चंद्रकीर्ति

चंद्रकीर्ति – बौद्ध माध्यमिक सिद्धांत के व्याख्याता एक अचार्य। तिब्बती इतिहासलेखक तारानाथ के कथनानुसार चंद्रकीर्ति का जन्म दक्षिण भारत के किसी ‘समंत’ नामक स्थान में हुआ था। लड़कपन से ही ये बड़े प्रतिभाशाली थे। बौद्ध धर्म में दीक्षित होकर इन्होंने त्रिपिटकों का गंभीर अध्ययन किया। थेरवादी सिद्धांत से असंतुष्ट होकर ये महायान दर्शन के प्रति आकृष्ट हुए। उसका अध्ययन इन्होंने आचार्य कमलबुद्धि तथा आचार्य धर्मपाल की देखरेख में किया। कमलबुद्धि शून्यवाद के प्रमुख आचार्य बुद्धपालत तथा आचार्य भावविवेक (भावविवेक या भव्य) के पट्ट शिष्य थे। आचार्य धर्मपाल नालंदा महाविहार के कुलपति थे जिनके शिष्य शीलभद्र ह्वेन्त्सांग को महायान के प्रमुख ग्रंथों का अध्यापन कराया था। चंद्रकीर्ति ने नालंदा महाविहार में ही अध्यापक के गौरवमय पद पर आरुढ़ होकर अपने दार्शनिक ग्रंथों का प्रणयन किया। चंद्रकीर्ति का समय ईस्व षष्ठ शतक का उत्तरार्ध है। योगाचार मत के आचार्य चंद्रगोमी से इनकी स्पर्धा की कहानी बहुश: प्रसिद्ध है। ये शून्यवाद के प्रासंगिक मत के प्रधान प्रतिनिधि माने जाते हैं।

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