44 प्रसिद्ध और सबसे लोकप्रिय भारतीय त्यौहार
त्योहारों (Festival) का हमारे जीवन में बहुत खास महत्व है। ये हमारे जीवन में उमंग और उत्साह का संचार करते हैं। साथ ही ये हमारे जीवन में प्रसन्नता और परिवर्तन का अवसर लाते हैं। इसीलिए इनका हमारे जीवन में विशेष महत्व माना जाता है।
हमारे भारत देश को अगर पर्व और त्यौहारों का देश कहा जाए तो गलत नहीं होगा। क्योंकि जितने त्यौहार हमारे देश में मनाये जाते हैं, उतने शायद ही किसी और देश में मनाये जाते होंगे। भारत अनेकता में एकता का देश है। इसकी झलक त्यौहारों के मौकों पर भी देखने को मिलती है। हमारे देश में ऐसे कई पर्व और त्योहार हैं, जिन्हें लोग बड़े ही उत्साहपूर्वक मनाते हैं।
इसीलिए आज हम आपके लिए भारत में मनाये जाने वाले सबसे लोकप्रिय और खास त्यौहारों की सूची लाये हैं।
दशहरा
दशहरा भारत के प्रसिद्ध त्यौहारों में से एक है। इसे विजयादशमी या आयुध-पूजा के रूप में भी जाना जाता है। इसे भी हिन्दुओं के प्रसिद्ध त्यौहार के रूप में जाना जाता है। इस दिन भगवान श्री राम ने लंकापति रावण को मारकर विजय प्राप्त करी थी। इसीलिए इसे असत्य पर सत्य की जीत के रूप में मनाया जाता है। ये त्यौहार विभिन्न रूपों में देशभर में मनाया जाता है। कई जगह तो इसके उपलक्ष्य में रामलीला का आयोजन भी किया जाता है। जिसके बाद दशहरा पर यहां रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले जलाए जाते हैं।
दीवाली
दीपावली भारत का सबसे प्रमुख हिन्दू त्यौहार है। रोशनी के इस त्यौहार को कुछ लोग ‘दीवाली’ भी कहते हैं। ‘दीपावली’ का अर्थ होता है ‘दीपों की माला’। ये त्यौहार भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास के बाद घर वापस आने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस खुशी में लोग इस दिन नए कपड़े पहनकर पूजा करते हैं, पटाखे जलाते हैं और दोस्तों और रिश्तेदारों में मिठाइयां बांटते हैं। इसे प्रति वर्ष बड़ी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन सभी अपने घर एवं रास्तों को दीपक एवं मोमबत्ती आदि के प्रकाश से रोशन करते हैं।
क्रिसमस
क्रिसमस ईसाइयों का प्रसिद्ध और सबसे प्रमुख त्यौहार है। लेकिन इसे ईसाई धर्म के अलावा दूसरे धर्म के कुछ लोग भी बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। इस त्यौहार को ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। ये हर साल 25 दिसंबर को सम्पूर्ण विश्व में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन को बड़ा दिन भी कहा जाता है। इस दिन चर्च को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है। शाम को चर्च में प्रार्थनाएं होती हैं और केक भी काटा जाता है।
जन्माष्टमी
कृष्ण जन्माष्टमी हिन्दुओं के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक त्यौहारों में से एक है। इस त्यौहार को गोकुलाष्टमी, कृष्णाष्टमी, श्रीजयंती के नाम से भी जाना जाता है। इसको भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मथुरा और वृन्दावन में जन्माष्टमी का ये त्यौहार बहुत लोकप्रिय है। इस दिन कृष्ण मंदिरों में भव्य सजावट, प्रार्थना, नृत्य समारोह किये जाते हैं। साथ ही इस दिन लोग दिनभर व्रत रखते हैं और रात 12 बजे विशेष भोजन के साथ इस व्रत को खोलते हैं। महाराष्ट्र में ये त्यौहार जन्माष्टमी दही हांडी के लिए विख्यात है।
जन्माष्टमी के बारे मे अधिक पढ़ें
गणेश चतुर्थी
गणेश चतुर्थी भी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। ये त्यौहार पहले महाराष्ट्र में मनाया जाता था, लेकिन अब इसे भारत के अन्य राज्यों में भी बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवन गणेश का जन्म हुआ था। इसीलिए इस दिन भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस प्रतिमा का 9 दिनों तक पूजन किया जाता है। 9 दिनों बाद बड़े ही धूम-धाम से श्री गणेश प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है।
