्शायी गयी है | किसी भी युद्ध में मरने वाले लोगों के न्यूनतम व अधिकतम आंकड़ों के औसत को प्रयोग किया गया है |
इस सूची के अलावा यह लिंक भी देखें, सूची का काफी बड़ा हिस्सा इस लिंक से प्रेरित है | List of wars and anthropogenic disasters by death toll – WikiPedia
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दुनिया में सबसे घातक युद्ध दुनिया में सबसे खराब युद्ध विश्व के सबसे घातक युद्ध विश्व के भयानक युद्ध