जपुजी साहिब

जपुजी साहिब एक सिख प्रार्थना है जो गुरु ग्रन्थ साहिब के आरम्भ में है। इसकी रचना गुरु नानक देव ने की थी। जपुजी का आरम्भ ‘मूलमंत्र’ से होता है, उसके बाद इसमें 38 और पद हैं, और अन्त में ‘शलोक’ (श्लोक) है। जो 38 पद हैं वे अलग-अलग छन्दों में है।
गुरु ग्रन्थ साहिब की मूलवाणी जपुजी गुरु नानक द्वारा जनकल्याण हेतु उच्चारित की गई अमृतमयी वाणी है। ‘जपुजी’ एक विशुद्ध , सूत्रमयी दार्शनिक वाणी है जिसमें महत्वपूर्ण दार्शनिक सत्यों को सुन्दर, अर्थपूर्ण और संक्षिप्त भाषा में काव्यात्मक ढंग से अभिव्यक्त किया गया है। इस वाणी में धर्म के सच्चे शाश्वत मूल्यों को बड़े मनोहारी ढंग से प्रस्तुत किया गया है। इसमें ब्रह्मज्ञान का अलौकिक प्रकाश है।

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