गणेश चतुर्थी के बारे मे अधिक पढ़ें
नवरात्रि
नवरात्रि एक महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहार है। इसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है। खासकर ये गुजरात में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहां इस दौरान 9 दिन का उत्सव होता है, जिसमें लोग सुन्दर और रंगीन पारंपरिक कपड़ों में गरबा और डांडिया खेलते हैं। नवरात्रि के दौरान दुर्गा के 9 स्वरुपों की पूजा होती है- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री | इन्हें ही नवदुर्गा कहते हैं।
रक्षाबंधन
रक्षा बंधन जिसे राखी का त्यौहार भी कहते हैं। राखी का ये पवित्र त्यौहार हिन्दुओं के बीच मनाया जाता है। ये त्यौहार भी हिन्दू भाई और बहनों द्वारा सम्पूर्ण भारतवर्ष में अत्यंत हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई की आरती उतारती है, उसे तिलक लगाती है, उसकी कलाई पर राखी बांधती है और भाई की लम्बी उम्र की कामना करती है। बदले में भाई अपनी बहन को उसकी रक्षा करने का वचन देता है। ये सिर्फ एक त्यौहार नहीं बल्कि हमारी परंपराओं का प्रतीक है।
रक्षाबंधन के बारे मे अधिक पढ़ें
होली
होली भी हिन्दुओं का एक प्रसिद्द त्यौहार है। इसको रंगों के त्यौहार के रूप में जाना जाता है। ये त्यौहार हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन लोग होलिका दहन करते हैं और एक-दूसरे से गले मिलते हैं। इसके बाद रंग-बिरंगे विभिन्न रंगों से एक दूसरे को रंग लगाते हैं। ये त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत और बसंत के आगमन का प्रतीक है।
लोहड़ी
लोहड़ी सिख समुदाय के लोगों का एक प्रसिद्द त्यौहार है। ये त्यौहार मकर संक्रान्ति के एक दिन पहले मनाया जाता है। वैसे तो ये सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। लेकिन विशेष रूप से इसे उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू राज्यों में मनाया जाता है। इस दिन परिवार और आस-पड़ोस के लोग रात्रि में खुले स्थान में मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर नाचते हैं। इसके बाद ये मिलकर रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाते हैं।
ईद उल-फ़ित्र
ईद या ईद-उल-फितर मुस्लिम समुदाय का प्रमुख त्यौहार है। ये त्योहार दुनिया भर के मुसलमानों का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग नये कपड़े पहनकर मस्जिद जाकर नमाज पढ़ते हैं। और बाद में एक-दूसरे से गले मिलते हैं। बड़े लोग छोटे बच्चों को ईद के उपहार के रूप में ईदी भी देते हैं। इस त्यौहार को मुसलमानों के पवित्र महीने रमजान का समापन माना जाता है। मुस्लिम समुदाय में रमजान के महीने का बहुत महत्व है। इस दौरान ये लोग दिनभर उपवास रखते हैं।
ईद उल-फ़ित्र के बारे मे अधिक पढ़ें
छठ पूजा
छठ पर्व, छठ या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। यहा पर्व बिहारीयो का सबसे बड़ा पर्व है ये उनकी संस्कृति है। छठ पर्व बिहार मे बड़े धुम धाम से मनाया जाता है। ये एक मात्र ही बिहार या पूरे भारत का ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है और ये बिहार कि संस्कृति बन चुका हैं। यहा पर्व बिहार कि वैदिक आर्य संस्कृति की एक छोटी सी झलक दिखाता हैं। ये पर्व मुख्यः रुप से ॠषियो द्वारा लिखी गई ऋग्वेद मे सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार बिहार मे यहा पर्व मनाया जाता हैं।
बिहार मे हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे गये हैं। धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है। छठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की देवतायों को बहाल करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाए। छठ में कोई मूर्तिपूजा शामिल नहीं है।
बैसाखी
स्वतंत्रता दिवस (भारत)
