मुक्केबाज़ी

मुक्केबाज़ी लड़ाई का एक खेल और एक मार्शल कला है, जिसमें दो लोग अपनी मुट्ठियों का प्रयोग करके लड़ते हैं। विशिष्ट रूप से मुक्केबाज़ी का संचालन एक-से तीन-मिनटों के अंतरालों, जिन्हें चक्र (Rounds) कहा जाता है, की एक श्रृंखला के दौरान एक रेफरी के द्वारा किया जाता है, तथा मुक्केबाज़ सामान्यतः एक समान भार वाले होते हैं। जीतने के तीन तरीके हैं; यदि विरोधी को गिरा दिया जाए तथा वह रेफरी द्वारा दस सेकंड की गिनती किये जाने से पूर्व उठ पाने में सक्षम न हो सके (एक नॉक-आउट या KO) अथवा यदि यह प्रतीत हो कि विरोधी इतना अधिक घायल हो चुका है कि वह खेल जारी रख पाने में असमर्थ है (एक तकनीकी नॉक-आउट या TKO). यदि आपसी सहमति से चक्रों की पूर्व-निर्धारित संख्या से पूर्व तक लड़ाई नहीं रूकती है, तो विजेता का चुनाव रेफरी के निर्णय द्वारा अथवा निर्णायकों की अंक-तालिकाओं के द्वारा किया जाता है।

होमर के इलियड (675 ई.पू.) में किसी मुक्केबाज़ी प्रतियोगिता का पहला विस्तृत विवरण प्राप्त होता है, 688 ई.पू. में पहली बार मुक्केबाज़ी को ऑलिम्पिक खेलों में सम्मिलित किया गया, जिसे पाइगेम अथवा पिग्माशिया कहा जाता था। प्रतिभागियों को पंचिंग बैग, (जिसे कोरिकोस कहा जाता था, पर प्रशिक्षण दिया जाता था। योद्धा अपने हाथों, कलाइयों और कभी-कभी सीने, पर चमड़े के पट्टे (जिन्हें हाइमेंटस कहते थे), पहना करते थे, ताकि उनकी सुरक्षा की जा सके। ये पट्टे उनकी अंगुलियों को खुला रखते थे। एक किंवदंती के अनुसार तलवार और ढाल से लड़ाई की तैयारी करने के लिये मुक्केबाज़ी का प्रयोग सबसे पहले स्पार्टन लोगों ने किया था।

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