अद्वैत आचार्य (मूल नाम कमलाक्ष भट्टाचार्य ; 1434 – 1559), चैतन्य महाप्रभु के सखा तथा हरिदास ठाकुर के गुरु थे। वे श्री चैतन्य महाप्रभु के अन्तरंग पार्षदों में से एक थे तथा सदाशिव एवं महाविष्णु के अवतार माने जाते हैं। यह उनकी प्रार्थनाओं द्वारा आह्वाहन का ही प्रतिफल था जिसके कारण श्री चैतन्य महाप्रभु इस पृथ्वी पर अवतरित हुए ।
अद्वैत आचार्य का जन्म श्री चैतन्य से लगभग पचास वर्ष पूर्व 1434 में लाउड (वर्तमान सुनामगंज जिला, बांग्लादेश ) के नवग्राम में हुआ था। उन्होंने अपना अधिकांश जीवन अपनी पत्नी और परिवार के साथ नादिया के शांतिपुर (वर्तमान मतीगंज) में बिताया। अद्वैत आचार्य के छह पुत्र थे, अच्युतानन्द दास, कृष्ण मिश्र, गोपाल दास, बलराम दास मिश्र, स्वरूप दास और जगदीश मिश्र।
अद्वैत आचार्य के वंश और जीवन का वर्णन कई ग्रन्थों में किया गया है, जिसमें संस्कृत में कृष्णदास का बाल्यालीलासूत्र (1487? ) और बंगाली में नरहरिदास का अद्वैतविलास । उनकी कई गतिविधियों का वर्णन चैतन्य चरितामृत, चैतन्यमङ्गल और चैतन्य भागवत में किया गया है।
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