प्रतिवर्ष इस दिन भारत के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधित करते हैं। 15 अगस्त 1947 के दिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने, दिल्ली में लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था।महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लोगों ने काफी हद तक अहिंसक प्रतिरोध और सविनय अवज्ञा आंदोलनों में हिस्सा लिया। स्वतंत्रता के बाद ब्रिटिश भारत को धार्मिक आधार पर विभाजित किया गया, जिसमें भारत और पाकिस्तान का उदय हुआ। विभाजन के बाद दोनों देशों में हिंसक दंगे भड़क गए और सांप्रदायिक हिंसा की अनेक घटनाएं हुईं। विभाजन के कारण मनुष्य जाति के इतिहास में इतनी ज्यादा संख्या में लोगों का विस्थापन कभी नहीं हुआ। यह संख्या तकरीबन 1.45 करोड़ थी। भारत की जनगणना 1951 के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए।
इस दिन को झंडा फहराने के समारोह, परेड और सांस्कृतिक आयोजनों के साथ पूरे भारत में मनाया जाता है। भारतीय इस दिन अपनी पोशाक, सामान, घरों और वाहनों पर राष्ट्रीय ध्वज प्रदर्शित कर इस उत्सव को मनाते हैं और परिवार व दोस्तों के साथ देशभक्ति फिल्में देखते हैं, देशभक्ति के गीत सुनते हैं।
स्वतंत्रता दिवस (भारत) के बारे मे अधिक पढ़ें
बुद्ध पूर्णिमा
बुद्ध पूर्णिमा के बारे मे अधिक पढ़ें
पोंगल
मन्नम जयंती
2 जनवरी, 2019 को, नायर सर्विस सोसाइटी ने चंगनास्सेरी के पेरुन्ना स्थित एनएसएस मुख्यालय में 142वीं मन्नम जयंती मनाई।
मन्नम जयंती के बारे मे अधिक पढ़ें
गणतन्त्र दिवस (भारत)
एक स्वतन्त्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए संविधान को 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे एक लोकतान्त्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया था। 26 जनवरी को इसलिए चुना गया था क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई0 एन0 सी0) ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था।
यह भारत के तीन राष्ट्रीय अवकाशों में से एक है, अन्य दो स्वतन्त्रता दिवस और गांधी जयंती हैं।
गणतन्त्र दिवस (भारत) के बारे मे अधिक पढ़ें
भोगी
भोगी चार दिवसीय मकर संक्रांति उत्सव का पहला दिन है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह आमतौर पर 13 जनवरी को मनाया जाता है। यह तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र में व्यापक रूप से मनाया जाने वाला त्योहार है।
नव वर्ष
वसन्त पञ्चमी
वसन्त पञ्चमी के बारे मे अधिक पढ़ें
मकर संक्रांति
मकर संक्रांति के बारे मे अधिक पढ़ें
टुसू पर्व
यह परब मुख्यतः तीन नामों से जाना जाता है।:-
1. टुसु परब
2. मकर परब
3. पूस परब ।
उपरोक्त तीन नामों के अलावा बांउड़ी एवं आखाईन जातरा का एक विशेष महत्त्व है।
बांऊड़ी के दूसरा दिन या मकर सक्रान्ति के दूसरे दिन "आखाईन जातरा" मनाया जाता है। कृषि कार्य समापन के साथ साथ कृषि कार्य प्रारंभ का भी आगाज किया जाता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि बांउड़ी तक प्रायः खलिहान का कार्य समाप्त कर आखाईन जातरा के दिन कृषि कार्य का प्रारंभ मकर संक्रांति के दिन होता है नये वर्ष में अच्छे राशि गुण (पांजी अनुसार) वाले घर के सदस्य के द्वारा सुबह नहा धोकर नये कपड़े पहनकर उगते सूर्य की पहली किरण पर हारघुरा (जोतना) यानी (बोहनी)हाईल पून्हा नेग संपन्न करता है खेत में हार तीन या पांच
या सात बार घुमाकर बैलों को हार जुआईट के साथ घर लाकर आंगन में दोनों बैलों के पैरों को धोकर उनके पैरों पर तेल मखाया जाता है उसके बाद हार जोतने गये कृषक गोबरडिंग(बहूत सारा गोबर रखने की जगह) में गोबर काटकर कृर्षि काम की शुरूआत करता है। कृषक के घर घुसने के पहले उसके पैर को धोकर तेल लगाया जाता है उसके उपरांत घर के सभी पुरुष सदस्यों का पैर धोकर तेल लगाया जाता है। यह काम घर की मां या बड़ी बहु करती है। इस प्रकार यह दिन कुड़मी एवं आदिवासी जनजातीय समुदायों, किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है।
आखाईन जातरा के दिन हर तरह के काम के लिए शुभ माना जाता है। बड़े बुजुर्ग के कथानुसार इस दिन नया घर बनाने के लिए बुनियादी खोदना या शुरू करना अति उत्तम दिन माना जाता है। इसमें कोई पाँजी पोथी का जरूरत नहीं पड़ती है इस दिन को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। इस टुसू पर्व में किसी किसी गाँव में मकर सक्रान्ति के दिन "फअदि"खेल एवं आखाईन जातरा के दिन "भेजा बिन्धा"का भी नेगाचरि(रिवाज)है।
इस टुसू परब में "पीठा" का भी एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। आखाईन जातरा के बाद से ही फाल्गुन महीना तक सगे समबन्धि,रिश्तेदारों के घर"गुड़ पीठा"पहुँचाया जाता है। गुड़ पीठा पहुँचाने की इस नेग (रिवाज,प्रथा)को "कुटुमारी"कहा जाता है। सगे समबन्धि,रिश्तेदार को कुटु्म्ब कहा जाता है।गुड़ पीठा प्रायः तीन तरह का छाँका जाता है।:
1.थापा पीठा(आबगा गुड़ पीठा)
2.गरहोवआ पीठा (जल दिया पीठा/गुला पीठा) 3.मसला पीठा ।
यह त्यौहार झारखंड के दक्षिण पूर्व रांची,खूंटी,
सरायकेला-खरसावां,पूर्वी सिंहभूम,पश्चिम सिंहभूम, रामगढ़, बोकारो, धनबाद जिलों ,तथा पंचपरना क्षेत्र की प्रमुख पर्व है,टुसू पर्व पंचपरगना की सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है जिसकी शुरुआत 15 दिसंबर यानी अघन संक्रांति से शुरू होती है।
अघन संक्रांति को कुंवारी कन्याओं द्वारा टुसु(चौड़ल) की स्थापना (थापने) की जाती है टुसू को लक्ष्मी/सरस्वती के प्रतीक के रूप में एक कन्या है जिसकी कुंवारी कन्या पूरे एक महीना सेवा (पूजा प्रार्थना) करती है जिसके अवसर पर निम्न प्रकार से प्रार्थना एवं आराधना की जाती है-
1.आमरा जे मां टुसु थापी,अघन सक्राइते गो।
अबला बाछुरेर गबर,लबन चाउरेर गुड़ी गो।।
तेल दिलाम सलिता दिलाम,दिलाम सरगेर बाती गो।
सकल देवता संझ्या लेव मां,लखी सरस्वती गो।।
गाइ आइल' बाछुर आइल',आइल' भगवती गो।
संझ्या लिएं बाहिराइ टुसू, घरेर कुल' बाती गो।।
2.आगहनअ सांकराईते टुसु,हाँसे हाँसे आबे गो।
पूसअ साँकराईते टुसु,काँदे काँदे जाबेगो ।।
इस तरह शाम को सूर्यास्त के बाद प्रतिदिन थापना जगह बैठकर पौष सक्रान्ति तक टुसु आराधना गीत कुंवारी कन्याओं के समूहों द्वारा टुसू गीत गाया जाता है। उसके बाद मकर संक्रांति के एक सप्ताह पहले टुसू के प्रतीक रुप में चौड़ल को बांस,चमकीले कागज,कपड़े आदि के सहयोग से नींव आयताकार या वर्गाकार और ऊपर नुकिला यानी मंदिर के आकार का बनाया जाता है। उसके बाद मकर संक्रांति तक प्रति दिन शाम 7 बजे से लेकर 10 बजे रात्रि तक चौड़ल को पूरे गांव में गांजे बाजे के साथ घुमाया जाता है जिस अवसर निम्न प्रकार के
गीत गाये जाते हैं :--
1.उपोरे पाटा तअले पाटा,ताई बसेछे दारअगा ।
छाड़ दारअगा रास्ता छाड़अ,टुसु जाछे कईलकाता।।
2.एक सड़अपे दूई सड़अपे,तीन सड़अपे लक चोले।
हामदेर टुसु एकला चोले,बिन बातासे गा डोले।।
इस प्रकार टुसू घुमाने के दिन से यह टुसू में नाचने गाने का शुरुआत होता है जो बसंत पंचमी तक चलता है मकर संक्रांति एवं पौस संक्रांति पर लगने टुसु मेलालों में गाजा बाजा के साथ आस पास के गांवों के लोग समूहों में टुसु गीत गाते नाचते हुए मेला में आते हैं मेलाओं में टुसू को घुमाया जाता है। कुछ मेला को छोड़कर प्रायः सभी मेला मकर संक्रांति के बाद अलग-अलग तिथि को लगता है।
इस प्रकार अघन संक्रांति से पौस/मकर संक्रान्ति (14 जनवरी) तक टुसू कन्या की सेवा की जाती है। 15/16 जनवरी को टुसू कन्या की प्रतीक रूप में चौड़ल बनाकर नदी में पारंपरिक गाजे बाजे के साथ टुसू गीत गाते हुए, नाचते डेगते विसर्जित की जाती है। घर से नदी तक रास्ते पर जुलूस के रूप में अलग अलग टोली टुसू धून में नदी तक नाचते डेगते जातें है जिसको देखने के लोग नदी के ऊपरी स्थल(मैदान) में रास्ते के दोनों छोर पर खड़े होकर नृत्य मंडली को देखते हैं नृत्य मंडली अलग अलग गांवों से आती है जिसमें टूसू कन्या के प्रतीक रूप में चौड़ल एवं पारंपरिक वाद्य- ढोल,नगाड़ा,शहनाई, बांसुरी,मांदर आदि अनेक वाद्ययंत्रों के टुसू धून में स्त्री पुरुष नाचते डेगते आते हैं। ऐसे तो यह नाच डेग पूरे रास्ते भर चलती है पर नदी के तट पर लगने वाली मेले में टुसू नृत्य अपने चरम स्थीति पर होती है। जिसको देख देखने के लिए लोगों भीड़ उमड़ पड़ती है यह दृश्य को देखकर मन,मस्तिष्क और खुशियों से मचल उठता है दृश्य देखकर दर्शक भी झूमने लगता है। ऐसा अदभुत दृश्य मकर संक्रांति के दूसरे दिन लगने वाले प्रमुख मेलों में देखने को मिलती है। इस अवसर पर बंगाल - झारखंड की सीमा स्थीत स्वर्णरेखा नदी तट पर लगने वाला सतीकहाट मेला बहुत प्रसिद्ध है यह प्राचील मेला आदि युग से लगती आ रही है। इस मेले के थोड़े ऊपर स्वर्णरेखा,कांची,राढू तीनों नदीयों का संगम होता है इस लिहाज से यह स्थान बहुत परित्र होता है। आस पास के लोगों में गया गंगा के रुप में इस स्थान को मान्यता है। मेरा देखने वालें सभी श्रद्वालु नदी में उतर कर सबरनी माता की प्रार्थना करते हैं। नदी में हाथ धोकर बैठकर गुड़पीठा मुड़ी खाने का रिवाज है,कुछ श्रद्वालु नहा-धोकर सबरनीमाता का प्रार्थना भी करते हैं। मकर संक्रांति के दिन सतीकहाट पर पंचपरगना,बंगाल,झारखंड के लाखों श्रद्धालु स्नान करने आते हैं। यह मेला दो दिन तक रहती है मकर संक्रांति को प्रारंभ होकर दूसरे दिन करोड़ों श्रद्धालु टूसूकन्या को विसर्जित करने आते जिस अवसर पर नदी के दोनों किनारों बहुत बड़े भूभाग में मेला का आयोजन होता है शाम को टुसू विर्सजन के साथ सतीकहाट मेला खत्म हो जाती है इस प्रकार सतीकहाट टुसू मेला के साथ पंचपरगना के अन्य क्षेत्रों,नदी तटों पर अलग-अलग दिन अलग-अलग मेलों का लगना प्रारंभ हो जाता है जो बसंत पंचमी तक यानी सरस्वती पुजा तक चलता है। अर्थात पूरे पौस महिना टूसू मेला का आयोजन होता है।
जिनमें प्रमुख मेला -
1.हाराडी बुडा़ढ़ी टूसू मेला-सतीक हाट मेला के दिन।
2.हरिहर टुसू मेला-सतीक हाट मेला के दूसरे दिन।
3.हुडरू टुसू मेला-सतीक हाट मेला के दिन।
4.राजरप्पा टुसु मेला -सतीक हाट मेला के दिन।
5.हाथिया पत्थर मेला, फूसरो- 4 जनवी।
6.छाता पोखईर मेला।
7.माठा मेला।
8.जयदा मेला।
9.पड़सा मेला।
10.हिड़िक मेला।
11.बुटगोड़ा मेला।
12.सालघाट मेला।
14.बूढ़हा बाबा जारगोडीह मेला।
15.राम मेला।
16.भूवन मेला (कुईडीह)
17.कारकिडीह मेला।
18.पुरनापानी मेला (हाड़ात)
19.सीता पाईस्ज मेला।
20.पानला मेला।
21.सुभाष मेला।(सुईसा)।
22.बूढ़हाडीह मेला।
23.बानसिंह मेला।
24.सिरगिटी मेला।
25.बेनियातुंगरी मेला।
26.कुलकुली मेला।
27.जोबला मेला।
28.इंचाडीह मेला।
29.दिवड़ी मेला।
30.सूर्य मन्दिर मेला
31.नामकोम टुसू मेला,रांची।
32.मोरावादी टुसू मेला- 3 जनवरी।
34.लादुपडीह टुसू मेला ।
35.डिरसीर-मुरूरडीह मेला।
37.बांकू टूसू मेला।
38.टायमारा टुसू मेला।
39.आड़िया नदी टुसू मेला।
40.घुरती सतीक हाट मेला।
इस प्रकार पूरे पौस मास तक टूसू मेला का आयोजन पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
इस तरह के मेलों का आयोजन किसी अन्य पर्व - त्यौहारों में कभी नहीं होती। भारत की प्रसिद्ध कुंभ मेला के अलावे टूसू पर्व ही एक ऐसा पर्व है जो पूरे दो महीने तक लगातार अलग-अलग जगहों पर विशेष कर नदी के किनारों,टुंगरी,पहाड़ो,धार्मिक स्थलों पर विशेष रुप से टूसू पर्व का आयोजन होता है इससे प्रतीत होता है कि टुसू मेला का कितना महत्व है।
आज यह पर्व संपूर्ण पंचपरगना ही नही समूचा झारखंड का प्रमुख त्यौहार है जिसको मानने वाले झारखंडी के सभी जातियों विशेषकर-कुर्मी,महतो,साहु, बनिया, तेली,गोवार,
कुम्हार,अहिर,मुंडा,संस्थाल,उरांव,हो,कोइरी,गोसाईं,
सूढ़ी,मानकि,मांझी आदि अनेक जातियों के समुदायों (OBC,ST,SC) सभी आपस में मिलजुलकर पुरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
यह पर्व झारखंड की संस्कृति के पोषक स्वरूप है
जिसमें पुस गीत,नृत्य,वाद्य यंत्रों की मधुर संगीत है। इसमें एक विशेष प्रकार की रस्म है,एक विशेष प्रकार की मान्यता है। इसमें ही नये वस्त्र पहने का विशेष महत्व है। परिवार के सभी लोगों के लिए नये कपड़े लेने का रिवाज है। इस प्रकार यह पर्व धार्मिक विश्वास,पारंपरिक मान्यता,नये वर्ष के आगमन,अच्छे फसल की प्राप्ति और खुशहाली के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
टुसू पर्व के बारे मे अधिक पढ़ें
ओणम
राम नवमी
चैत्रे नवम्यां प्राक् पक्षे दिवा पुण्ये पुनर्वसौ ।
उदये गुरुगौरांश्चोः स्वोच्चस्थे ग्रहपञ्चके ॥
मेषं पूषणि सम्प्राप्ते लग्ने कर्कटकाह्वये ।
आविरसीत्सकलया कौसल्यायां परः पुमान् ॥ (निर्णयसिन्धु)
लोसर
लोसार तिब्बती बौद्ध धर्म में एक त्योहार है। स्थान परंपरा के आधार पर विभिन्न तिथियों पर अवकाश मनाया जाता है। अवकाश एक नए साल का त्योहार है, जो लुनिसोलर तिब्बती कैलेंडर के पहले दिन मनाया जाता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर में फरवरी या मार्च की तारीख से मेल खाता है।
महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि के बारे मे अधिक पढ़ें
हजरत अली जन्मदिवस
इस्लामी कैलेंडर के रज्जब माह की 13 तारीख को यानी 601 ई में हजरत अली का जन्म हुआ था। जो कि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार सोमवार 9 मार्च को यानी आज है। इनका असली नाम अली इब्ने अबी तालिब था। आज हजरत अली का जन्मदिन है। आज के दिन सभी मुसलमान एक-दूसरे को हजरत अली के जन्मदिन की बधाई देते हैं और उनके द्वारा कहे गए शांति संदेशों को याद करते हैं। हजरत अली लोगों को शांति और अमन का पैगाम दिया करते थे।
हजरत अली जन्मदिवस के बारे मे अधिक पढ़ें
गुरु नानक जयंती
गुरु नानक जयंती, जिसे गुरुपर्व के नाम से भी जाना जाता है, सिख धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पहले सिख गुरु, गुरु नानक देव की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। त्योहार कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक के महीने में पंद्रहवां चंद्र दिवस है, और आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर द्वारा नवंबर के महीने में आता है।
गुरु नानक जयंती के बारे मे अधिक पढ़ें
धनतेरस
धनतेरस, जिसे धनत्रयोदशी (संस्कृत: धनत्रयोदशी) के रूप में भी जाना जाता है, भारत में दिवाली के त्योहार का पहला दिन है।
यह अश्विन के हिंदी कैलेंडर महीने में कृष्ण पक्ष (अंधेरे पखवाड़े) के तेरहवें चंद्र दिवस पर मनाया जाता है। धन्वंतरि, जिन्हें धनतेरस के अवसर पर भी पूजा जाता है, को आयुर्वेद का देवता माना जाता है, जिन्होंने मानव जाति की भलाई के लिए आयुर्वेद का ज्ञान प्रदान किया, और रोग की पीड़ा से छुटकारा पाने में मदद की।
भाई दूज
परशुराम जयंती
हिन्दु धर्म के अनुसार भगवान परशुराम ने ब्राह्माणों और ऋषियों पर होने वाले अत्याचारों का अंत करने के लिए जन्म लिया था. कहते हैं कि परशुराम जयंती के दिन पूजा-पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. इस दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि जिन लोगों की संतान नहीं होती है उन लोगों को इस व्रत को करना चाहिए. इस दिन भगवान परशुराम के साथ विष्णु जी का आशीर्वाद भी मिलता है.
परशुराम जयंती के बारे मे अधिक पढ़ें
गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा के बारे मे अधिक पढ़ें
गांधी जयंती
गांधी जयंती के बारे मे अधिक पढ़ें
गुड फ़्राइडे
सन्हेद्रिन ट्रायल ऑफ़ जेसुस के आध्यात्मिक विवरणों के अनुसार यीशू का क्रुसिफिकेशन संभवतः किसी शुक्रवार को किया गया था। दो भिन्न वर्गों के अनुसार गुड फ्राइडे का अनुमानित वर्ष AD 33 है, जबकि आइजक न्यूटन ने बाइबिल और जूलियन कैलेंडर के बीच के अन्तर और चांद के आकार के आधार पर गणना की है कि वह वर्ष मूलतः AD 34 है।
गुड फ़्राइडे के बारे मे अधिक पढ़ें
वाल्मीकि जयंती
वाल्मीकि जयंती महान लेखक महर्षि वाल्मीकि की जयंती है। यह हर साल अश्विन महीने के दौरान पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
महर्षि वाल्मीकि संस्कृत साहित्य के पहले कवि थे और माना जाता है कि उन्होंने पहले संस्कृत श्लोक का मसौदा तैयार किया था। वाल्मीकि ने महाकाव्य रामायण की रचना की जिसमें 24,000 श्लोक और 7 सर्ग हैं।
ऐसा माना जाता है कि जब राम ने सीता को निर्वासित किया, तो लोगों द्वारा उनकी 'पवित्रता' पर सवाल उठाने के बाद, वाल्मीकि ने उन्हें बचाया और आश्रय प्रदान किया।
वाल्मीकि जयंती के बारे मे अधिक पढ़ें
ईद अल-अज़हा
ईदुल अज़हा
ईद अल-अज़हा
ईद उल-अज़हा
ईद अल-अधा
ईदुज़ जुहा
ईद अल-अज़हा के बारे मे अधिक पढ़ें
मुहर्रम
इस्लामी यानी हिजरी सन् का पहला महीना मुहर्रम है। इत्तिफाक की बात है कि आज मुहर्रम का यह पहलू आमजन की नजरों से ओझल है और इस माह में अल्लाह की इबादत करनी चाहीये जबकि पैगंबरे-इस्लाम ने इस माह में खूब रोजे रखे और अपने साथियों का ध्यान भी इस तरफ आकर्षित किया। इस बारे में कई प्रामाणिक हदीसें मौजूद हैं।
मुहर्रम की 9 तारीख को जाने वाली इबादतों का भी बड़ा सवाब बताया गया है। हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के साथी इब्ने अब्बास के मुताबिक हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा कि जिसने मुहर्रम की 9 तारीख का रोजा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ हो जाते हैं तथा मुहर्रम के एक रोजे का सवाब (फल) 30 रोजों के बराबर मिलता है। गोया यह कि मुहर्रम के महीने में खूब रोजे रखे जाने चाहिए। यह रोजे अनिवार्य यानी जरूरी नहीं हैं, लेकिन मुहर्रम के रोजों का बहुत सवाब है।
अलबत्ता यह जरूर कहा जाता है कि इस दिन अल्लाह के नबी हजरत नूह (अ.) की किश्ती को किनारा मिला था। इसके साथ ही आशूरे के दिन यानी 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना हुई थी, जिसका विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इराक स्थित कर्बला में हुई यह घटना दरअसल सत्य के लिए जान न्योछावर कर देने की जिंदा मिसाल है। इस घटना में हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के नवासे (नाती) हजरत हुसैन को शहीद कर दिया गया था।
कर्बला की घटना अपने आप में बड़ी विभत्स और निंदनीय है। बुजुर्ग कहते हैं कि इसे याद करते हुए भी हमें हजरत मुहम्मद (सल्ल.) का तरीका अपनाना चाहिए। जबकि आज आमजन को दीन की जानकारी न के बराबर है। अल्लाह के रसूल वाले तरीकोंसे लोग वाकिफ नहीं हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जयंती
गुरु गोविंद सिंह जी सिखों के 10वें धर्मगुरु थे। उनका जन्म माता गुजरी जी तथा पिता श्री तेगबहादुर जी के घर हुआ था। जब गुरु गोबिंद का जन्म हुआ था, उस समय पिता गुरु तेगबहादुर जी बंगाल में थे।
सिख धर्म में प्रकाश पर्व का विशेष स्थान है। भारत में सिर्फ सिख धर्मावलंबी ही नहीं, अन्य धर्मों के लोग भी प्रकाश पर्व को उत्साह के साथ मनाते हैं। दरअसल सिखों के 10वें धर्मगुरु गुरु गोबिंद सिंह की जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुरु गोविंद सिंह जी को एक महान स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ एक अच्छे कवि भी थे। गुरु गोबिंद सिंह के त्याग और वीरता की आज तक मिसाल दी जाती है। साथ ही उनकी बहादुरी के किस्सों से इतिहास की किताबें भरी पड़ी हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती 20 जनवरी को है।
गुरु गोबिंद सिंह जयंती के बारे मे अधिक पढ़ें
शहीद दिवस (भारत)
21 अक्टूबर पुलिस द्वारा मनाया जाने वाला शहीद दिवस है। केन्द्रीय पुलिस बल के जवान 1959 में लद्दाख में चीनी सेना द्वारा घात लगाकर मारे गए थे।
17 नवम्बर को ओडिशा द्वारा लाला लाजपत राय की स्मृति में मनाया जाता है।
शहीद दिवस (भारत) के बारे मे अधिक पढ़ें
जुमातुल विदा
जुमातुल विदा के बारे मे अधिक पढ़ें
अग्रसेन जयंती
इनका जन्म द्वापर युग के अंत व कलयुग के प्रारंभ में हुआ था। वें भगवान श्री कृष्ण के समकालीन थे। महाराजा अग्रसेन का जन्म अश्विन शुक्ल प्रतिपदा हुआ, जिसे अग्रसेन जयंती के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिवस को अग्रसेन महाराज जयंती के रूप में मनाया जाता हैं।अग्रसेन जयंती पर अग्रसेन के वंशज समुदाय द्वारा अग्रसेन महाराज की भव्य झांकी व शोभायात्रा नकाली जाती हैं और अग्रसेन महाराज का पूजन पाठ, आरती किया जाता हैं।== सन्दर्भ ==- महर्षि श्री रामगोपाल 'बेदिल'
॥ श्री अग्रभागवत महात्म ॥
ॠृषि गण प्रदर्शित
श्री अग्र भागवत ( श्री अग्रोपाख्यानं ) की कथा, मरण को उद्यत दिग्भ्रांत, अशांत परीक्षितपुत्र महाराजा जनमेजय को, लोकधर्म साधना का मार्ग प्रशस्त करने की अभिप्रेरणा हेतु - भगवान वेद व्यास के प्रधान शिष्य महर्षि जैमिनी जी द्वारा,सुनाई गई। परिणाम स्वरूप - अशांत जनमेजय ने परम शांति अर्जित कर, मानव धर्म धारण कर - लोककीर्ति तथा परम मोक्ष दोनों ही प्राप्त किये।
माँ महालक्ष्मी की कृपा से समन्वित, भगवतस्वरूप इस परमपूज्य ग्रन्थ की ॠृषियों ने महत्ता दर्शाते हुए स्वयं वंदना की है।
ऋषय ऊचु:
महालक्ष्मीवर इव ग्रन्थो मान्येतिहासक:।
तं कश्चित् पुण्ययोगेन प्राप्नोति पुरुषोत्तम: ॥
ॠृषि गण कहते हैं- महालक्ष्मी के वरदान से समन्वित होने के कारण स्वरूप, श्री अग्रसेन का यह उपाख्यान ( पुरुषार्थ गाथा ) सभी आख्यानों में सम्मानीय, श्रेयप्रदाता, और मंगलकारी है। जिसे कोई पुरुषश्रेष्ठ पुण्यों के योग से प्राप्त करता है।
अग्राख्यानं भवेद्यत्र तत्र श्री: सवसु: स्थिरा।
कृत्वाभिषेकमेतस्य तत: पापै: प्रमुच्यते ॥
ॠृषि गणकहते हैं - श्री अग्रसेन का यह आख्यान (पुरुषार्थ गाथा) जहां रहता है, वहां महालक्ष्मी सुस्थिर होकर विराजमान रहती। अर्थात स्थाई निवास करती हैं। इसका विधिवत अभिषेक करने वाले, सभी पापों से विमुक्त हो जाते हैं।
ग्रंथदर्शन योगोऽयं सर्वलक्ष्मीफलप्रद:।
दु:खानि चास्य नश्यन्ति सौख्यं सर्वत्र विन्दति ॥
ॠृषि गणों ने कहा- श्री अग्रसेन के इस आख्यान (पुरुषार्थ गाथा) का सौभाग्य से दर्शन प्राप्त होना, महालक्ष्मीके , अर्थ-धर्म-काम मोक्ष सभी फलों का प्रदायक है। इसके दर्शन कर लेने वालों के, सभी दुखों का विनाश हो जाता है, और सर्वत्र सुखादि की प्रतीति होती है।
दर्शनेनालमस्यात्र ह्यभिषेकेण किं पुन:।
विलयं यान्ति पापानि हिमवद् भास्करोदये ॥
ॠृषि गणों ने कहा - जिसके दर्शन मात्र से, सभी पापों का इसप्रकार अन्त हो जाता है, जैसे सूर्य के उदित होने से बर्फ पिघल जाती है। फिर जलाभिषेक के महत्व की तो बात ही क्या ? अर्थात अनन्त महात्म है।
प्रशस्यांगोपांगयुक्त: कल्पवृक्षस्वरूपिणे।
महासिध्दियुत श्रीमद्ग्रोपाख्यान ते नम: ॥
ॠृषिगण कहते हैं - श्री अग्रसेन के आदर्श जीवन चरित्र के,सभी उत्तमोत्तम अंगों तथा उपांगों से युक्त, कल्पवृक्ष के समान , आठों सिद्धियों से संयुक्त,श्री अग्रसेन के इस आख्यान (पुरुषार्थ गाथा) को, नमन करते हुए ,हम बारम्बार प्रणाम करते हैं।
यह शुभकारी आख्यान जगत में सबके लिये कल्याणकारी हो।
©- रामगोपाल 'बेदिल'
अग्रसेन जयंती के बारे मे अधिक पढ़ें
मिशनरी डे
मिशनरी डे फ़्रांसीसी पोलिनेशिया, फ़्रांस की एक विदेशी सामूहिकता में एक आधिकारिक अवकाश है। यह 5 मार्च को प्रतिवर्ष मनाया जाता है, 1797 में लंदन मिशनरी सोसाइटी (एलएमएस) मिशनरियों के आगमन को चिह्नित करने के लिए जब उनका जहाज डफ मटावई खाड़ी में उतरा। यह एक गैर-कार्यशील अवकाश है।
मिशनरी डे के बारे मे अधिक पढ़ें
आंबेडकर जयंती
गुगल ने डॉ॰ आम्बेडकर की 125वीं जयन्ती 2015 पर अपने 'गूगल डूडल' पर उनकी तस्वीर लगाकर उन्हें अभिवादन किया। तीन महाद्विपों के देशों में यह डुडल था।
आंबेडकर जयंती के बारे मे अधिक पढ़ें
महावीर जन्म कल्याणक
महावीर जन्म कल्याणक के बारे मे अधिक पढ़ें